पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३१४

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विरुद्ध किसी ने कुछ कहने का साहस न किया। उसने अनियंत्रित होकर बहुत-सा धन एकत्रित किया और उस धन से उसने एक विशाल वाग लगवाया। श्रेष्ठ घोड़े खरीदे और जल-विहार करने के लिए उत्तम नावें बनवाई। उसके इन कामों को सुनकर और जानकर जालिम सिंह ने उसको समझाने की कोशिश की। लेकिन वह अपने पिता की परवाह नहीं करता था। गोवर्धनदास की अवस्था इन दिनों मे सत्ताईस वर्ष की थी। वह बुद्धिमान, साहसी और योग्य था। उसका जीवन अपने भाई माधव सिंह के विलकुल विपरीत था। कोटा के राजवंश के साथ माधव सिह की जितनी ही उपेक्षा थी, गोवर्धन दास उनके प्रति उतना ही अपना सद्भाव प्रकट करता था। यही कारण था कि जालिम सिंह आरम्भ से ही उस पर अधिक स्नेह रखता था और उसने प्रधान के पद पर नियुक्त करके राज्य में कृपि-विभाग का अधिकारी बना दिया। इससे गोवर्धन दास के अधिकार में राज्य की अपरिमित सम्पत्ति रहने लगी। माधव सिंह और गोवर्धन दास मे पहले से ही स्नेह था। इन दिनों में माधव सिंह उससे ईर्ष्या करने लगा और इसके बाद परिणामस्वरूप दोनों भाइयों में झगड़े पैदा होने लगे। इसमें बहुत कुछ कमजोरी जालिम सिंह की थी। इसलिए कि उसने अच्छी शिक्षा देकर माधव सिंह के आचरण को अच्छा नहीं बनाया था। इसके लिए जालिम सिंह को स्वयं दु:खी होना पडा। सन् 1819 ईसवी के नवम्बर में कोटा राज्य की राजनीतिक और पारिवारिक यह परिस्थिति थी, जबकि महाराव उम्मेद सिंह की मृत्यु हो गयी थी और उस दुखमय समाचार को छिपाकर रखा गया था, जिसके परिणामस्वरूप राज्य मे भयानक परिस्थिति पैदा हुई। जालिम सिह छावनी में था और वह छावनी गागरोन में थी, उन्हीं दिनों में उम्मेद सिंह की मृत्यु हो गई थी। उस समाचार को पाकर महाराव का अन्तिम संस्कार करने और उत्तराधिकारी किशोर सिंह को सिंहासन पर बिठाने के लिए जालिम सिंह राजधानी के लिए रवाना हुआ। मारवाड़ से मेवाड जाते हुए पोलिटिकल एजेण्ट की हैसियत से मैंने उम्मेदसिंह की मृत्यु का समाचार पाया।* मैने उसी समय अपनी सरकार को लिखकर पूछा कि इस अवसर पर क्या होना चाहिये। मैं कुछ दिनों तक उस समय उदयपुर मे बना रहा और फिर उसके बाद मै कोटा गया, यह जानने के लिये कि महाराव की मृत्यु के बाद वहाँ के राज सिंहासन पर बैठने के लिए क्या होता है। कोटा मे पहुंचकर मैंने वृद्ध जालिम सिंह को राजधानी से एक मील बाहर छावनी में पाया। उसका उत्तराधिकारी लड़का राजधानी के महल में रहता था। 21 नवम्बर सन् 1819 ईसवी को जालिम सिंह ने महाराव उम्मेद सिह की मृत्यु का समाचार देते हुए जो मुझे लिखा था, वह इस प्रकार थाः"रविवार के दिन दोपहर के बाद तक महाराव उम्मेद सिंह की हालत बिल्कुल्न ठीक रही। सूर्यास्त के एक घटा बाद श्री बृजनाथ के मन्दिर में जाकर महाराव ने दर्शन किये छः बार प्रणाम करने के बाद सातवीं बार मे वह मूर्छित हो गये। अचेत अवस्था मे महाराव उम्मेद सिंह को किसी प्रकार महल मे लाकर लिटाया गया। उस समय जितनी भी अच्छी चिकित्सा हो सकती थी.की गयी और कोई उपाय बाकी न रखा गया। लेकिन किसी से कुछ लाभ न हुआ और रात के दो बजे महाराव उम्मेद सिंह ने स्वर्ग की यात्रा को।" "भगवान न करे, किसी शत्रु को भी इस प्रकार का दुख हो। लेकिन इसमे किसी का बस नहीं है । आप हमारे भाई हैं जिन राजकुमारो को छोडकर महाराव ने स्वर्ग की यात्रा की है, उनका कल्याण आपके हाथों में है। स्वर्गीय महाराव का बडा लडका किशोर सिह राज सिहासन पर बैठ गया है। मित्रता के नाते मैं यह समाचार आपको भेज रहा है।" 308