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पहले से मालूम कर चुके थे कि वह विस्तृत और अधिक चौड़ा है। रास्ता बहुत संकटपूर्ण होने पर भी हम लोग अपने निश्चय के अनुसार अभीप्ट स्थान पर समय पर पहुंच जाते, लेकिन रास्ते की खराबी के कारण बीच में ही हम लोगों को बहुत समय लग गया। ___यात्रा आरम्भ करने के बाद एक मील तक हमें इतना भी चौड़ा रास्ता न मिल सका, जिससे सामान से लदा हुआ हाथी आसानी से जा सकता। उस मार्ग के दोनों तरफ ऊँची-नीची भूमि थी और स्थान-स्थान पर जल के सोते बह रहे थे। बूंदी के राजा ने हमको चैतन्यमणि नामक एक घोड़ा दिया था। यात्रा के पहले ही मील में हमे मालूम हुआ कि पैर फिसल जाने के कारण चैतन्यमणि घोडा लुढ़क कर नीचे गिर गया है। उसकी पीठ पर कसी इई जीन का तंग टूट गया था। उससे आगे कुछ फासले पर रसोइया दिखायी पड़ा। वह अपनी परेशानी की हालत में गिरी हुई चीजों को एकत्रित करने में लगा हुआ था और उसका ऊँट पीठ पर सामान लादने नहीं देता था। ___यात्रा का अव हम एक मील किसी प्रकार पार कर सके और धीरे-धीरे चलकर दूसरे मील में हम लोग कमलमीर के दुर्ग के नीचे पहुँच गये । यहाँ पर रास्ता बहुत सीधा हो गया था। यहाँ की चट्टान पर जो बुर्ज बना था, वह जमीन की सतह से पांच सौ फुट ऊँचा था। इस स्थान का दृश्य अत्यन्त रमणीक था। उसके चारों तरफ ऊँचे-नीचे शिखर दिखाई देते थे। पश्चिम की तरफ जाकर अस्त होने वाली सूर्य की किरणे हमारे मार्ग में पडकर थोड़ा बहुत उजाला पैदा कर देती थीं। मार्ग में वृक्षों पर उन किरणों का जो प्रकाश पड रहा था, वह बड़ा सुहावना मालूम होता था। उस मार्ग में अनेक प्रकार के संकटों का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन उसकी बहुत-सी बातें मेरे अन्तर में एक प्रकार का अनोखा उल्लास पैदा कर रही थी। हम लोग जब यात्रा कर रहे थे उस समय शीतल वायु बडी तेजी के साथ चल रही थी। ___ मार्ग मे भयानक संकटों को पार करते हुए मैने एक सप्ताह व्यतीत किया था। वे कठिनाइयाँ एक-सी नहीं थीं। कहीं पर रास्ता अत्यधिक ऊँचा और कहीं पर अधिक नीचा था। कहीं पर बहुत तंग और इतना तंग कि साथ के हाथी का निकल सकना कठिन हो जाता और कहीं पर इतना ऊबड़-खाबड़ कि आगे बढ़ना कठिन मालूम होता। इस प्रकार अनेक तरह की कठिनाइयों और संकटों का सामना करते हुए हम लोग अपनी यात्रा पूरी कर रहे थे। अपने मार्ग पर चलते हुए हम लोग अब एक ऐसे स्थान पर पहुँच गये, जहाँ पर बहुत-सा जल रुककर एक सरोवर बन गया था। साथ के एक सैनिक को यह विश्वास हुआ कि वह इस जल को पार कर जाएगा। इसी आशा पर जल के भीतर उसने अपने घोडे को बढ़ाया और जैसे ही वह बायें हाथ की तरफ मुड़ा उसका घोडा अपने सवार के साथ जल मे डूब गया। यह दृश्य भयानक रूप से सामने उपस्थित हुआ। लेकिन थोड़ी देर तक ही यह दृश्य रहा और कुछ ही देर में वह घोड़ा जल के बाहर निकल आया। इस स्थान का नाम हाथी दुर्रा है। मैंने सोचा कि इसी स्थान पर रहकर रात काटी जाए। लेकिन वह स्थान इस योग्य न था कि हम लोग वहाँ पर मुकाम कर सकते। स्थान बहुत तग और सीमित था। रात का समय था और अंधकार बढ़ता जा रहा था। उस भीपण अंधकार में न तो आगे बढने की हिम्मत पड़ती थी, क्योकि रास्ता अत्यन्त अरक्षित था और न वह 346