पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५७

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सेना उस पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुई। उम्मेद सिंह को इस बात का ख्याल न था कि जयपुर की सेना इतनी जल्दी आकर आक्रमण करेगी। जिस समय वह युद्ध के लिए तैयार न था और अपने राज्य तथा राजधानी की नष्ट-भ्रष्ट अवस्था पर विचार कर रहा था, एकाएक जयपुर की सेना ने आकर आक्रमण किया। उसमें उम्मेद सिंह को पराजित हो जाना पड़ा और वृंदी के दुर्ग के ऊपर जयपुर का झण्डा फिर से फहराने लगा। वृंदी पर अधिकार कर लेने के वाद वहाँ के सिंहासन पर दलेल सिंह को फिर से बिठाने के लिये कोशिश की गई। परन्तु उसने इन्कार कर दिया। इसलिए कि एक बार उस सिंहासन पर बैठकर उसने जिस लोकनिंदा को सुना था, दूसरी वार वह अपने जीवन में फिर इस प्रकार का अवसर नहीं आने देना चाहता था। बूंदी का अधिकार निकल जाने के वाद उम्मेद सिंह की अवस्था फिर उसी प्रकार संकटपूर्ण बन गयी, जैसी कि पहले थी। अव फिर उसके सामने अन्धकार था और कहीं भी उसे प्रकाश दिखाई न देता था। अपनी इस दुरवस्था में उसने वहुत-कुछ सोच डाला और अपने पूर्वजों के राज्य का अधिकार प्राप्त करने के लिये उसने मारवाड़ और मेवाड़ के राजाओं से सहायता माँगी। परन्तु कोई भी उसकी सहायता के लिये तैयार न हुआ। इससे और भी उम्मेदसिंह के सामने निराशा पैदा हुई। परन्तु वह हताश होना नहीं जानता था। उसके भाग्य में जिसने इस प्रकार की कठोर विपदाएँ पैदा की थीं, उसी ने उसके अन्तर में अटूट साहस और स्वाभिमान उत्पन्न किया था। स्वाभिमानी बालक उम्मेद सिंह ने फिर से अपनी टूटी-फूटी शक्तियों को एकत्रित किया और उसके द्वारा वह तरह-तरह के आघात शत्रु को पहुँचाने का उपाय सोचने लगा। अपने स्थान से रवाना होकर वह उस ग्राम में पहुँच गया, जिसका विनोदिया नाम था। इसी ग्राम में राजा जयसिंह की वह वहन इन दिनों में रहा करती थी, जो उम्मेद सिंह की सौतेली माँ थी और जिसके ईर्पालु व्यवहारों के कारण न केवल बूंदी-राज्य तहस-नहस हुआ था, बल्कि उसकी ससुराल का सम्पूर्ण परिवार और उसके पति राव बुधसिंह का समस्त वंश नष्ट होने की परिस्थिति में पहुँच गया था। वह अब वैधव्य अवस्था में इसी विनोदिया नामक ग्राम में रहा करती थी और समझती थी कि मैंने ही अपने स्वामी के वैभव और प्रताप को नष्ट करके सौतेले लड़कों का सर्वनाश किया है। वह स्वयं न तो बूंदी में अपना अधिकार रख सकी थी और न जयपुर-राज्य में ही उसने अपने लिए कोई स्थान रखा था। इसलिये इस ग्राम में रहकर वह अपने वैधव्य जीवन के दिन किसी प्रकार काट रही थी। उम्मेद सिंह ने अपनी सौतेली माता के पास पहुँचकर उसके चरणों का स्पर्श किया। उम्मेद सिंह को देखकर रानी के अन्त:करण में एक साथ पीड़ा की अग्नि प्रज्वलित हो उठी। बालक उम्मेद सिंह की दुरवस्था को देखकर वह बहुत दुःखी हुई। वह बार-बार सोचने लगी कि मेरी गलतियों के कारण ही बूंदी के राजवंश का सर्वनाश हुआ है। वह सोचने लगी, ऐसे अवसर पर यदि मैं किसी प्रकार इस बालक की सहायता कर सकू तो मेरा वह परम कर्तव्य होगा। रानी उम्मेद सिंह को अपने पास विठाकर उसके साथ बड़ी देर तक वातें करती रही। उसने निश्चय किया कि अपने इस अवसर पर हमको मराठों से सहायता के लिये प्रार्थना 249