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सेनायें एक दूसरे के बहुत निकट पहुँच गयी। इसी समय मुराद और छत्रसाल का सामना हुआ। छत्रसाल ने अपने दाहिने हाथ में भाला लेकर मुराद पर आक्रमण किया। इसी समय शत्रु की एक गोली छत्रसाल के मस्तक में लगी। वह गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी। उसका छोटा लडका भारतसिंह उस युद्ध में मौजूद था। पिता के गिरते ही वह आगे बढ़ा और मुराद के साथ उसने युद्ध आरम्भ किया। छत्रसाल का भाई मोखिम सिंह अपने दोनों लड़कों और उदय सिंह नामक भतीजे के साथ शत्रु-सेना पर भीपण मार कर रहा था। इस समय दोनों ओर से युद्ध की गति भयानक हो उठी थी। शत्रुओं का संहार करते हुए भारत सिंह मारा गया। उज्जैन और धौलपुर के संग्रामों में राजवंश के वारह शूरवीरों और हाड़ा वंश के प्रत्येक सामन्त ने युद्ध करते हुए अपने प्राण दे दिये। लेकिन उनमें से एक भी युद्ध से भागा नहीं। राजपूतों की तरह की यह वहादरी संसार में अन्यत्र देखने को न मिलेगी। राव छत्रसाल ने अपने जीवन में बावन युद्ध किये थे और प्रत्येक युद्ध में उसने अपनी अद्भुत वीरता का परिचय दिया था। उसने बूंदी के राजमहल में कुछ भाग निर्माण करवाया था और उसका नाम उसने छत्र महल रखा था। पाटन नामक स्थान में केशवराय भगवान के नाम का उसने एक रमणीक मन्दिर बनवाया था। सन् 1656 में युद्ध करते हुए वह मारा गया, जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है। राव छत्रसाल के चार लड़के थे-राव भावसिंह,भीमसिंह, भगवन्त सिंह और भार सिंह । भीमसिंह को गूगोर का अधिकार मिला। भगवन्त सिंह मऊ नामक स्थान का अधिकारी बनाया गया। भारत सिंह धौलपुर युद्ध में मारा गया था, जिसका वर्णन ऊपर हो चुका है। राव छत्रसाल के बाद भावसिंह बूंदी के सिंहासन पर बैठा। दिल्ली के सिंहासन पर बैठकर औरंगजेब ने राव छत्रसाल का बदला उसके लड़के राव भावसिंह से लेने की कोशिश की। शिवपुर के राजा आत्माराम को बुलाकर उसने बूंदी राज्य पर आक्रमण करने और उसको रणथम्भौर की अधीनता में लाने का आदेश दिया। राजा आत्माराम ने बादशाह का आदेश पाकर अपने साथ बारह हजार सैनिकों की एक सेना तैयार की और हाड़ौती राज्य में जाकर उसने चारों तरफ विध्वंस और विनाश आरम्भ कर दिया। इन्द्रगढ़ बूंदी के प्रधान सामन्त के अधिकार में था। उस जागीर के खातौली नगर के राजा ने आत्माराम की सेना का सामना किया। दोनों तरफ से गोठड़ा नामक स्थान पर युद्ध आरम्भ हुआ। उस युद्ध में आत्माराम की पराजय हुई। वह युद्ध क्षेत्र से भाग गया। हाड़ा राजपूतों ने उसकी सेना का पीछा किया और उसके साथ की सम्पूर्ण युद्ध सामग्री उन्होंने अपने अधिकार में कर ली। राजपूतों ने भागी हुई सेना का पीछा करके शत्रु-सेना का झण्डा छीन लिया और फिर उसके बाद हाड़ा राजपूतों की सेना ने राजा आत्माराम की राजधानी शिवपुरी को जाकर घेर लिया। पराजित आत्माराम औरंगजेब के पास पहुंचा और उसने जब हाड़ा राजपूतों के मुकाबले मे अपनी पराजय की बात उससे कही तो बादशाह औरंगजेब ने अनेक प्रकार के अपशब्द कहकर उसका तिरस्कार किया। बादशाह औरंगजेब ने कई अवसरों पर राजपूतों की बहादुरी देखी थी। इसलिये वह हाड़ा राजपूतों से मेल करने के तरीके सोचने लगा। जाहिर तौर पर उसने इस बात को मान 237