पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५३

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अध्याय-64 कोटा राज्य पर जयपुर का आक्रमण सन् 1744 ईसवी में जयपुर के राजा जयसिंह की मृत्यु हो गयी। उस समय उम्मेदसिंह की अवस्था केवल तेरह वर्ष की थी। जयसिंह की मृत्यु का समाचार पाकर उम्मेदसिंह के हाड़ा वंश के थोड़े से सैनिकों को लेकर तैयारी की और पाटन तथा गेनोली पर आक्रमण करके उसने अधिकार कर लिया। उसकी इस विजय का समाचार हाड़ौती-राज्य में फैल गया और लोगों ने सुना कि बूंदी के स्वर्गीय राजा वुधसिंह के लड़के उम्मेदसिंह ने अपने पिता के राज्य पर अधिकार करने के लिए निश्चय किया है। इस समाचार से उस राज्य के सभी लोगों को बड़ी प्रसन्नता हुई और हाड़ा वंश के राजपूतों के दल चारों ओर से आकर उम्मेद सिंह के झण्डे के नीचे एकत्रित होने लगे। यह समाचार कोटा के राजा दुर्जनशाल के पास पहुँचा। वह बहुत प्रसन्न हुआ और उम्मेदसिंह की सहायता के लिए उसने अपने राज्य से एक सेना भेजी। जयसिंह की मृत्यु के बाद ईश्वरी सिंह वहाँ के सिंहासन पर बैठा । उसने जव सुना कि कोटा के राजा दुर्जनशाल ने उम्मेदसिंह की युद्ध में सहायता करने का निश्चय किया है तो उसने कोटा राज्य पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के सम्बन्ध में अधिक विवरण कोटा के इतिहास में लिखा गया है। आक्रमण के वाद कोटा में जो युद्ध हुआ, उसमे ईश्वरी सिंह को भागना पड़ा। रास्ते में उसने उम्मेद सिंह पर आक्रमण करने के लिए एक सेना भेजी। लोहारी नामक स्थान पर मीणा जाति के लोग रहा करते थे। हाड़ा राजा ने किसी समय उनकी स्वाधीनता नष्ट की थी। फिर भी मीणा लोगों ने हाड़ा राजा के साथ कई अवसरों पर उपकार किये थे और कई युद्धों में मीणा लोगों ने उसका साथ दिया था। मीणा लोग अपने वंश की इन बातों को भूले न थे। इन दिनों में उम्मेद सिंह के शौर्य और साहस को देखकर मीणा लोग बहुत प्रसन्न हुए और वे धनुष बाण लेकर उम्मेद सिंह की सहायता करने के लिए पाँच हजार की संख्या में तैयार हो गये। यह देखकर वालक उम्मेद सिंह को सन्तोष मिला। उसने मीणा लोगों की सहायता से विचोरी नामक स्थान पर शत्रुओ के साथ युद्ध आरम्भ किया। मीणा लोगों ने शत्रु के शिविर में जाकर लूट-मार आरम्भ की और उम्मेद सिंह ने हाड़ा राजपूतो की सेना को लेकर जयपुर की सेना का संहार करना शुरू कर दिया। उस समय शत्रु-सेना के बहुत से लोग मारे गये। हाड़ा राजपूतों ने शत्रुओ के झण्डे को छीनकर अपने अधिकार में कर लिया। उस युद्ध मे हाड़ा राजपूतों की विजय हुई और शत्रुओं की सेना पराजित होकर युद्ध क्षेत्र से भाग गयो। जयपुर के राजा ने अपनी इस पराजय का समाचार सुना। उसने उम्मेद सिंह को परास्त करने का निश्चय किया और नारायण दास के नेतृत्व में उसने अठारह हजार सैनिकों 245