के साथ जा रहा था। रास्ते मे उसको प्रसव की पीड़ा हुई। वहीं पर एक पलाश के पेड़ के नीचे उसके एक बालक पैदा हुआ। जिसका नाम पलाश रखा गया। यही राजकुमार पलाश बद्रीनाथ के राज्य का अधिकारी हुआ। उसी के नाम के आधार पर उस राज्य का नाम पलाशिया राज्य रखा गया। उसके वंशज पलाशिया भट्टी नाम से प्रसिद्ध हुए। सिरोही के देवरावंशी मानसिह ने रावल शालिवाहन के साथ अपनी लड़की के विवाह का विचार किया और ऐसा निश्चय करके राजपूतो की प्रणाली के अनुसार उसने नारियल भेजा। शालिवाहन ने उस विवाह को स्वीकार कर लिया और अपने बड़े पुत्र बीजलदेव को राज्य की रक्षा का उत्तरदायित्व देकर सिरोही विवाह करने चला गया। शालिवाहन के चले जाने के वाद वीजलदेव के धाभाई अर्थात् धात्री माता के लड़के ने यह अफवाह उडा दी कि सिरोही के रास्ते मे रावल शालिवाहन ने एक चीते पर आक्रमण किया था। उसमे वह सफल न हुआ और वह चीते के द्वारा मारा गया। उस धाभाई ने इस बात की पूरी चेष्टा की कि बीजलदेव को सिंहासन पर बिठा दिया जाये। वीजलदेव पहले से ही अपने इस धाभाई के साथ विशेष अनुराग रखता था और उस पर बहुत विश्वास करता था। वीजल देव सिंहासन पर विठा दिया गया। सिरोही से लौटने के बाद रावल शालिवाहन जब अपने नगर में आया तो उसने देखा कि बीजलदेव ने सिंहासन पर अधिकार कर लिया है। इसी समय उसने वीजलदेव की तरफ से अक्षम्य अशिष्टता का व्यवहार देखा। वीजलदेव ने शालिवाहन के लौटने पर उससे साफ-साफ कह दिया- "जैसलमेर के सिहासन पर अव आपका कोई अधिकार नहीं।" शालिवाहन ने देखा कि राज्य की प्रजा वीजलदेव का पक्ष ले रही है और उसको हमारा कुछ भी ख्याल नहीं है। इस दशा में सभी प्रकार निराश होकर वह खडाल राज्य चला गया। यह राज्य देरावल की अधीनता में था। वहाँ पहुँचकर शालिवाहन अधिक समय तक जीवित न रहा। वहाँ पर खिजरखॉ नामक एक बलोची ने विद्रोह किया। शालिवान उसका दमन करने के लिए रवाना हुआ और अपने तीन सौ आदमियों के साथ वहाँ पर वह मारा गया। इस प्रकार शालिवाहन द्वितीय का सर्वनाश हुआ परन्तु विश्वासघाती उसका पुत्र बीजलदेव भी अधिक दिनों तक जीवित न रहा। धाभाई के साथ उसका द्वेपभाव उत्पन्न हुआ। उसमे वीजलदेव पूरी तौर पर उसका शत्रु बन गया। उसने एक बार अपने धाभाई पर तलवार लेकर आक्रमण किया। लेकिन अपने इस आक्रमण से लज्जित होकर बाद मे वीजलदेव ने आत्महत्या कर ली। शालिवाहन और उसके लडके वीजलदेव के न रहने पर जैसलमेर का राज्य सिंहासन सूना हो गया। उस पर अव किसको विठाया जाये, यह प्रश्न पैदा हुआ। शालिवाहन के वडे भाई राजकुमार केलन को राज्य से निकाल दिया गया था। सभी के परामर्श से सन् 1200 ईसवी मे उसी को लाकर, उसकी पचास वर्ष की अवस्था मे जैसलमेर के सिंहासन पर बिठाया गया। केलन के छः बालक पैदा हुए-1. चाचकदेव 2. पाल्हन 3. जयचन्द 4. पीतमसी 5. पीचमचंद और 6 ओसराड। दूसरे और तीसरे लड़क-पाल्हन और जयचन्द के बहुत-सी संतानें पैदा हुई, जो जेसर और सिहाना राजपूती के नाम प्रसिद्ध हुई। 24
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