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किया और मुझे खुशी है कि मैं जैसा चाहता था, बूंदी राज्य वैसा कर सका। इससे बूंदी का राजा शान्तिपूर्वक उन्नति की ओर बढ़ा और बिना किसी दूसरे राज्य को आवात पहुँचाये, स्वतन्त्रतापूर्वक चार वर्ष तक उसने शासन किया। इसके बाद वह एक ऐसे रोग से पीड़ित हुआ कि वह फिर उससे सेहत न हो सका और सब मिलाकर सत्रह वर्ष तक राज्य करके सन् 1821 ईसवी की 24 जुलाई को उसकी मृत्यु हो गयी। विशनसिंह के चरित्र के सम्बन्ध मे यहाँ पर संक्षेप में कुछ प्रकाश डालना आवश्यक है। वह ईमानदार था और पूर्ण रूप से वह राजपूत था। उसका हृदय कपटहीन था, उसमें कोई बनावट नहीं थी, उसका अन्तरतम उज्जवल और उसकी आत्मा महान् थी। वह समझदार था और दूरदर्शिता से काम लेता था। जिन दिनों में मराठों ने उसक राज्य का अधिकांश कर वूसल करके उसे दीन-दुर्बल बना दिया था, उन दिनों में भी उसने अपने जीवन को एक नयी दिशा में मोडकर सन्तोप के दिन विताये थे। वह शिकार खेलने का पहले से ही शौकीन था। इन दिनों में उसने अपने जीवन का एक प्रधान कार्य शिकार खेलना ही मान लिया था। वह रोजाना शिकार के लिये जाया करता था और उसने चीतों तथा बाघों के अतिरिक्त एक सौ से अधिक केवल शेर मारे थे। अपनी इस शिकार प्रियता के कारण ही उसका एक पैर टूट गया था, जिससे वह लॅगड़ा हो गया था। फिर भी उसके इस प्रकार के जीवन मे अन्तर न पड़ा था। उसे देखकर सहज ही इस बात का अनुमान होता था कि वह एक शूरवीर राजपूत है। वह अपने पूर्वजों की तरह स्वाभिमानी था और जिस किसी का साथ देने के लिए वह एक बार निश्चय कर लेता था, प्रत्येक कठिनाई का सामना करके उसका वह साथ देता था। शक्तिशाली मराठों के द्वारा आने वाली विपदाओं की अपेक्षा उसने अंग्रेजों का साथ दिया था। राजा विशनसिंह ने अपने यहाँ एक सुरक्षित कोप खोला था और उसमें प्रतिदिन एक सौ रुपये डालने के लिये उसने अपने मंत्री को आदेश दे रखा था। मंत्री को किसी भी अवस्था मे ये सौ रुपये उस कोप में डालने पडते थे। इसके अभाव में राजा मंत्री को किसी प्रकार क्षमा नहीं कर सकता था। दूसरे राज्यों की तरह, बूंदी राज्य में भी राज्य का प्रवन्ध नीचे लिखे हुए चार अधिकारियों के हाथो मे रहता था-(1) दीवान अथवा मुसाहिब (2) फौजदार अथवा किलेदार (3) बख्शी और (4) रिसाला अथवा पारिवारिक हिसाव रखने वाला। प्रधान मंत्री दीवान अथवा मुसाहिब के नाम से सम्बोधित होता था। राज्य का सम्पूर्ण शासन उसी के अधिकार मे रहता था। फौजदार अथवा किलेदार, राज्य के दुर्गों का संरक्षक था। वंश के राजपूतों को छोड़कर इस पद पर दूसरा कोई नियुक्त नहीं किया जाता। बख्शी राज्य का सम्पूर्ण हिसाबकिताव रखता था और रिसाला राजमहल का हिसाव रखता था। राजा विशनसिंह के दो लड़के थे। बडे लड़के का नाम रामसिंह था। ग्यारह वर्ष की अवस्था मे वह सन् 1821 ईसवी के अगस्त महीने मे पिता के सिहासन पर बैठा। दूसरा लड़का गोपालसिंह अपने बड़े भाई से कुछ महीने छोटा था। रामसिंह अपने पिता की तरह शिकार खेलने का बहुत शौकीन था। इन दोनों लडको की माता कृण्णगढ़ की राजकुमारी थी। वह अत्यन्त समझदार थी। हम हाड़ा वंश के कल्याण की सदा कामना करते हैं। 260