मन्त्रियों के परामर्श के अनुसार धारा नगरी के निर्माण का कार्य आरम्भ हुआ। देवराज की सेना के सभी प्रमार सैनिक तलवारें और भाले लेकर उस नगरी की रक्षा करने के लिये पहुँच गये। इसके बाद देवराज ने पूर्व निश्चय के अनुसार सेना लेकर उस नगरी पर आक्रमण किया। रक्षा करने वाले प्रमार सैनिकों ने देवराज के साथ युद्ध करना आरम्भ किया। उसी समय प्रमार सैनिको ने कहा- जह पंवार तह धार है, जहाँ धार वहाँ पवार । धारक बिना पंवार नहिं, नहिं पंवार बिन धार। जहाँ पर प्रमार रहते हैं, धारानगरी वहीं पर है। जहाँ प्रमार नहीं रहते,धारा नगरी वहाँ नहीं है। प्रमार सैनिकों ने बड़े साहस और शौर्य के साथ उस कृत्रिम धारानगरी की रक्षा करते हुए देवराज के साथ युद्ध किया। तेजसिंह और सारंग नामक प्रमार सैनिक उनका नेतृत्व कर रहे थे। उस युद्ध में समस्त प्रमार सैनिक-जो संख्या में एक सौ वीस थे- मारे गये और उनको जीत कर देवराज ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की। जो प्रमार सैनिक युद्ध करते हुए मारे गये, उनके सिद्धान्त और शौर्य से प्रसन्न होकर उनके परिवार के जीवन निर्वाह के लिए देवराज ने आर्थिक सहायता दी। इसके पश्चात् देवराज ने धारानगरी के राजा पर आक्रमण करने की तैयारी की। जिस समय वह अपनी शक्तिशाली सेना लेकर रवाना हुआ, उसके साथ युद्ध करने के लिए राजा ब्रिजभानु ने अपनी सेना भेजी। धारानगरी की सीमा के बाहर भीपण युद्ध हुआ। उसमे धारानगरी के बहुत से सैनिक मारे गये और जो सेना बाकी रह गयी, वह युद्ध-क्षेत्र छोड़ कर भागी। देवराज ने अपनी सेना लेकर धारानगरी पर आक्रमण किया। राजा ब्रिजभानु ने अपनी सेना के साथ पाँच दिन तक बराबर युद्ध किया और अंत में अपने आठ सौ सैनिकों के साथ वह युद्ध में मारा गया। देवराज ने प्राचीन धारानगरी के दुर्ग पर अपनी विजय का झंडा फहराया। इसके बाद वह लुद्रवा नगर चला गया। देवराज के मूंद और छेद नामक दो लड़के पैदा हुए। उसके दूसरे लड़के के-जिसकी स्त्री बराह वंश मे पैदा हुई थी- पाँच लडके पैदा हुए। वे लोग छेदूवंशी राजपूतो के नाम से प्रसिद्ध हुए। देरावल की निकटवर्ती भूमि में देवराज ने अनेक विशाल तालाब खुदवाये थे। तनोट नामक नगर में जो तालाब खुदवाया, उसका नाम तनोटसर रखा और एक विशाल तालाब खुदवा कर उसका नाम अपने नाम पर उसने देवसर रखा। एक दिन देवराज अपने आदमियों के साथ शिकार खेलने गया था। वहाँ पर छानिया जाति के बलोचों ने देवराज पर आक्रमण राजपूतों मे लुद्र लोगों का वंश क्या है, इसके सम्बन्ध में कोई स्पष्ट उल्लेख हमे पढ़ने को नहीं मिला । परन्तु सम्भवतः प्रत्येक अवस्था में ये लोग प्रमार वंशी राजपूत थे, जिन्होंने किसी समय भारतवर्ष की सम्पूर्ण मरुभूमि को अपने अधिकार मे कर लिया था। जिन दिनों में भाटी जाति के लोगों के द्वारा जैसलमेर में राजधानी कायम हुई थी, उसके पहले तक लुद्रवा भाटी लोगों की राजधानी थी। यह बहुत प्राचीन नगर माना जाता है। परन्तु अन्य यह नगर बिल्कुल नष्ट-भ्रष्ट हो गया है। इन दिनो में वहाँ पर गड़रिया लोगों की आबादी है। लगातार बुद्धो के कारण मरुभूमि के सभी प्राचीन नगर विध्वस हो गये हैं। लुद्रवा में दसवीं शताब्दी का ताम्र पत्र मुझे मिला था, वह ब्रिजराज अथवा बीजीराज के समय का था। वह जैन भाषा में था। . X 18 +
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