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बूंदी के संस्मरणो मे जोधावाई की मृत्यु के बाद बादशाह अकबर की मृत्यु का उल्लेख किया गया है। यह घटना उस समय की है, जब मानसिंह से अप्रसन्न होकर अकवर ने उसे विप दे कर मारने की चेष्टा की थी। लेकिन भूल से मानसिंह को विप खिलाने के बजाए धोखे से वह स्वयं विप खा गया, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। अकवर की मृत्यु के बाद कुछ दिनों में राव भोज की राजधानी बूंदी में उसकी जीवन लीला का अन्त हो गया। उसके तीन लडके थे, राव रतन, हिरदेव नारायण और केशवदास । हिरदेव नारायण को बादशाह से कोटा राज्य के शासन की सनद मिली थी। उसने पन्द्रह वर्ष तक वहाँ पर शासन किया। केशवदास को चम्बल नदी के किनारे ढीपरी नगर और उसके सत्ताईस ग्रामों का अधिकार मिला था। बादशाह की मृत्यु के बाद जहाँगीर मुगल-सिंहासन पर बैठा। उसने अपने लडके परवेज को दक्षिण का शासक नियुक्त किया और बुरहानपुर में शासन की सनद देकर यह उत्तर की तरफ चला गया। जहाँगीर के दूसरे लड़के शाहजादा खुर्रम ने अपने भाई परवेज के विरुद्ध एक पड़यंत्र रचा और उसने परवेज को संसार से विदा कर देने की चेष्टा की। शाहजादा खुर्रम अपने भाई को मार कर बादशाह जहाँगीर को सिंहासन से उतार देना चाहता था, इसलिए वह तैयारी करने लगा। शाहजादा खुर्रम राजपूत स्त्री से पैदा हुआ था। इसलिए उसकी सहायता में बाईस राजपूत राजा तैयार हुए और वे जहाँगीर को सिंहासन से उतारने के लिए अपनी सेनाओ के साथ एकत्रित हुए। इस कठिन अवसर पर बूंदी के राजा राव रतन ने वादशाह जहाँगीर का साथ दिया। शाहजादा खुर्रम ने भाई और पिता के विरुद्ध भयानक रूप से विद्रोह किया था और युद्ध करने के लिए उसने पूरी तैयारी कर ली थी। बादशाह जहाँगीर इस समय बड़े संकट मे था। उसकी सहायता के लिए बूंदी का राजा रतन सिंह अपने दोनों लड़कों माधव सिंह और हरिसिंह को साथ लेकर सेना के साथ रवाना हुआ। सन् 1579 ईसवी में कार्तिक शुक्लपक्ष मंगलवार के दिन यह भयानक संग्राम हुआ। उस युद्ध मे राव रतन के दोनों लड़के भयंकर रूप से घायल हुए। लेकिन बुरहानपुर के इस युद्ध मे राव रतनसिंह की विजय हुई। इसलिए वादशाह जहाँगीर ने प्रसन्न होकर राव रतन को बुरहानपुर के शासन का अधिकार दे दिया और उसने माधव को कोटा नगर एवम् उसके सभी नगरों और ग्रामों का स्वामी बनाया। इसी समय से हाड़ौती का राज्य दो भागों मे विभाजित हो गया। बूंदी के राव रतन सिंह ने यदि बादशाह जहाँगीर की सहायता न की होती तो उसके विरोधी शाहजादा खुर्रम को निश्चित रूप से सफलता मिलती और बादशाह जहांगीर मुगल सिंहासन से उतार दिया गया होता। इतना सव होने पर भी और राव रतन सिंह की सहायता का महत्व जानते हुए भी बादशाह जहाँगीर के मन मे राव रतन सिंह के विरुद्ध ईर्ष्या पैदा हुई। उसने आसानी के साथ इस बात को सोच डाला कि राव रतन शूरवीर राजपूत है और उसके दोनो लड़के उसी की तरह पराक्रमी है। यदि इन तीनों मे स्नेह बना रहा तो ये किसी भी समय अपनी शक्तियों का संगठन करके एक भयानक विपदा पैदा कर सकते हैं। इसलिए पिता और पुत्रो मे मतभेद पैदा करा देना बहुत आवश्यक है। इसी उद्देश्य से बादशाह ने राव रतन को केवल बुरहानपुर के शासन का अधिकार दिया और उसके लडके को कोटा का स्वतंत्र शासक 232