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1 महाराव उम्मेदसिंह के समय दिल्ली में जो सन्धि हुई थी, मैं उसका पालन करूँगा। 2. मैं नाना जालिम सिंह पर सभी प्रकार का विश्वास करता हूँ। जिस प्रकार नाना जी ने महाराव उम्मेद सिंह के समय इस राज्य में काम किया है, उसी प्रकार मेरे साथ भी उसे करना चाहिये। मैं नाना जी के शासन-प्रवन्ध को स्वीकार करता हूँ। परन्तु मेरे और माधव सिंह के वीच सन्देह और अविश्वास है। हम दोनों एक दूसरे पर विश्वास नहीं कर सकते और न कभी एक हो सकते हैं। इसलिए मैं उसको एक जागीर दूंगा, उसको वहाँ रहने दिया जाये। उसका लड़का वप्पा लाल मेरे साथ रहेगा और जिस प्रकार दूसरे मन्त्री अपने राजा के समीप रहकर राज्य का कार्य करते हैं, वह भी उसी प्रकार मेरे साथ रहकर करेगा। मैं मालिक होकर रहूँगा और वह नौकर होकर रहेगा। यदि वह ऐसा करता है तो यह क्रम बराबर चलता रहेगा। 3. अंग्रेजी सरकार और दूसरे राजाओं को जो पत्र भेजे जायेंगे, वे मेरे परामर्श के अनुसार लिखे जायेंगे। 4. मेरी और राज राणा के जीवन की रक्षा का उत्तरदायित्व अंग्रेजी सरकार पर होगा। ____5. अपने भाई पृथ्वीसिंह को मैं एक जागीर दंगा, वहीं पर वह रहा करेगा। उसके पास जो नौकर अथवा दूसरे आदमी रखे जायेंगे, उनको मैं नियुक्त करूँगा। मेरे वंश के लोगों को आवश्यकतानुसार जागीरें दी जायेंगी और वे जागीरे उनकी मर्यादा के अनुसार होंगी। वे प्राचीन प्रणाली के अनुसार राज-दरवार में रहा करेंगे। 6. मेरे शरीर रक्षक सैनिक तीन हजार की संख्या में मेरे पास रहेंगे और उनमें राज राणा का पौत्र वप्या लाल भी रहेगा। 7. राज्य में जो आमदनी वसूल की जायेगी, वह राज्य के खजाने में रखी जायेगी और उसके बाद उसमें से खर्च किया जाएगा। 8. दुर्गो पर किलेदारों को मैं नियुक्त करूँगा और राज्य की सम्पूर्ण सेना मेरे अधिकार मे रहेगी। कर्मचारियों और अधिकारियों को आदेश देने का अधिकार राजराणा को होगा लेकिन उनके लिये पहले मुझ से पूछना पड़ेगा। ऊपर लिखी हुई मेरी माँगें हैं, जो राज्य के नियमो के अनुसार हैं। आसोज पञ्चमी सम्वत् 1978 सन् 1822 ईसवी।" सन्धि का प्रस्ताव करते हुए महाराव किशोर सिंह ने यह पत्र मेरे पास भेजा और अपनी लिखी हुई शर्तो में उसने हमको बाँधने की कोशिश की। इस पत्र में उस सन्धि का भी नाम आया जो अंग्रेज सरकार के साथ कोटा के राजा ने की थी। लेकिन आदि से लेकर अन्त तक सभी शर्ते राजराणा जालिम सिंह पर लागू करने के लिये लिखी गयी थीं। राज्य के नाम मात्र के राजा महाराव ने सन्धि का उल्लेख करके तानाजनी के साथ मुझे लिखा कि जो शते मेंने अपने पत्र मे लिखी हैं, वे मन्जूर की जायेगी या नहीं। व्यवहार की इस अशिष्टता को भी सहन कर लिया जाता यदि महाराव ने अपने पत्र में सन्धि की उन शर्तो को भी शामिल किया होता जो बाद में दोनों पक्षों की स्वीकृति से सन्धि मे शामिल की गयी थी। पत्र में न्याय की 316