पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३९

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अहमदनगर के प्रसिद्ध युद्ध में सात सौ सैनिक स्त्रियों को लेकर चन्दा वेगम ने वादशाह की विशाल सेना के साथ युद्ध करके अपने प्राणों की आहुति दी थी। उस अहमदनगर को विजय करने के लिये बादशाह अकबर ने राव भोज को प्रधान सेनापति बनाकर और शक्तिशाली सेना देकर भेजा। भोज ने वहाँ पहुँचकर अहमदनगर के दुर्ग की दीवार को लॉच कर उसके भीतर प्रवेश किया और उस दुर्ग पर अधिकार कर लिया। राव भोज की इस सफलता पर अकवर वहुत प्रसन्न हुआ और उसने भोज को कई एक नगर पुरस्कार में देकर सेना में ऊँचा पद दिया। राव भोज ने अहमदनगर के दुर्ग की बुर्ज पर बड़ी बुद्धिमानी के साथ अधिकार किया था, इसलिये वादशाह ने प्रसन्न होकर उसके सम्मान में उस दुर्ग के भीतर एक नया वुर्ज बनवाया और उसका नाम भोज बुर्ज रखा। ____ बूंदी के राव राजा भोज ने बादशाह अकबर के साथ बहुत से उपकार किये थे और अपने शौर्य से उसने मुगल साम्राज्य की सीमा का विस्तार किया था। इतना सब होने पर भी वह एक समय बादशाह के क्रोध का शिकार बना। अकबर की रानी जोधाबाई की जब मृत्यु हो गयी तो बादशाह अकबर ने अपने यहाँ सवको रानी के मृतक-संस्कार में शामिल होने के लिये आदेश दिया। उसका यह आदेश मुसलमानों और अमीरों के लिये भी था और उनको भी मृत रानी के अन्तिम संस्कार में दाढ़ी मुंड़वा कर वाल बनवाने होंगे। बादशाह की इस आज्ञा को पूरा करने के लिये नाई ने बाल बनाने का काम आरम्भ किया और इसके लिये वह दिल्ली राजधानी में बूंदी के राजा के पास पहुंचा। राजा के सिपाहियों ने उस नाई को मार कर वहाँ से भगा दिया। ___ कुछ लोगों ने इस घटना का जिक्र वादशाह से किया और उन कहने वालों ने अपनी बात को बढ़ाकर यहाँ तक कहा कि राव भोज ने न केवल नाई को मारा है, बल्कि उसने मृत रानी को भी अनेक प्रकार के अनुचित वाक्य कहे हैं। इसको सुनकर वादशाह अकबर क्रोध से उत्तेजित हो उठा और उसने आज्ञा दी कि राव भोज को बाँध कर जवरदस्ती उसकी दाढ़ी और मूंछों को साफ कर दो। बादशाह का यह आदेश राव भोज को भी सुनने को मिला। उसने उसी समय अपने साथ के हाड़ा राजपूतों से बादशाह के आदेश का जिक्र किया। उसको सुनते ही समस्त राजपूत एक साथ उत्तेजित हो उठे और अपनी तलवारें निकाल कर वे भीषण युद्ध के लिये तैयार हो गये। यह समाचार वादशाह अकबर ने सुना। उसकी समझ में आ गया कि मैंने जो आदेश राव भोज के सम्बन्ध मे दिया था, वह किसी प्रकार न्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार की बात को सोच समझकर अकबर अपने हाथी पर सवार हुआ और वह राव भोज के यहाँ पहुँचा। बादशाह हाथी से उतर कर राव भोज के यशस्वी कार्यों की प्रशंसा करता हुआ आगे बढ़ा। बादशाह को देखते ही राव भोज अकबर की तरफ आगे बढ़ा और अत्यन्त शिष्टाचारपूर्ण शब्दों में उसने कहाः"मैं अपने पिता की भाँति सूअर का माँस खाने वाला हूँ। इसलिए मैं स्वर्गीय रानी के मृतक-संस्कार में शामिल होने का अधिकारी नहीं हूँ।" ___ बादशाह को यह सुनकर वहुत संतोष मिला और राव भोज को साथ में लेकर वह अपने स्थान को लौट गया। 231