पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२६५

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सन् 1817 ईसवी में जब हमने आक्रमणकारियों का मुकाबला करने के लिये राजस्थान के राजाओं को आमन्त्रित करके कॉन्फ्रेंस करने और सम्मिलित शक्तियों के द्वारा शत्रुओं को परास्त करने का प्रयत्न किया तो जो राजा आकर उस कॉन्फ्रेंस में सम्मिलित हुये। उनमे बूंदी का राजा सबसे प्रथम था। इसका एक कारण यह भी था कि राजस्थान में मराठो का सबसे अधिक आतंक बूंदी राज्य पर था और उन दिनों में बूंदी का राजा अपने राज्य में जितनी मालगुजारी वसूल करता था, वह किसी प्रकार उसके लिये काफी न थी। क्योंकि अधिक मालगुजारी उस राज्य की मराठा लोग वसूल करते थे। सन् 1804 ईसवी में हमारी सहायता करने के कारण मराठो ने बूंदी राज्य पर आक्रमण किया था। उस समय हम बूंदी की कुछ भी सहायता न कर सके। इस कारण बूंदी के राजा को भीपण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। सन् 1817 ईसवी के संघर्ष में यूँदी का राजा अपने सामन्तों और उनकी सेनाओं को साथ लेकर वरावर हमारे साथ रहा। इसलिये जब हमने उस युद्ध में विजय प्राप्त की तो हम राव राजा विशन सिंह को भूले नहीं। मराठा सेनापति होलकर ने बूंदी राज्य के जिस हिस्से पर अपना अधिकार कर रखा था और जिस अधिकार को अर्द्धशताव्दी वीत चुकी थी, होलकर को पराजित करके उन समस्त नगरों तथा ग्रामों का अधिकार हमने वृंदी के राजा को दे दिया था, इसके सिवा सिन्धिया ने वृंदी राज्य के जिन नगरों और ग्रामों पर अधिकार कर लिया था, हमने मध्यस्थ होकर उन सभी को बूंदी के अधिकार में फिर मिला दिया था। हमारे इन कार्यों के लिये बूंदी के राजा विशनसिंह ने कृतज्ञता प्रकट की थी। उसने उस समय कहा था : "मैं उन आदमियों में से नहीं हूँ, जो एक बार प्रतिज्ञा करके उसके विरुद्ध आचरण करते हैं। मेरे इस मस्तक पर अपका अधिकार है। जब कभी भी आपको इसकी आवश्यकता पड़े।" बूंदी के राजा के ये वाक्य अर्थहीन न थे। उसने अपने प्राणों की बलि देकर अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया होता और उस वंश के प्रत्येक हाड़ा ने उसका अनुसरण किया होता जिसने उसका नमक खाया था, अगर उसकी परीक्षा ली गयी होती। इन्हीं दिनों में कोटा और बूंदी राज्यों के बीच एक ऐसी घटना हुई, जिससे बूंदी के राजा विशनसिंह के हृदय में चोट पहुंची। कोटा के मंत्री जालिमसिंह ने अंग्रेजों की खुशामद करके वूदी राज्य से इन्द्रगढ़, बलवान आनरदा और खातोली आदि स्थानों को अपने राज्य में मिला लेने की कोशिश की। उसने इन दिनों मे अपने हस्ताक्षर से पहले लिखना आरम्भ कियाअंग्रेज सरकार का गुलाम। मन्त्री जालिम सिंह की इस कोशिश से बूंदी के राजा विशनसिंह को बहुत अफसोस हुआ। अंग्रेज सरकार ने बूंदी के उन स्थानो को कोटा-राज्य में मिला देने के लिये जो व्यवस्था की,उससे पीड़ित होकर विशनसिंह ने इतना ही कहा: "अंग्रेजी सरकार ने जालिम सिंह के पक्ष में इस प्रकार की व्यवस्था देकर मुझे एक पंखहीन पक्षी बना दिया है। वास्तव में अंग्रेजी सरकार की यह व्यवस्था मुनासिव नहीं थी। राजनीतिक ईमानदारी के नाम पर इस व्यवस्था में परिवर्तन करना ही अच्छा था।" अंग्रेज-सरकार और राजा बूंदी के बीच सन्धि करने का निर्णय हुआ। उस सन्धि को तैयार करने के बाद मैंने प्रसन्नता अनुभव की और मेरे द्वारा जो सन्धि लिखी गयी, वह सन् 1818 ईसवी के फरवरी महीने में दोनों पक्षों की तरफ से मन्जूर हो गयी। बूंदी के राजा का जो सद्व्यवहार अंग्रेजो के साथ हुआ था, उसके कारण मे चॅदा राज्य का कल्याण चाहता था। राजा विशनसिंह ने विश्वासपूर्वक मेरी सभी बातों को स्वीकार 259