पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२५०

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होने वाले छोटे लड़के को गुप्त रूप से अपने पास लाकर जाहिर किया कि यह लडका मेरे पैदा हुआ है। उसकी यह बात राजमहल से लेकर बाहर तक सभी लोगों में फैल गयी। राव राजा बुधसिंह के बाहर से लौटने पर जयसिंह की बहन ने अपना वह लडका उसकी गोद में दिया। राव बुधसिंह उसके पड़यंत्र को सुन चुका था। उसे अत्यन्त क्रोध मालूम हुआ। उसने यह घटना आमेर के राजा जयसिंह को लिखी। राजा जयसिंह ने उस घटना को जान कर बहुत आश्चर्य किया और अपनी उस वहन से घृणा करने लगा। लेकिन उसकी बहन पर उसके तिरस्कार का कोई प्रभाव न पड़ा और एक दिन अवसर पाकर जब वह आमेर की राजधानी में थी, एक तलवार लेकर उसने जयसिंह पर आक्रमण किया। लेकिन जयसिंह किसी प्रकार उससे बचकर निकल गया। राजा जयसिंह पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और वह अपनी बहन के साथसाथ बुधसिंह से भी बहुत चिढ़ गया। उसने बुधसिंह को बूंदी के सिंहासन से उतार कर इन्द्रगढ़ के राजा देवी सिंह को वहां के सिंहासन पर विठाने का निर्णय किया। लेकिन राजभक्त देवीसिंह इसके लिये तैयार न हुआ। उस दशा मे जयसिंह ने करवर के सामन्त सालिम सिंह को बूंदी के राज सिंहासन पर बिठाना चाहा। सालिम सिंह बूंदी राज्य का एक सामन्त था और वह तारागढ़ की जागीर का अधिकारी था। राजा जयसिह बुधसिंह को सिहासन से उतारने के उपाय सोचने लगा। इन दिनों मे वह मुगल बादशाह की तरफ से मालवा, अजमेर और आगरा का शासक था। उसके अधिकार में इन दिनों मुगल साम्राज्य की शक्तियाँ थीं। दिल्ली में आपसी विरोध और संघर्ष के कारण मुगल बादशाह की शक्तियाँ लगातार क्षीण हो रही थीं। जयसिंह ने इस अवसर पर सभी प्रकार के लाभ उठाने की कोशिश की। बादशाह फरुखसियर के मारे जाने के बाद जयसिंह अपने राज्य में चला आया और उसने अपने राज्य की सीमा को लगातार बढ़ाने की चेष्टा की। जो नगर और ग्राम उसके राज्य की सीमा के निकट थे, उन पर उसने अधिकार करने का निश्चय किया। इन दिनों में मुगल-साम्राज्य के अनेक सामन्तों की सेनायें उसके अधिकार में थीं। जयसिह ने उससे लाभ उठाना चाहा। . आमेर राज्य में लालसोढ के पचयाना चौहान और गोरा तथा नीमराणा आदि कितने ही ऐसे सामन्त थे, जो जयपुर के राजा को न तो कर देते थे और न विधान के अनुसार अधीनता स्वीकार करते थे। वे केवल आवश्यकता पड़ने पर अपनी सेनाएँ लेकर आमेर की राजधानी में आते थे और जयपुर के राजा की सहायता में युद्ध करते थे। शेखावाटी के सामन्त इसको भी स्वीकार नहीं करते थे और राजौर के बड़गूजर एवम् बियाना के यादव आदि अनेव सामन्त पूर्ण रूप से स्वतत्र शासन करते थे परन्तु इधर कुछ दिनों से उन्होने आमेर राज्य की अधीनता स्वीकार कर ली थी और वे जयपुर के राजा का आदेश पालन करने के लिये तैयार रहा करते थे। इन सामन्तो की भॉति बूंदी के राव बुधसिंह को अपनी अधीनता मे लाकर और बूंदी के सिंहासन पर किसी को अपनी इच्छानुसार बिठाकर राजा जयसिंह अपनी अभिलापा को पूरा करने के लिये तत्पर हुआ। राजा जयसिंह के इस पडयत्र की कोई जानकारी बुधसिंह को न थी। वह जिन दिनो मे आमेर की राजधानी मे मौजूद था, जयसिंह ने उससे कहा : "अगर आप कुछ दिनो तक 242