पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२६२

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कृष्णगढ़ के गजा के दो लड़कियां थी। एक राणा का व्याही गई थी और दूसरी अजित सिंह की। दोनों इस सम्बन्ध में बँधे हुए थे। कदाचित इमी सम्बन्ध के कारण राणा को विश्वास था कि अजित सिंह के द्वारा मेरा कोई अनिष्ट न होगा। यद्यपि राणा की स्त्री ने उममें इस बात को कहा था कि तुम कभी अजिन सिंह का विश्वास न करना। कई पीढ़ी पहले मंवाड़ और बूंदी के राजाओं ने एक दूसरे पर आक्रमण करके अपने प्राणों को उत्सर्ग किया था। वह घटना लिखी जा चुकी है। लेकिन दोनों राजवंशों ने टम शत्रुता को भुला दिया था। इस दुर्घटना के एक दिन पहले मयाइ के राणा और अजित सिंह ने एक साथ बैठ कर भोजन किया था। उसके बाद ही वह अवांछनीय घटना घटी। प्राचीन ग्रन्थों के टल्लेखों से जाहिर होता है कि मेवाड़ के मामन्त अपने इस राणा से प्रसन्न न थे और इसीलिये राणा के मारे जाने पर वे सभी शान रहे। अजित सिंह के आक्रमण करने पर मंवाद के सामन्तों ने राणा की रक्षा करने का प्रयत्ल नहीं किया और न उन्होंने अजित सिंह के साथ उस समय युद्ध किया। यद्यपि गणा के अनेक मामन वहाँ पर मौजूद थे। राणा के घायल होकर गिरते ही मेवाड़ के उपस्थित सामन्त अपने-अपने शिविर में चले गये। इसका अर्थ स्पष्ट यह है कि राणा में ठसक सामन्त प्रसन्न न थे। राणा जहाँ पर मारा गया था, वहाँ पर उसकी एक मात्र टपपत्नी मौजूद थी। उसने चिता तयार करवा कर सती होने के लिये निश्चय किया और जिस समय चिना में अग्नि लगायी गयी। जलने के पहले गाय देते हुए उसने कहा :"जिम अजित सिंह ने राणा का संहार किया है, उसको दो महीने के भीतर ही इसका फल मिलंगा।" बूंदी के एक ग्रन्थ में लिखा गया है कि जहाँ पर राणा के मृत गरीर के साथ सती होने के लिये चिता बनायी गयी थी, उस स्थान के एक वृक्ष की शाखा टूट कर पृथ्वी पर गिरी । टससे चिता की भूमि बिल्कुल सफेद हो गयी। इस घटना का उल्लेख करते हुए हाड़ा कवि ने लिखा है कि सती होने वाली राणा की टपपत्नी के गाप के अनुसार दो महीने में ही अजित सिंह का अनिष्ट आरम्भ हुआ। उसके गरीर का माँस अपने आप गल-गल कर गिरने लगा और उसके कारण अजित सिंह की मृत्यु हो गयी। अजित सिंह के विशन सिंह नाम का एक लड़का था। अजित सिंह के मर जाने के बाद वह सिंहासन पर बिठाया गया। किन उसकी अवस्था बहुत छोटी थी और वह किसी प्रकार शासन करने के योग्य न था। उम्मेद सिंह ने अपने राज्य से पहले ही सम्बन्ध विच्छेद कर लिया था। परन्तु इस अवसर पर गूंटी राज्य के सम्बन्ध में टसे विचार करना पड़ा। टम्मेट सिंह किसी प्रकार अपने हाथों में शासन का प्रवन्ध नहीं लेना चाहता था। इसलिये उसने वालक विशन सिंह की तरफ से गायन की देख-रेख करने के लिये अपने विश्वासी धात्री पुत्र को नियुक्त किया और उसे शासन के सम्बन्ध में बहुत सी बातें समझा बुझा कर टम्मंदसिंह फिर तीर्थ यात्रा करने के लिये चला गया और बहुत दिनों तक वह तीर्थों में चूमता रहा। वह अत्र वृद्धावस्था में पहुँच गया था। इसलिये उम्मन गान्निपूर्वक कंदारनाथ में रहना आरम्भ किया। जित सिंह क बाद उसका वालक विशन सिंह बूंदी के सिंहासन पर बैठा। उस समय वह बहुत छोटा था। कुछ दिनों के गाट वह सयाना हुआ। लेकिन टसे अब भी शासन 256