अध्याय-50 जैसलमेर के सिंहासन पर शालिवाहन जयसल ने अपनी बनवाई हुई राजधानी का नाम जैसलमेर रखकर बारह वर्ष तक वहाँ शासन किया। जैसलमेर अब तक यदुवंशी लोगों के अधिकार मे था। जयसल के शासनकाल में जैसलमेर राज्य की उन्नति हुई। जयसल की मृत्यु के पश्चात् उसका बड़े पुत्र केलन राज्य का अधिकारी था। वह पिता के राजसिंहासन पर बैठा। परन्तु राज्य का प्रधान मंत्री पाहु उससे प्रसन्न न था। इसलिए उसने केलन का विरोध किया और राज्य से उसे निर्वासित करके जयसल के छोटे पुत्र शालिवाहन द्वितीय को सबके परामर्श से सन् 1168 ईसवी में राज सिंहासन पर बिठाया। शासन का प्रबन्ध अपने हाथ में लेने के बाद शालिवाहन ने ऐसे कार्य आरम्भ किये, जिनसे उसकी कीर्ति बढने लगी। जालौर और अरावली के बीच के स्थानो में काठी नाम की एक जाति के लोग रहते थे। जगभानु उस जाति के लोगों का राजा था। सिंहासन पर बैठने के बाद शालिवाहन ने राजा जगभानु से युद्ध करने का निश्चय किया। इन दोनों राजाओ में युद्ध हुआ और उस युद्ध मे काठी जाति का राजा जगभानु परास्त होने के बाद मारा गया। शालिवाहन ने विजय प्राप्त करने के बाद काठी राजा जगभानु के घोड़ों और ऊँटों को अपने अधिकार मे कर लिया और फिर वह अपनी राजधानी लौट आया। शालिवाहन के तीन वालक पैदा हुए- बीजलदेव, बानर और हंसू। यदुवंशी शालिवाहन प्रथम ने गजनी से पंजाब में आकर शालिवाहनपुर राजधानी की प्रतिष्ठा की थी। उसके लड़के ने बद्रीनाथ पहाड़ के ऊपर एक स्वतंत्र राज्य कायम किया। जैसलमेर के सिंहासन पर जिन दिनों मे शालिवाहन द्वितीय बैठा था, उन्हीं दिनों में बद्रीनाथ पर्वत के यदुवंशी राजा की मृत्यु हो गयी। उसके कोई लडका न था। इसलिए उसके मन्त्रियो और सामन्तों ने किसी यदुवंशी बालक को उस सिंहासन पर विठाने के लिए शालिवाहन द्वितीय से परामर्श किया। रावल शालिवाहन ने अपने वंश के एक राज्य की रक्षा करने के लिए वहाँ के मंत्रियो और सामन्तों की मांग के अनुसार अपने तीसरे पुत्र हंसू को बद्रीनाथ भेज दिया। परन्तु संयोगवश वहाँ पहुँचने के बाद उसकी मृत्यु हो गयी। हंसू की स्त्री गर्भवती थी। बद्रीनाथ वह अपने पति सिकन्दर महान के भारतवर्ष मे आक्रमण करने पर जिस काठी जाति ने उसका सामना किया था, यह वहीं काटी जाति थी, जिसके लोग उन दिनो मे मुलतान के आस-पास रहते थे। ये लोग युद्ध करने मे सदा साहसी और पराक्रमी थे। यदुभट्टी लोगो ने उन पर आक्रमण किया था। 23
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