देकर जयसलदेव की सहायता में भेजी। गौरी की उस सेना को लेकर जयसलदेव भोजदेव को पराजित करने के लिए लुद्रवा राज्य की तरफ रवाना हुआ और वहाँ पहुँच कर जयसलदेव ने एक साथ लुद्रवा पर आक्रमण किया। इस युद्ध में भोजदेव मारा गया और उसकी वची हुई सेना ने जयसलदेव की अधीनता स्वीकार कर ली। इसके बाद करीमखाँ की फौज ने लुद्रवा में लूट की और वहाँ से बहुत बड़ी सम्पत्ति अपने अधिकार में लेकर करीमखाँ भक्खर की तरफ चला गया। जयसलदेव ने लुद्रवा के राज सिंहासन को अपने अधिकार में कर लिया। लेकिन इन्हीं दिनों में उसे आभास हुआ कि लुद्रवा की राजधानी सुरक्षित नहीं है। यहाँ पर शत्रुओं का कभी भी आक्रमण हो सकता है । इसलिए उसने एक सुरक्षित स्थान की खोज की और इसके लिए जो स्थान निश्चित किया गया, वह लुद्रवा से दस मील की दूरी पर था। जयसल ने उस स्थान के पत्थर पर किसी ब्राह्मण को बैठा देखा। वहाँ पर ब्रह्मसर नामक एक तालाब था। उसी के निकट उस ब्राह्मण की कुटी थी। जयसल ने उस ब्राह्मण से बातचीत की। उसको उत्तर देते हुए ब्राह्मण ने कहा- "त्रेता युग में काग नाम का एक योगी इस तालाब के समीप रहता था। यहाँ से एक नदी निकली थी। उस योगी के नाम से वह नदी काग नदी के नाम से प्रसिद्ध हुई। यह तालाव बहुत प्रसिद्ध और प्राचीन था। कृष्ण के साथ आकर अर्जुन ने इसके दर्शन किये थे। इसे देखकर कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि आज से बहुत दिनों के बाद हमारा कोई वंशज इस पर्वत पर अपनी राजधानी की प्रतिष्ठा करेगा। कृष्ण की इस बात को सुनकर अर्जुन ने कहा- "राजधानी बनने के बाद यहाँ पर जो लोग रहेंगे, उनको जल का बहुत कष्ट रहेगा। क्योकि इस नदी का पानी स्वच्छ नहीं है।" अर्जुन की इस बात को सुनकर कृष्ण ने अपने चक्र से पर्वत को स्पर्श किया। उससे स्वादिष्ट जल की एक नदी प्रवाहित हुई। उस नदी के किनारे एक पत्थर लगा हुआ था। उस पर कुछ पंक्तियाँ खुदी हुई थी। उस ब्राह्मण ने उन पंक्तियों को पढ़कर जयसल को सुनाया। उनका आशय इस प्रकार था- 1 हे प्रतापी यदुवंशी राजन्, आप यहाँ पर आइए और इस पर्वत के ऊपर अपना दुर्ग बनवाइए। 2 लुद्रवा की राजधानी नष्ट हो गयी है और जयसल राज्य यहाँ से दस मील की दूरी पर है, जो सुदृढ और सुरक्षित है। 3. हे यदुवंशी राजन् आप, जयसल ओर लुद्रवा को त्याग कर यहाँ पर आइए और अपनी राजधानी की प्रतिष्ठा करिए। पत्थर पर लिखी हुई ये पंक्तियाँ संस्कृत भापा के श्लोको में थीं। इनकी जानकारी उस ब्राह्मण के सिवा और किसी को न थी। उसने जयसल से यह भी कहा कि आप यहाँ पर अपनी रक्षा के लिए जिस दुर्ग के निर्माण का विचार कर रहे हैं। वह दो वार बाहरी जातियो के द्वारा विध्वंस किया जाएगा। युद्ध होगा, रक्त के नाले बहेंगे और आपके उत्तराधिकारी उसे अपने अधिकार से खो देंगे। 21
पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।