पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५२

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राव बुधसिंह के सामने इन दिनों में भयानक संकट थे। ठसने कई वार साहस करके अपने पूर्वजों की राजधानी पर अधिकार करने की चेष्टा की और उसके फलस्वरूप कई बार युद्ध हुए। उनमें बहुत से हाडा राजपूत मारे गये परन्तु बुधसिंह को सफलता न मिली। अन्त में निराश होकर वह अपनी ससुराल में जाकर रहने लगा। वहीं पर उसकी मृत्यु हो गयी। राव बुधसिंह के दो लड़के थे। बड़े लड़के का नाम था उम्मेदसिंह और छोटे का नाम था दीपसिंह। राव वुधसिंह के मर जाने के बाद भी उसकी विपदाएँ कम न हुई। राजा जयसिंह के प्रोत्साहित करने पर मेवाड़ के राणा ने वेगू का इलाका अपने अधिकार में कर लिया और बुधसिंह के दोनों लड़कों को उनके मामा के यहाँ से निकाल दिया। दोनों हताश लड़के अपने कुछ विश्वासी आदमियों के साथ पुर्चल नामक एक जंगल में चले गये और वहाँ पर अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इन्हीं दिनों में कोटा के राजा भीमसिंह की मृत्यु हो गयी और उसके स्थान पर दुर्जनशाल कोटा के सिंहासन पर बैठा। बुधसिंह के लड़के उम्मेदसिंह और दीपसिंह के जीवन में चारो ओर अन्धकार था। कहीं से किसी प्रकार आशा न होने पर उन दोनों ने राजा दुर्जनशाल को अपनी दुरवस्था लिखी और उससे सहायता की प्रार्थना की। दुर्जनशाल उदार और दयालु हदय या। उसने जातीय शत्रुता के भावों को भूलकर उम्मेद सिंह दीपसिंह की न केवल महायता की, बल्कि उनके पक्ष का यहाँ तक समर्थन किया कि जिससे दोनो भाई फिर से अपने पूर्वजों क राज्य का अधिकार प्राप्त कर सकें। 244