पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३४८

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ऊपर जिस जैन मन्दिर का उल्लेख किया गया है, उसको देखकर मालूम होता है कि यूनान के कारीगरों ने उस मन्दिर को बनाया है। यह बात सही नहीं हो सकती तो यह निश्चित है कि जिन भारतीय कारीगरों ने उस मन्दिर का निर्माण किया था, वे यूनान की कारीगरी से प्रभावित थे और उन्होंने उसी के आधार पर इस मन्दिर का निर्माण किया था। जैनियों का यह मन्दिर पर्वत के ऊपर बना हुआ है। कदाचित् इस पर्वत की मजबूती ने बहुत समय तक इस मन्दिर को मजबूत रखने का काम किया है। अगर ऐसा न होता तो यह मन्दिर न जाने कब गिरकर मिट गया होता। लेकिन ऐसा नहीं है। पुराना और जर्जरित होने के बाद भी जैनियों का यह मन्दिर, मन्दिर के रूप में अब तक बना हुआ है। इस मन्दिर के पास जैनियों का एक दूसरा मन्दिर भी है। वह दूसरी तरह से बना हुआ है। यह दूसरा मन्दिर तीन खण्ड का है और उसके प्रत्येक खण्ड में बहुत-से स्तम्भ बने हुए हैं। वे स्तम्भ देखने में अब भी बहुत सुन्दर मालूम होते हैं। तीन खण्ड में होने पर भी यह दूसरा मन्दिर इस प्रकार बना हुआ है कि उसके प्रत्येक खण्ड में सूर्य का प्रकाश पूरी तौर पर पहुँचता है जिससे मन्दिर के किसी भी खण्ड में अन्धकार नहीं रहता। मन्दिर के निर्माण में यह उसकी एक बड़ी खूवी है, जिसकी बहुत बड़ी प्रशंसा की जा सकती है। ___ दुर्ग के ऊपर और भी अनेक मन्दिर बने हुये हैं। उन सबके विवरण बहुत कुछ एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं। इसलिए उनके सम्बन्ध में अलग-अलग यहाँ पर लिखने की जरूरत नहीं मालूम होती। लेकिन वहाँ पर दो मन्दिर ऐसे हैं, जिनके सम्बन्ध में कुछ प्रकाश डालना जरूरी है। यही दो मन्दिर वहाँ के मन्दिरो मे प्रमुख माने जाते हैं। इन दोनों मन्दिरों में एक माता देवी का मन्दिर कहलाता है। यह मन्दिर देवगढ की राजमाता का बनवाया हुआ है। पहाड़ी रास्ते की तरफ ऊँचे शिखर की चोटी पर यह मन्दिर वना हुआ है। इस मन्दिर मे छोटी और बडी देवताओ की बहुत-सी मूर्तियाँ हैं और उन सबके वीच में राजमाता की प्रतिमा है। ये सभी प्रतिमाये श्वेत संगमरमर पर बनी हुई हैं और उनमें हर एक की ऊँचाई करीब-करीब तीन फुट की है। ये सभी मूर्तियाँ इतनी खूबसूरती के साथ वनाई गयी हैं कि उनको देखकर मनुष्य अवाक् रह जाता है। मन्दिर की रचना प्रणाली बहुत प्राचीन है और साधारण होने पर भी उनमें अनोखा चमत्कार देखने को मिलता है। मन्दिर के भीतर एक बडा कमरा है। उसमें इन सब मूर्तियों के दर्शन होते हैं। इन मन्दिरों के सामने एक मजबूत दीवार बनी हुई है। उसमे नीचे से ऊपर तक काला पत्थर लगा हुआ है। इस दीवार के वनाने में जो काले पत्थर लगाये गये हैं उनमे प्रत्येक पत्थर में अलग-अलग देवताओं के विवरण खोदे गये है। इन पत्थरों में बहुत से राजा लोगो के विवरण भी पाये जाते हैं। अफसोस यह है कि दीवार मे लगे हुये पत्थरों में कोई एक भी समूचा नहीं रह गया है। प्रत्येक पत्थर कई-कई टुकडों मे टूट कर नीचे गिर गया हे और उनके इस प्रकार टूट जाने के कारण उन पत्थरों से कोई लाभ नहीं उठाया जा सकता। माता देवी के मन्दिर की तरह वहाँ पर एक दूसरा मन्दिर भी है और वह भी स्मारक के रूप मे बनवाया गया है। यह मन्दिर जिस स्थान पर बना हुआ है, वह अनेक वातों के 342