पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२६

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पर राज्य गहिलोत राजा प्रताप सिह खडाल राज्य मे रहता था। दूसा अपने तीन भाइयो के साथ वहाँ पहुँचा और उनकी तीन लड़कियो के साथ विवाह किया। इसके कुछ दिनों के बाद खडाल राज्य में बिलोचियों के अत्याचार आरम्भ हुए। उन्ही दिनों में उनके साथ युद्ध हुआ, जिसमें पांच सौ विलोची मारे गये और बाकी सब भाग गये। बाराव की मृत्यु के बाद उसका बडा पुत्र दूसा सन् 1044 में यदुवंशियों के सिंहासन पर बैठा। दूसा के सिंहासन पर बैठने के थोडे दिनो बाद सोढ़ा जाति के राजा हमीर सिंह ने दूसा के राज्य पर आक्रमण किया और वहां के कई नगरो को लूट लिया। यह देखकर दूसा अपनी सेना लेकर रवाना हुआ और उसने हमीर मिह पर उसकी राजधानी में जाकर आक्रमण किया। उस लडाई मे हमीर सिंह की पराजय हुई। दूसा के जयसलदेव और विजयराव नामक दो वालक पैदा हुए। उसकी वृद्धावस्था तीसरा लड़का पैदा हुआ। जिसका नाम लंगा विजयराव रखा गया। दूसा के के सामन्तों ने उसके तीसरे पुत्र लंगा विजयराव को राजसिंहासन पर विठाया। राज्य का अधिकार प्राप्त करने के पहले लंगा विजयराव ने सोलंकी वंश के सिद्धराज जयसिह की लडकी के साथ विवाह किया था। उस विवाह के अवसर पर जयसिंह की रानी ने लंगा विजयराव के मस्तक पर तिलक करते हुए कहा था- "प्रिय, उत्तर दिशा मे रहने वाले लोग इस राज्य से ईर्ष्या रखते हैं और वे प्रायः इस राज्य पर अत्याचार किया करते हैं। इसलिए उन लोगों से इस राज्य की रक्षा करना।" सोलंकी राजकुमारी से लंगा विजयराव के एक वालक पैदा हुआ। उसका नाम भोजदेव रखा गया। अपने पिता की मृत्यु के बाद पच्चीस वर्ष की अवस्था में भोजदेव लुद्रवा का राजा हुआ। दूसा के अन्य लड़के इस समय वयस्क हो चुके थे। जयसल की अवस्था पैतीस वर्ष और विजयराव की आयु बत्तीस वर्ष की थी। भोजदेव के लुद्रवा के सिहासन पर बैठने के बाद उसके चाचा जयसलदेव ने ईर्ष्यालु होकर उसके विरुद्ध पड्यंत्र आरम्भ किया। पांच सौ सोलंकी राजपूतों के द्वारा सुरक्षित रहने के कारण जयसलदेव भोजदेव को किसी प्रकार की क्षति पहुँचा न सका। इन दिनों मे शहाबुद्दीन गोरी ठठ्ठा नामक राज्य को जीतकर पाटन के राजा के साथ युद्ध कर रहा था। जयसलदेव ने शहाबुद्दीन गौरी से मिल कर भोजदेव को पराजित करने की चेष्टा की। उसने शहाबुद्दीन के साथ मित्रता की और उसकी सहायता लेकर उसने अनहिलवाड़ा पट्टन पर आक्रमण करने का निश्चय किया। उसका अनुमान था कि पट्टन के पाँच सौ सोलंकी राजपूत जो सदा भोजदेव की रक्षा में रहा करते हैं, वे पट्टन पर आक्रमण होते ही भोजदेव को छोड़कर चले जाएँगे। उस समय भोजदेव के विरुद्ध हमारा मार्ग साफ हो जाएगा। इस प्रकार सोच-विचार कर उसने अपने साथ के दो सौ अश्वारोही सैनिको को तैयार किया और उनको लेकर वह पंजाब की तरफ रवाना हुआ। इन्ही दिनो मे शहाबुद्दीन गौरी ठठ्ठा राज्य मे विजयी होकर सिंध को प्राचीन राजधानी अरोड नगर को जा रहा था। जयसल देव शहाबुद्दीन से मिलने के लिए आया। शहाबुद्दीन ने उसका बहुत आदर किया। जबसलदेव ने स्वीकार कर लिया। दोनो में मित्रता हो गयी। शहाबुद्दीन गौरी ने अपने कई हजार सैनिकों की एक सेना करीम खाँ नाम के सेनापति का 20