पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/३०६

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की तरफ कभी आँख उठा कर देखा भी नहीं था। कोटा राज्य के दक्षिण की तरफ होलकर और सिंधिया के अधिकार में कुछ नगर और ग्राम थे। वहाँ पर भी खेती होती थी। लेकिन जालिम सिंह ने अपने राज्य की खेती मे अधिक उन्नति की थी। अंग्रेजी सेना ने होलकर और सिन्धिया के साथ युद्ध करके दोनों को पराजित किया और अंग्रेज सेनापति ने सिन्धिया के अधिकार का पाँच महल नाम का इलाका और होलकर के अधिकार का डिग पिडावा आदि चार जिले लेकर जालिम सिंह को दे दिये। इन दिनों में जालिम सिंह ने दोनो मराठा सेनापतियों सं बहुत सावधान रहने की चेष्टा की। उसने होलकर और सिन्धिया के साथ अपने प्रतिनिधि रखे थे। जो बुद्धिमानी के साथ मराठों की नीति का अध्ययन करते रहते थे और जो कुछ समझते थे, उसकी सूचना गुप्त रूप से जालिम सिंह को देते थे। जालिम सिंह के दरवार में भी कई राजनीति कुशल मराठा ब्राह्मण थे, जालिम सिंह ने अपने कुशल व्यवहारों से उनको अपने अनुकूल बना लिया था। जालिम सिंह में एक अद्भुत क्षमता इस बात की थी कि वह जिसको जैसा समझता था, उसके साथ वह वैसा व्यवहार करता था। अपनी इस नीति के अनुसार उसने प्रसिद्ध अमीर खॉ के साथ मित्रता कायम कर ली थी और वे दोनों एक-दूसरे के सहायक बन गये थे। आवश्यकता के अनुसार जालिम सिंह अमीर खाँ को युद्ध के अस्त्र-शस्त्र और उसको बहुत सी सामग्री दिया करता था। उसने अमीर खाँ के रहने के लिए अपना शेरगढ़ नामक दुर्ग दे दिया था। इन सब बातों से कृतन होकर अमीर खॉ जालिम सिंह का शुभचिन्तक बन गया था। पिण्डारी लोगों का दल उन दिनों में लूटमार के लिए प्रसिद्ध हो रहा था। लेकिन जालिम सिंह ने अपनी दूरदर्शिता के द्वारा उस दल के सरदारों को अपने अनुकूल बना लिया था। उनके सद्भाव को प्राप्त करने के लिए जालिम सिंह ने अपने राज्य में बहुत-सी भूमि पिण्डारी सरदारों को दे रखी थी। जालिम सिंह ने पिण्डारी सरदारो के साथ इतना ही नहीं किया था वल्कि 1807 ईसवी में पिण्डारियो के सरदार करीम खाँ को जव सिन्धिया ने कैद करके ग्वालियर के दुर्ग में बन्द कर दिया था, उस समय जालिम सिह ने करीम खाँ को कैद से छुड़ाने के लिए बहुत-सा धन दिया था और इस बात की जिम्मेदारी ली थी कि भविष्य में करीम खाँ कभी उसके विरुद्ध कोई कार्य न करेगा। इस प्रकार जालिम सिंह ने दूसरे राज्यों के साथ सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करके वडी ख्याति प्राप्त की थी। मारवाड़ और मेवाड के अनेक सामन्तों ने कोटा राज्य में आकर आश्रय प्राप्त करने की कोशिश की थी। जालिम सिंह ने उन सामन्तों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार किया था और अपने राज्य मे रखकर उनको उसने ग्राम और नगर दिये थे। दूसरे राज्यो में जव कभी कोई आपसी संघर्प पैदा होता था तो जालिम सिंह मध्यस्थ बनकर उस संवर्प को मिटाने की पूरी चेप्टा करता था। अपने इन नंक कामों के द्वारा जालिम सिंह ने राजस्थान के राज्यों में बड़ी ख्याति पायी थी। उसके इस प्रकार के व्यवहारों को देखकर दूसरे राज्यों के लोग विपद के समय कोटा में आकर आश्रय पाने की पूरी आशा करते थे और एसे लोगो के आने पर जालिम मिह उनकी सहायता किया करता था। ___ दूसरे राज्यों के प्रति जालिम सिंह के शासन की जो नीति थी, उसका बहुत-कुछ वर्णन हो चुका है। अब उसकी उस नीति पर वहाँ कुछ प्रकाश डालना आवश्यक है, जिसका 300