पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२४४

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प्रकार पक्षपाती थे। अपने इस सैनिक दल को लेकर राव छत्रसाल दक्षिण मे रवाना हुआ और वह नर्वदा की ओर चला। औरगंजेब की सेना ने उसका पीछा किया। परन्तु छत्रसाल पर आक्रमण करने का उसने साहस न किया। बरसात के कारण नर्वदा नदी उफनती हुई प्रवाहित हो रही थी। राव छत्रसाल ने नदी के किनारे पहुँच कर सोलंकी राजाओ की सहायता से उसको पार किया। औरंगजेब की सेना अब भी उसका पीछा करती हुई आ रही थी। राय छत्रसाल अपने राज्य बूंदी नगर मे पहुँच गया और कई दिनों तक वहाँ पर विश्राम करके अपने राज्य की व्यवस्था की। इसके बाद वह सेना लेकर दिल्ली की तरफ चला। पिता का द्रोही औरंगजेव पड़यंत्रों का जाल बिछाता हुआ फतेहाबाद में पहुंचा। यहाँ पर राजा जसवन्त सिंह के साथ उसने युद्ध किया और अपने पड़यंत्रों के द्वारा विजय प्राप्त की। इस युद्ध में औरंगजेब के विरुद्ध छत्रसाल नहीं गया। उसका कारण यद्यपि कोई स्पष्ट नहीं लिखा गया लेकिन मालूम होता है कि बादशाह अकबर के साथ उसके पूर्वजों ने जो संधि की थी, उसकी एक शर्त यह भी थी कि बूंदी का कोई राजा किसी हिन्दू नरेश के नेतृत्व में युद्ध करने के लिये नहीं जाएगा। छत्रसाल के उस युद्ध में न जाने का यही एक कारण जाहिर होता है। परन्तु वृंदी का राज वंशज कोटा का राजा अपने चार भाइयों के साथ सेना लेकर बादशाह की तरफ से फतेहाबाद के उस युद्ध में गया था। उस संग्राम में उसके चारों भाई युद्ध करते हुए अन्त में मारे गये। औरंगजेब किसी प्रकार मुगल सिंहासन पर बैठना चाहता था। इसलिए उसने अपने बड़े भाई और सिंहासन के उत्तराधिकारी दारा के साथ धौलपुर में फिर युद्ध किया। इस युद्ध में बूंदी का राजा राव छत्रसाल भी गया था और वहाँ जाने के पहले उसने इस बात की प्रतिज्ञा की कि युद्ध में या तो मैं विजय प्राप्त करूँगा, अन्यथा प्राण देकर स्वर्गलोक की यात्रा करूँगा। राव छत्रसाल अपनी इस प्रतिज्ञा के साथ बादशाह की तरफ से युद्ध के लिए रवाना हुआ था और दारा की सेना में सबसे आगे रहकर उसने औरंगजेब के साथ धौलपुर का युद्ध आरम्भ किया। दारा स्वयं एक हाथी पर बैठकर युद्ध करने के लिए गया था। लेकिन युद्ध आरम्भ होने के बाद कुछ समय में दारा युद्ध-भूमि से निकलकर भागा, उसके हटते ही बादशाह की समस्त सेना युद्ध-क्षेत्र से भागने लगी। राव छत्रसाल को यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ। परन्तु उसके साहस में कुछ अन्तर न पड़ा। उसने अपने सामन्तो और सैनिकों से स्वाभिमान पूर्ण शब्दों में कहा "हमारा कोई भी सैनिक युद्ध से भाग नहीं सकता। जो राजपूत डरकर युद्ध से भागता है, वह मरने पर नरक जाता है। मैं बादशाह की तरफ से युद्ध करने के लिए आया हूँ। मैंने यह प्रतिज्ञा की है कि युद्ध में या तो मैं विजय प्राप्त करूँगा, अन्यथा प्राण दे दूंगा।" इस प्रकार कहकर राव छत्रसाल ने अपनी सेना को युद्ध के लिए उत्तेजित किया और अपने हाथी को बढ़ाकर उसने भयानक रूप से शत्रुओं का संहार आरम्भ किया। इसके कुछ समय के बाद आग का एक गोला उसके हाथी पर आकर गिरा। उससे जलकर छत्रसाल का हाथी युद्ध से भागा। यह देखकर छत्रसाल अपने भागते हुए हाथी की पीठ से कूद कर नीचे आ गया और एक घोड़े पर चढ़कर वह फिर शत्रुओं की ओर आगे बढा। उसके आगे बढ़ते ही राजपूत सेना ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर भीपण सग्राम उपस्थित किया। दोनो ओर को 236