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बूंदी के गोपीनाथ के वंशज हाड़ौती के प्रधान सामन्त थे और उनके सम्मान में आप जी शब्द का प्रयोग होता था किन्तु इन्द्रशाल के उदयपुर जाने पर राणा की तरफ से उसको महाराजा की पदवी मिली। राजा भीमसिंह के तीन लड़के थे-अर्जुन सिंह, श्याम सिंह और दुर्जनशाल। महाराजा अर्जुन सिंह का विवाह झाला के जालिम सिंह के पूर्वज माधवसिंह की बहन के साथ हुआ था। चार वर्ष तक राज्य करने के बाद अर्जुन सिंह की मृत्यु हो गई। उसके कोई सन्तान न थी। इसलिए उसके मर जाने के बाद कोटा के राजसिंहासन का अधिकार प्राप्त करने के लिए श्यामसिंह और दुर्जनशाल में संघर्प पैदा हुआ। वह संघर्प लगातार बढ़ा और राज्य की सम्पूर्ण शक्तियाँ दो भागों में विभाजित हो गयीं। उदयपुर के युद्ध-क्षेत्र में दोनों भाइयों ने अपनी-अपनी सेनायें लेकर संग्राम किया और आपस में ही लडकर और एक-दूसरे का सर्वनाश करके रक्त की नदियाँ बहाई। उस युद्ध में श्यामसिंह मारा गया और उसके बाद युद्ध बन्द हो गया। युद्ध के शान्त हो जाने के बाद दुर्जनशाल को मारे जाने वाले श्यामसिंह के वियोग का दुःख हुआ। इसके पहले राज्याधिकार के लिए उन्मत्त होकर वह अपनी बुद्धि को खो बैठा था। भाई श्यामसिह के युद्ध में मारे जाने पर उसने बहुत रंज किया और अश्रुपात के साथ उसने बार-बार इस बात को स्वीकार किया कि राज्य के प्रलोभन में मैंने अपने सगे भाई का सर्वनाश किया है। इस प्रकार दुर्जनशाल ने अपने सगे भाई श्याम सिंह के लिए अनेक बार विलाप किया। इन्हीं दिनों में कोटा-राज्य की एक बड़ी क्षति हुई। मुगल बादशाह ने राजा भीमसिंह को प्रसन्न होकर पुरस्कार में रायपुरा, भानपुरा और कालापीत नाम के तीन वैभवशाली नगर वहाँ के मूल अधिकारियों से लेकर दिये थे, उस पर कोटा राज्य का अधिकार संघर्प पेदा होने के पहले तक बना रहा। लेकिन जब श्यामसिंह और दुर्जनशाल में संघर्ष पैदा हुआ और वे दोनों एक दूसरे का सर्वनाश करने की कोशिश मे रहने लगे, उन दिनों वे तीनों सम्पत्तिशाली नगर कोटा राज्य के अधिकार से निकल गए और उन दिनों में अवसर पाकर उनके पूर्व अधिकारियों ने उन पर अधिकार कर लिया। सन् 1724 ईसवी मे दुर्जनशाल कोटा के सिंहासन पर बैठा। इन दिनों मे तैमूर वंश का अन्तिम सम्राट मोहम्मदशाह दिल्ली के सिंहासन पर था। दुर्जनशाल को उसने अपने यहाँ बुलाया और खिलत दी। दुर्जनशाल ने बादशाह से प्रार्थना की कि जमना नदी के किनारे जिन स्थानों पर हाड़ा वंश के राजपूत रहा करते हैं, वहाँ पर गोहत्या न की जाए। दुर्जनशाल के शासन के समय बाजीराव ने मराठा सेना लेकर उत्तरी भारत पर आक्रमण किया और हाडोती राज्य से पूर्वी सीमा तक तारजपास नामक पहाड़ी रास्ते को पार करते हुए नाहरगढ़ के दुर्ग को अपने अधिकार मे कर लिया और उसने वह दुर्ग दुर्जनशाल को दे दिया। वह दुर्ग और नगर एक मुसलमान के अधिकार में था। सन् 1740 ईसवी में मराठों के साथ हाडा राजपूतो का यह पहला सम्पर्क हुआ। राजा दुर्जनशाल ने उस दुर्ग के बदले बाजीराव पेशवा की महायता में बहुत-सी आवश्यक युद्ध सामग्री दी। मराठा बाजीराव के साथ दुर्जनशाल की यह मित्रता जो कायम हुई, वह बहुत थोड़े दिनो के वाद समाप्त हो गयी। अधिक दिनो तक दोनो का यह सम्बन्ध चल न सका। 267