शिक्षा और अध्ययन के सम्बन्ध में जालिम सिंह और यती ज्ञानचन्द का एक घनिष्ठ सम्बन्ध रहा। उस विषय में बातचीत करते हुए ज्ञानचन्द ने कभी अपनी प्रशंसा नहीं की। वह सदा अपने आपको एक साधारण स्थान देता रहा। उसका यह तरीका उसकी विशाल आत्मा का परिचय देता है। गुरु पती ज्ञान चन्द में इस प्रकार के अनेक गुण थे, जिनसे वह सभी प्रकार की प्रशंसा का अधिकारी था। उसने मेरे इस इतिहास के निर्माण कार्य में जिस लगन के साथ सहायता की थी, उसे मैं भूल नहीं सकता। हम लोग जिस रास्ते से चल रहे थे, वह कीचड़ से भरा हुआ था और चलने में अनेक प्रकार के कष्ट पैदा करता था। उस मार्ग में लगातार चार घन्टे तक चलकर हम लोग पुलानों के अगले शिखर पर पहुँचे। देवपुर की तरह पुलानों का भी विध्वंस हो चुका था। उसके इस प्रकार नष्ट हो जाने के कारण उसके निवासी उस नगर के उस भाग में रहते हैं, जो किसी प्रकार रहने के योग्य है और उसके रहने वालों ने अपने स्थानों को रहने योग्य बना लिया था। पुलानां पहले एक सम्पन्न और समृद्ध नगर था, इसका सहज ही अनुमान यहाँ के देव स्थानों और मकानों के खण्डहरों को देखकर किया जा सकता है। देवपुर और बुलाना- दोनों ही पहले राणा के अधिकार में थे, जालिम सिंह की मृत्यु के बाद राणा ने इन दोनों स्थानो को भगवान कृष्ण के मन्दिर के साथ लगा दिये थे, राजमन्त्री के दाहिने हाथ रामसिंह, मंहता निन्दी के देवधान माणिक चन्द और नरसिंहगढ के पदच्युत राजा को यहाँ पर मेंने देखा। वह अव उदयपुर में रहा करता है। रामसिंह वैश्य जाति का एक आदर्श पुरुष है। यह वात जरूर है कि उसने मेवाड़ की सीमा के बाहर कभी जाने का अवसर नहीं पाया, फिर भी उसके साथ बातें करके यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उसकी तरह का अच्छा आदमी जल्दी कहीं मिलेगा नहीं। वह देखने में सुन्दर है, उसका शरीर लम्बा है और शरीर के सभी अंग सुगठित तथा सुव्यवस्थित हैं। उसका रंग गोरा है। बाल काले धुंवराले हैं, उसके मुख पर गलमुच्छे वड़ी अच्छी मालूम होती हैं। वह देखने में सुन्दर और प्रिय मालूम होता है अपने अच्छे व्यवहारों के कारण उसने सभी के हृदयों पर अधिकार कर रखा है। रामसिंह सदा साफ सुथरे और अच्छे वस्त्र पहनता है। उसने ओसवाल जाति में जन्म लिया है और वह जैन धर्म को मानने वाला है। राजस्थान में ओसवाल जाति के लोग लगभग एक लाख की संख्या में रहते हैं। ओसवाल जाति राजपूतों में अग्नि वंश में मानी जाती है। इस जाति के लोगो ने बहुत पहले हिन्दू धर्म छोड़कर जैन धर्म अपना लिया था। उस समय से ये लोग ओसवालों के नाम से प्रसिद्ध है। लोगों का कहना है कि अग्नि वंश के परमार और सोलंकी राजपूतों ने सबसे पहले जैन धर्म को स्वीकार किया था और उस समय से वे लोग इसी जैन धर्म को मानते हैं। माणिक चन्द भी जैन धर्मावलम्बी था। लेकिन वह युद्ध प्रिय था। उसका स्वभाव रामसिंह से विल्कुल भिन्न था। उसका शरीर लम्बा लेकिन अत्यन्त दुबला-पतला और उसका रग काला था। मस्तक के साथ-साथ उसकी जुबान बरावर हिला करती थी। पच्चीस वर्ष तक वह अनेक प्रकार के पड़यन्त्रों में रहा। कोटा मे जालिम सिह के अतिरिक्त पड़यन्त्रो मे दूसरा कोई उसका सामना नहीं कर सका। वह शक्तावत लोगो का एक प्रधान व्यक्ति था और उस , 332
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