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इन लोगों में ईश्वर की पूजा और शपथ लेने की प्रथायें कुछ विचित्र सी पायी जाती हैं। मुसलमान लोग अल्लाह की कसम खाते हैं और हिन्दू ईश्वर की सौगन्ध लिया करते हैं। उसी प्रकार माहीर लोग शपथ लेने के समय सूर्य की सौगन्ध लेते हैं। उनमें से कुछ लोग इस प्रकार शपथ लेने के समय नाध की आन कहते हैं। शपथ ग्रहण करने का उनका यह एक तरीका है, जो साधारण रूप में पाया जाता है। जो माहीर लोग मुसलमान हो गये है, वे शूकर का मॉस नहीं खाते। परन्तु दक्षिणी प्रान्त मे रहने वाले माहीर लोग बिना किसी विचार के सभी प्रकार का मांस खाते हैं। परन्तु गाय का माँस नहीं खाते । तीतर और मालेली नाम के दो पक्षियों का बोलना उन लोगो मे शकुन समझा जाता है। माहीर लोग जव लूट-मार करने के लिए अपने घरों से बाहर निकलते हैं, उस समय अगर तीतर की आवाज उनको सुनायी पड़े तो वे लोग शकुन समझते हैं और अपनी सफलता पर पूर्ण विश्वास करते हैं। माहीर जाति के लोग सौराष्ट्र से लेकर उत्तर की तरफ चम्बल नदी तक फैले हुए हैं। माहीर वाड़ा आजकल मेवाड़ के राणा के अधिकार में है। जहाँ के माहीर लोग राणा का शासन नहीं स्वीकार करते, उनको दमन करने के लिए राणा ने बडी सख्ती से काम लिया है। सभी स्थानों के माहीर लोगों से कर लिया जाता है। जो लोग राणा को कर नहीं देते, उनके सरदारों को राणा के सामने लाकर पेश किया जाता है और जब वे शपथपूर्वक राणा की अधीनता को स्वीकार कर लेते हैं तो राणा की तरफ से उनके पद के अनुसार पारितोपित दिये जाते हैं। माहीर लोगों को अपनी अधीनता में लाने के लिए राणा की तरफ से जो प्रयत्न किये गये है, उनमें उसे पूरी सफलता मिली है। लेकिन कमलमीर में हमारे आने के पहले की ये सब वटनायें हैं। 21 अक्टूबर-रात बीत जाने के बाद सवेरे का प्रकाश देखकर हम सभी लोग बहुत प्रसन्न हुए। कप्तान वाव और डॉक्टर डंकन ने जो हाथी की झूल शीत से बचने के लिए अपने शरीरों पर लपेट रखी थी, उसको उन लोगो से अलग किया और मैं भी पालकी के भीतर से निकल कर बाहर आया। रात में पड़ने वाली ओस से बचने में पालकी ने हमारी बड़ी सहायता की। हम सभी लोग भूखे थे। इसलिए प्रकृति के रमणीक दृश्य देखने में तवीयत न लगती थी। फिर भी मैं तो यही चाहता था कि दक्षिण के भयानक पहाड़ी रास्ते से चल कर वहाँ के लुटेरों की खोज की जाए। एक छोटा सरदार बडबटिया नाम से सभी लोगों में प्रसिद्ध है। वह चौहानों की दूसरी शाखा में पैदा हुआ है। उसका वंश सोनगरा कहलाता है। उसके वंश के लोगो ने कई शताब्दी तक जालोर में राज्य किया है। यह सामन्त पहले मारवाड की अधीनता में था। किन्तु अनेक खरावियो के कारण मारवाड़ के राजा ने उसको अपने यहाँ से निकाल दिया था। उस दशा मे वह गोकुलगढ़ के दुर्ग में आश्रय लेने के लिए चला गया। गोकुलगढ़ का दुर्ग अरावली पर्वत के ऊपर बना हुआ है। उस दुर्ग में पहुँच जाने के बाद सामन्त वहाँ के आस-पास के निवासियों को अनेक प्रकार से भयभीत करने लगा। वहाँ के लोग लूटमार किया करते थे। इसलिए देवगढ का सामन्त 354