पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३०७

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प्रयोग उसने अपने राज्य के भीतरी मामलों में कर रखा था। राजा गुमानसिंह ने अपनी मृत्यु के समय जालिम सिंह को अपने बालक उम्मेद सिंह का संरक्षक बना दिया था। पिता के मरने के वाद वालक उम्मेद सिंह कोटा के सिंहासन पर बैठा। वह नाम के लिए अपने राज्य का शासक था, लेकिन पूर्ण शासन जालिम सिंह के अधिकार में था। परन्तु जालिम सिंह ने कोटा का शासन करते हुए उम्मेद सिंह की कभी अवहेलना नहीं की। वह प्रत्येक अवसर पर उम्मेद सिंह के पास बैठकर परामर्श किया करता था। यद्यपि जालिम सिंह अपनी इच्छानुसार सब कुछ करता था, परन्तु आरम्भ से लेकर अन्त तक उम्मेद सिंह यहीं समझता रहा कि जालिम सिंह का प्रत्येक कार्य मेरा आदेश लेने के वाद होता है। उम्मेद सिंह बुद्धिमान और दूरदर्शी था। वह शिकार खेलने का बहुत शौकीन था। घोड़े पर सवारी करना वह खूब जानता था और प्रायः शिकार खेलने के लिए जाया करता था। जालिम सिंह ने अपने अच्छे व्यवहारों के द्वारा उम्मेद सिंह के साथ सदा इस प्रकार की राजभक्ति का प्रदर्शन किया, जिससे उसके विरुद्ध उम्मेद सिंह को कभी एक क्षण के लिए भी सोचने का अवसर न मिला, उम्मेद सिंह दस वर्ष की आयु में राजसिंहासन पर बैठा था। उसी समय से जालिम सिह ने उसके प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करना आरम्भ किया था। उम्मेद सिंह की अवस्था जितनी ही बढ़ती गयी, उसके प्रति जालिम सिंह की श्रद्धा उतनी ही अधिक होती गयी। धर्म के प्रति उम्मेद सिंह का विश्वास इधर बहुत दिनों से अधिक हो गया था। इसलिए सांसारिक जीवन मे उसकी कुछ अरुचि हो गयी थी। इस दशा में भी जालिम सिंह उसका परामर्श लेकर राज्य का शासन करता था। उम्मेद सिंह की मर्यादा को श्रेष्ठता देने में जालिम सिह कभी किसी प्रकार की भूल न करता था। किसी दूसरे देश के राजपूत के आने पर जालिम सिंह उसे उम्मेद सिंह के पास ले जाता था और जो समस्या होती थी, उसके निर्णय का भार वह उम्मेद सिंह पर ही रखता था। ऐसे अवसरों पर उम्मेद सिंह जालिम सिंह के परामर्श को महत्त्व देता था। किसी दूसरे राज्य के सामन्त के आने पर और कोटा राज्य में आश्रय मॉगने के प्रश्न पर जालिम सिंह उम्मेद सिंह से मिलकर ही निर्णय करता था। किसी दशा में जालिम सिंह वही करता था, जिसे उम्मेद सिंह पसन्द करता था। उम्मेद सिंह किसी भी व्यवस्था में वही निर्णय करता था, जिसके लिए जालिम सिंह का संकेत होता था। जालिम सिंह अपने व्यक्तिगत कार्यो में भी उम्मेद सिंह से सलाह लिया करता था और उसकी पसन्द के अनुसार ही काम करता था। जालिम सिंह के इस प्रकार के व्यवहारों के कारण उम्मेद सिंह के मनोभावों मे कभी असन्तोप नही पैदा हुआ। इसका परिणाम यहाँ तक हुआ था कि जालिम सिंह की विना सलाह के उम्मेद सिंह राजमहल में कभी कोई नौकर न रखता था। एक दिन की घटना है, राज्य के किसी मैदान मे सेना के घोडे को युद्ध की शिक्षा दी जा रही थी। उस स्थान पर जालिम सिंह का इकलौता लडका माधव सिंह और उम्मेद सिह का लडका राजकुमार किशोर सिह मौजूद था। राजकुमार किशोर सिंह के साथ वहाँ पर माधव सिह ने कुछ ऐसा व्यवहार किया, जो किसी अर्थ में अप्रिय कहा जा सकता था। उसको जान कर जालिम सिंह ने अपने लडके माधव सिंह के साथ अत्यन्त कठोर व्यवहार किया और उसको अपने स्थान से हटा कर नान्दता मे रहने के लिए भेज दिया। 307