पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८९

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अध्याय-66 जालिमसिंह का प्रभाव व किसानों की दशा कोटा राज्य में दूसरी वार सेनापति होने के बाद किस प्रकार शासन में अपना आधिपत्य कायम करके जालिम सिंह ने अपना प्रभुत्व बढ़ाया और राज्य के कितने ही सामन्तों के विद्रोही होने तथा उनके अनेक वार षड़यन्त्र करने पर भी किन उपायों से उसने अपने प्रभाव को राज्य में सुरक्षित रखा, इसका विस्तार के साथ वर्णन पिछले परिच्छेद में किया जा चुका है। इसमें संदेह नहीं कि जालिम सिंह राजनीति में कुशल, शासन में निपुण और मौके का लाभ उठाने में पण्डित था। सम्वत् 1887 में उसने मेवाड़ के राणा के साथ कुछ दिन रहकर अपनी योग्यता का परिचय दिया था और फिर वहाँ से आकर कोटा में दूसरी बार सेनापति होकर अपने प्रताप का विस्तार किया। उसकी राज्य में जितनी ही शक्तियाँ बढ़ी थीं, राज्य के किसानों और व्यवसायियों को उतनी ही क्षति पहुंची थी। सम्वत् 1840 में उसका शासन किसानों और व्यवसायियों के लिए अत्याचार पूर्ण साबित हो चुका था। उसने प्रजा पर कर का इतना भारी बोझ लाद रखा था कि उससे राज्य की शान्ति संकट में पड़ गयी। किसान भूमि का कर अदा करने के लिए अपने आपको बहुत असमर्थ समझते थे। शासन की अयोग्यता और कठोरता के दिनों में राज कर्मचारी प्रजा के लिए राक्षस बन जाते हैं। जालिम सिंह के शासन काल में कोटा राज्य की भी यही अवस्था हो गयी थी। जालिम सिंह का शासन जितना अधिक कठोर था, राज कर्मचारियों का व्यवहार उतना ही अधिक भयानक था। किसानों के साथ उनके व्यवहार अमानुषिक हो गये थे। इस प्रकार के अत्याचार के दिनों में कोटा राज्य के किसान भयानक दुर्दशा का जीवन बिताने लगे थे। उनमें से बहुत से अपनी जन्मभूमि को छोड़कर भाग गये। न जाने कितने भाग जाने के लिए रोजाना सोचा करते थे। जालिम सिंह के राज कर्मचारी सहज ही किसानों के वैलों और पशुओं को छीनकर ले जाते थे। इस दशा में बहुत बड़ी संख्या में किसान खेती न कर पाते थे और वे अपने पूर्वजों के कार्य को छोड़कर नौकरी करने के लिए विवश हो जाते थे। बहुत से किसानों ने दूसरों के यहाँ नौकर होकर खेती का काम आरम्भ कर दिया था। राज्य की इस दुरवस्था में बहुत सी भूमि बिना खेती किये ही पड़ी रह जाती थी। उस पर जालिम सिंह राज्य की तरफ से खेती कराने का प्रयत्न करता था। जहाँ उसने एक तरफ राज कर्मचारियों को अनेक प्रकार के सुभीते देकर सन्तुष्ट कर रखा था, वहाँ उसने राज्य के दीनों, दरिद्रों, किसानों और व्यवसायियों को गरीवी की भीषण परिस्थितियों में पहुंचा दिया था। जालिम सिंह ने मेवाड़ राज्य में भी अपना आधिपत्य कायम करने के लिए बड़ी चेष्टायें की। परन्तु एक घटना के कारण उसकी योजना को गम्भीर आघात पहुंचा। मराठा 283