पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५९

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

इसलिये उसने स्वीकार करने पर यह सन्धि हो गयी और उसके संबंध में जो दस्तावेज लिखा गया, उस पर दोनों पक्ष के अधिकारियों के हस्ताक्षर हो गये। होलकर की इन सेना के साथ जयपुर पर आक्रमण करने के लिये कोटा और हाड़ा राजपूतों की सेनायें भी आयी थीं। संधि हो जाने के बाद होलकर सबके साथ जयपुर से बूंदी आ गया। उसके साथ उम्मेदसिंह भी था। बूंदी के राज सिंहासन पर जो अव तक बैठा हुआ था, वह सिंहासन छोड़कर भाग गया। बूंदी राजधानी में बड़ी धूमधाम के साथ उम्मेदसिंह का अभिषेक-समारोह मनाया गया और उसके वाद वह अपने राज्य के सिंहासन पर वेठा। इन्हीं दिनों में उसने सुना कि आमेर के राजा ईश्वरी सिंह ने विप खाकर आत्म-हत्या कर ली है। चोदह वर्षो तक लगातार वे-घर वार होकर उम्मेदसिंह ने अपने जीवन के दिन व्यतीत किये थे। इसके बाद सन् 1719 ईसवी में वह दूंदी के सिंहासन पर बैठा। उसने मल्हार राव होलकर की सहायता के बदले में उसे चम्बल नदी के किनारे पाटन का सम्पूर्ण इलाका और उसके समस्त ग्राम दे दिये। साथ ही उनकी लिखा-पढ़ी भी कर दी।* राव बुधसिंह के वाद लगातार चौदह वर्षो में बूंदी का राज्य नष्ट हुआ था और बूंदी राजधानी अनेक प्रकार से श्रीहीन हो गयी थी। दलेलसिंह ने केवल राजमहल और तारागढ दुर्ग को सुरक्षित रखने की चेष्टा की थी। बूंदी के सिंहासन पर बैठकर उम्मेदसिंह ने राज्य की विगडी हुई दशा को सुधारने की कोशिश की। उसने वे सभी कार्य आरम्भ किये,जिनके द्वारा प्रजा का कल्याण हो सकता था। उम्मेद सिंह ने मराठों की सहायता से अपने पूर्वजों के राज्य पर अधिकार प्राप्त किया था। उसने सेनापति होलकर को अपना मामा बनाया। इस संबध के साथ होलकर ने उम्मेदसिंह की जो सहायता की थी, उसके मूल्य में उम्मेदसिंह को बूंदी राज्य का जो हिस्सा देना पड़ा था, उसका उल्लेख किया जा चुका है। उस समय के राजपूत जाति के इतिहास लेखको का कहना है कि दक्षिण के मराठों ने इस प्रकार के अवसरो पर राजपूतों के आपसी विरोधों का लाभ उठाया था और अपनी शक्तियों को मजबूत बना लिया था। उनका यह भी कहना है कि समय-समय पर मराठों की शरण में जाने से राजस्थान के अन्यान्य राज्यो की अपेक्षा बूंदी राज्य को अधिक क्षति उठानी पड़ी। उम्मेदसिंह स्वभाव से ही नेक, उदार और धार्मिक था। उसने जीवन के संकटों मे चरित्र और अच्छे व्यवहारों की शिक्षा पायी थी। उसके जीवन मे यदि प्रतिहिंसा की भावना से घटना न पैदा होती, जिसका उल्लेख नीचे की पंक्तियों में किया गया है तो उम्मेदसिंह का चरित्र अत्यन्त निर्मल माना जाता। यद्यपि उस घटना के आधार में दो प्रमुख कारण हैं। अपनी भीपण कठिनाइयो के समय उम्मेद सिंह इन्द्रगढ़ के राजा देवसिंह के पास गया था। देवसिंह उसके पिता राव बुधसिंह का एक आज्ञाकारी सामन्त था। इस विपद के समय उम्मेदसिंह की सहायता करना उसका एक आवश्यक कर्त्तव्य था। परन्तु उसने कुछ भी ख्याल नहीं किया। उम्मेदसिंह का बोडा मर गया था। उस दशा में उसके एक घोड़ा मांगने पर देवसिंह ने निष्ठुरता सन 1817 ईसवी में अग्रेज सरकार ने यह इलाका मराठों से लेकर बंदी के राजा उम्मंदसिंह के पौत्र को दे दिया था 251