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उसकी मृत्यु हो गयी। इसके कई वर्षों के बाद देवसिंह का लड़का कोटा में जालिम सिंह के पास आया और उसने अपने आपको निरपराधी प्रमाणित करके आश्रय पाने की प्रार्थना की। जालिम सिंह ने उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया और पन्द्रह हजार रुपये की वार्षिक आमदनी की जागीर बामोलिया उसे दे दी। कोटा राज्य में कुछ और सामन्त थे जो निम्न श्रेणी के थे और छिपे तौर पर जालिम सिंह के विरुद्ध विद्रोह मे शामिल थे, जालिम सिंह ने उनको क्षमा कर दिया और उन्हें राज्य में रहने की आज्ञा दे दी। परन्तु उनको इतना निर्वल बना कर रखा कि जिससे वे फिर कभी विद्रोह करने का साहस न कर सकें। शत्रुओं के द्वारा जितने भी विद्रोही पैदा किये गये, जालिम सिंह से अपनी राजनीति के द्वारा उन सब को नष्ट कर दिया और कोटा राज्य के शासन को अपने अधिकार में रखा। उसने मेवाड़ के राज्य वंश की एक लड़की के साथ विवाह किया था। उस लड़की के माधव सिंह नामक एक लड़का पैदा हुआ। जालिम सिंह अनेक विपदाओ में रहने पर भी मेवाड़ की कठिनाइयो का ध्यान रखता रहा। उसने सन् 1791 ईसवी में मेवाड़ की जो सहायता की थी, उसका वर्णन पहले ही किया जा चुका है। जालिम सिंह के विरोधी जो सामन्त कोटा राज्य से चले गये थे, वे फिर जालिम सिंह के विरुद्ध तैयारी करने लगे। उन लोगो ने अब तब जितनी चेप्टायें की थीं, वे सब असफल हुई थीं। सम्वत् 1833 में आथून के सामन्त के नेतृत्व में जालिम सिंह के विरुद्ध जो तयारी की गयी थी, उसमें असफलता मिलने के बाद बीस वर्ष तक जालिम सिंह के विरुद्ध कोई विद्रोह नहीं किया गया। इसके बाद सन् 1800 में दस हजार रुपये वार्पिक की आमदनी वाले मोसेज के सामन्त बहादुर सिंह ने जालिम सिंह के विरुद्ध एक पड़यन्त्र रचा। परन्तु जालिम सिंह को उसकी सूचना मिल गयी। पड़यन्त्र के अनुसार सपरिवार जालिम सिंह को, उसके मित्रों और सलाहकार पंडित लाल जी को मार डालने के लिए एक योजना तैयार की गयी थी। उसमें निश्चित किया गया था कि जिस समय जालिम सिंह राज-दरवार में बैठा हो, एकाएक उस पर आक्रमण किया जाए और उसे मार डाला जाए। पड़यन्त्रकारियों की यह योजना जालिम सिंह पर प्रकट हो गयी। उसने पहरेदारों के स्थान पर राज्य की शक्तिशाली सुरक्षित सेना की नियुक्ति कर दी। पड़यन्त्रकारियों के दरबार मे आने पर उस सुरक्षित सेना के सवार सैनिकों ने एक साथ उन पर आक्रमण किया। उस आक्रमण मे बहुत से विरोधी मारे गये और एक बड़ी सख्या में लोग कैद कर लिये गये। पड़यन्त्र का नेता वहादुर सिंह भागकर चम्बल नदी के किनारे पाटन नामक स्थान पर चला गया और हाड़ा वंश के कुल देवता केशव राय के मन्दिर में पहुँच कर उसने आश्रय लिया। उसका विश्वास था कि बूंदी राज्य के इस मन्दिर मे आकर कोई मुझ पर आक्रमण नहीं करेगा। परन्तु जालिम सिंह के सैनिकों ने उस मन्दिर को घेर लिया और उसको कैद करके मार डाला। ___राजस्थान के प्राचीन ग्रन्थों से यह भी मालूम होता है कि उम्मेद सिंह के हितो की रक्षा करने के लिए बहादुर सिंह मारा गया था क्योकि उसके पड़यन्त्र की योजना का उद्देश्य यह था कि उम्मेद सिंह को सिंहासन से उतारकर उसके छोटे भाई को उस पर बिठाया जाए। बह बात कहाँ तक सही है, इसको निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है कि 280