पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३१६

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संधि के दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति मे जो शर्ते तय हुई थीं, उनका निर्णय दोनों पक्षो की उपयोगिता और आवश्यकता को सामने रखकर किया था और इसीलिए दिसम्बर की संधि में दो नयी शर्ते शामिल हो गयी थीं। उनकी आवश्यकता और महत्ता से किसी प्रकार इन्कार नहीं किया जा सकता। न केवल इसलिए कि जालिम सिंह ने अपनी बुद्धिमता और दूरदर्शिता से स्वर्गीय महाराव के सिंहासन पर बैठने के बाद से लेकर उस समय तक कोटा राज्य की मर्यादा को कायम किया था, बल्कि जिस समय समस्त राजस्थान के आकाश पर आक्रमणकारियों के कारण विपद के बादल मॅडरा रहे थे और उस विपद की सम्भावना सवसे पहले हाड़ौती राज्य पर थी, दूरदर्शी जालिम सिंह ने उसको अनुभव किया और उस विनाशकारी विपद के विरुद्ध जब अंग्रेज अधिकारी ने घोपणा की, उस समय जालिम सिंह ने राजस्थान में सबसे पहले सहयोग किया। उस सहयोग में जालिम सिंह का जो कुछ भी अभिप्राय रहा हो, लेकिन उसके इस वीरोचित कार्य से राजस्थान के सार्वजनिक हितों की रक्षा हुई और उसी से प्रभावित होकर अंग्रेज प्रतिनिधियों ने संधि की शर्तों में उसके भविष्य का निर्णय करना अपना एक महान कर्त्तव्य समझा। जिस युद्ध की घोपणा की गयी थी, वह समाप्त होने पर थी। जिस कोटा के साथ हमने संधि की थी, उसके विनाश के सभी कारण सदा के लिये नष्ट हो गये थे। ऐसी हालत में जिसके द्वारा कोटा के फिर अच्छे दिन देखने का अवसर मिला,उसको सेवाओं का पुरस्कार देना हम सबके लिए अनिवार्य हो गया। किसी भी अवस्था में जिसके द्वारा राजस्थान मे और विशेषकर कोटा राज्य में इतना बड़ा कार्य हुआ था, उसके प्रति अवहेलना करना किसी प्रकार उचित न था। सन् 1817 ईसवी की संधि में जालिम सिंह के भविष्य का जो निर्णय किया गया, वह प्रत्येक अवस्था में आवश्यक था। बालक उम्मेद सिंह के सिंहासन पर बैठने के समय से लेकर अब तक उसने कोटा राज्य के गौरव को जिस प्रकार बढ़ाया था, उसका बहुत बड़ा मूल्य था। इसलिए उसके भविष्य का निर्णय करने के लिए कोटा की संधि में जो शर्ते जोड़ी गयीं, उनको दोनों पक्षों के प्रतिनिधियों ने विना किसी विरोध के स्वीकार किया था। जालिम सिंह ने स्वर्गीय महाराव के साथ आरम्भ से लेकर अन्त तक जो सद्भाव रखा था, नवीन महाराव ने उसे अस्त्र बनाकर जालिम सिंह के साथ प्रयोग में लाने का निर्णय किया। उत्तराधिकारी किशोर सिंह के प्रति जालिम सिंह के कितने अच्छे भाव थे और महाराव उम्मेद सिंह की मृत्यु के बाद उसने जिस राजभक्ति के साथ उसे राज सिंहासन पर बिठाया था उसका भली प्रकार ऊपर उल्लेख किया जा चुका है। हमारा यह भी विश्वास है कि पृथ्वीसिंह और गोवर्धनदास ने यदि पड़यंत्र की रचना करके जालिम सिह के विरुद्ध उकसाया न होता तो महाराव किशोर सिंह ने उसके प्रति विद्रोहात्मक निश्चय कभी न किया होता। इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि पृथ्वी सिंह और गोवर्धन दास ने जालिम सिंह के विरुद्ध पड़यंत्र की रचना की और विरोध मे महाराव किशोर सिंह को लाकर सामने खड़ा कर दिया। गोवर्धन दास जालिम सिंह का छोटा लडका था। लेकिन वह उसकी विवाहिता स्त्री से पैदा नहीं हुआ था। इस पर भी उसके अच्छे स्वभाव को देखकर जालिम सिंह उससे बहुत प्रेम करता था। लेकिन पृथ्वी सिंह ने-जो पहले से ही जालिम सिंह का विरोधी था- माधव 310