पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३६३

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27 अक्टूबर-मारवाड़ के मैदानों और रेगिस्तानी भूमि पर चलने के कारण साथ के सभी आदमी रुककर विश्राम करना चाहते थे। इसलिए एक स्थान पर पहुँचकर हम लोगों ने मुकाम किया। साथ के जो आदमी पीछे रह गये थे, वे इस स्थान पर आकर मिल गये। वे सभी रास्ते की मुसीबतों का एक-दूसरे से वर्णन कर रहे थे। परन्तु किसी के मुख पर किसी प्रकार की निराशा न थी। यहाँ पर रूपनगर का सामन्त मुझसे मिलने आया। इसके जीवन की परिस्थितियाँ भी बहुत कुछ गानोरा के सामन्त की तरह थीं। उसका प्रदेश मारवाड़ और मेवाड के बीच में ऐसा पड़ता था कि जिसमें उसको दोनों राज्यों को खुश रखना बहुत जरूरी था। इसलिए वह मेवाड़ के राणा और मारवाड़ के राजा-दोनों की आज्ञा का पालन करता था। ____ रूपनगर का सामन्त राणा के दूसरी श्रेणी के सामन्तों में पहले माना जाता था। जहाँ पर हमसे वह सामन्त मिलने आया था, वहाँ से उसका महल और दुर्ग दिखायी देता था। उसका दुर्ग पहाड़ के पश्चिम की तरफ है। उस दुर्ग के सामने एक मार्ग है, जो अनेक कठिनाइयों से भरा हुआ है। किसी भूमि के लिए उसके स्वामी के साथ रूपनगर के सामन्त का कुछ दिनों से झगड़ा चल रहा था। रूपनगर का सामन्त उस भूमि पर अधिकार करना चाहता था। इसलिए उसे कई वार युद्ध करना पड़ा था। रूपनगर का सामन्त सोलंकी राजपूत है और वह नाहरवाला के वंश में उत्पन्न हुआ था। प्रसिद्ध राजा सदराज के युद्ध का शंख इस समय उसके पास है।* अपने समय में सदराज एक पराक्रमी और शूरवीर राजा था। उसने अपने राज्य की सीमा का बहुत विस्तार कर लिया था। सन् 1094 ईसवी से लेकर लगभग आधी शताब्दी तक उसने अनहिलवाड़ा को अपने अधिकार में रखा था। वह शिक्षा और शिल्प का बहुत समर्थक था। उसने अपने शासनकाल में इन दोनों में बड़ी उन्नति की थी। ___रूपनगर के वर्तमान सामन्त के पूर्वज बदनोर की प्रसिद्ध तारावाई के चाचा थे। तारावाई स्वभाव से जिस प्रकार वीरांगना थी, उसके अनुसार उसने एक शूरवीर के साथ विवाह करने की प्रतिज्ञा की थी और अपने निश्चय के अनुसार उसने वीरात्मा पृथ्वीराज के साथ अपना विवाह किया था। यहाँ पर रूपनगर के सामन्त के जीवन की एक घटना का वर्णन करना जरूरी मालूम होता है। राणा रायमल के लड़कों में आपस की कलह बड़े भयानक रूप मं चल रही थी और दिल्ली तथा मालवा के वादशाह राणा रायमल की इन भीतरी कमजोरियो का लाभ उठाना चाहते थे। इसलिए उन दिनों में मेवाड़ का भाग्य बड़े संकट मे चल रहा था। उन दोनों बादशाहों से राणा रायमल को गोदवारा प्रान्त का खतरा था। मीणा और माहीर लोग मेवाड के मैदानों में रहा करते थे और नाटोल के स्वाधीन चौहान राजा चण्ड के द्वारा उनको सभी प्रकार की सहायता मिलती थी। नादोल की चौहान सेना ने देसूरी पर अधिकार कर लिया था। पृथ्वीराज देसूरी से चौहानों का अधिकार खत्म करना चाहता था। इसके लिए उसने शुद्धगढ़ के सोलकी सामन्त से सहायता मांगी। 1 राजा मदराज ने 1094 ईसवी से लेकर 1144 ईसवी तक राज्य किया था। 357