पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५६

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तेजस्वी उम्मेद सिंह को दुर्भाग्य के इन दिनों में अधिक दिनों तक नहीं रहना पड़ा। कोटा के राजा दुर्जनशाल ने आमेर के राजा ईश्वरी सिंह और उसके सहायक मराठा सेनापति आपा जी सिंधिया को परास्त करके कोटा राज्य की रक्षा की थी। उसके हदय में उदारता थी और विपद मे पड़े हुए किसी शूरवीर की सहायता करना वह जानता था। इन दिनों में उसने सबसे अधिक उम्मेद सिंह की सहायता की। इन्हीं दिनों मे हाड़ौती के एक श्रेष्ठ कवि के साथ बालक उम्मेद सिंह की भेंट हुई। वह कवि उम्मेद सिंह का साहस और पुरुपार्थ देखकर बहुत प्रभावित हुआ। वह लगातार इस वात को सोचने लगा कि जैसे भी हो सके, वालक उम्मेद सिंह को उसके पिता के राज्य का अधिकार प्राप्त होना चाहिये। राजपूत के हाथ में केवल उसकी लेखनी का ही महत्व नहीं होता, बल्कि वह अपनी कलम के समान तलवार को चलाना भी जानता है। वह उम्मेद सिंह को उसकी चेष्टाओं में सफल बनाना चाहता था। वह बालक उम्मेद सिंह के साहस, स्वाभिमान और शौर्य से बहुत प्रभावित हो चुका था। वह जानता था कि जीवन की विपदायें और भयानक कठोरतायें स्वाभिमानी तथा वीर आत्माओ के लिए होती हैं। जो मनुष्य स्वाभिमान खो देता है अथवा जिसमे स्वाभिमान नहीं होता, उसे कभी भी जीवन की कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ता। उम्मेद सिंह से सभी प्रकार खुश होने के कारण उस कवि ने उसकी सहायता करने का निश्चय कर लिया। वह अपनी ओजस्वी कविताओं के द्वारा हाड़ा राजपूतों को प्रोत्साहित करने लगा और उम्मेद सिह की सहायता में तलवार लेकर वह स्वयं युद्ध-क्षेत्र में जाने के लिए तैयार हुआ। शत्रु की सेना उम्मेद सिंह को मिटाने में लगी थी। इसलिए हाड़ा राजपूत संगठित होकर और कोटा की सेना की सहायता पाकर फिर युद्ध के लिए तैयार हुए और रणभूमि मे जाकर उन लोगो ने बड़े साहस के साथ शत्रु सेना का सामना किया। ___ जयपुर के राजा जयसिंह ने दलेल सिंह को बूंदी के सिंहासन पर विठाया था। यह युद्ध दलेल सिंह और उम्मेद सिंह के बीच आरम्भ हुआ। उसमे दलेल सिंह की पराजय हुई। उम्मेद सिंह ने बूंदी नगर पर अधिकार कर लिया। दलेल सिंह भागकर बूंदी के प्रसिद्ध दुर्ग तारागढ़ में चला गया। उम्मेद सिंह ने अपनी सेना लेकर उस दुर्ग को जाकर घेर लिया और उसने उस दुर्ग पर अधिकार करने की कोशिश की। दलेल सिंह अपनी सेना के साथ दुर्ग के भीतर मोजूद था और बाहर उम्मेद सिंह के सैनिक थे। उनके आगे बढ़ते ही दोनों ओर से मार-काट आरम्भ हुई। उस समय वह कवि युद्ध करते हुए मारा गया, जो उम्मेद सिंह की तरफ से युद्ध करने के लिए आया था और उसको मारने वाला उसी के वंश का एक विश्वासघाती सैनिक था। उसके मृतक शरीर पर एक कपडा डाल दिया गया, जिससे उसके मारे जाने का समाचार जल्दी प्रकट न हो सके। उस दुर्ग पर आक्रमण करने से जो युद्ध हुआ, उसमें भी उम्मेद सिंह की विजय हुई। इसके बाद वह बूंदी के सिहासन पर बैठा। दलेल सिंह उस दुर्ग से भागकर जयपुर राज्य में पहुंचा और ईश्वरी सिंह को उसने अपनी पराजय का सब हाल बताया। जयपुर का राजा उसे सुनकर अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने केशवदास खत्री के नेतृत्व में एक सेना दी पर अधिकार करने के लिए भेजी।। बूंदी के सिंहासन पर बैठने के बाद उम्मेद सिंह को इतना भी अवसर न मिला कि वह अपनी निर्बल शक्तियों को एक बार सगठित कर लेता। सिंहासन पर बैठते ही जयपुर की 248