पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३३

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के साथ सूर्यमल्ल पर तलवार का प्रहार किया और उसे पृथ्वी पर गिरा दिया। राव सूर्यमल्ल ने सम्हलकर अपने जख्मों पर पट्टी बाँधी। उसके गिर जाने पर राणा ने उस स्थान से हट जाने की कोशिश की। यह देखकर सूर्यमल्ल ने जोर के साथ ललकार कर कहा:"अब भाग क्यों रहे हो? मेवाड़ का पतन अव दूर नहीं है।" ____राणा ने सूर्यमल्ल की इस बात की कुछ परवाह न की। वह अपने घोड़े को बढ़ाकर तेजी के साथ आगे बढ़ा। सूर्यमल्ल अपने जख्मों पर पट्टी बाँधकर तेजी के साथ आगे बढ़ा। इसी समय सामन्त के लड़के ने राणा के पास जाकर कहा-"अभी कार्य पूरा नहीं हुआ, सूर्यमल्ल अभी जीवित है।" सामन्त के पुत्र से इस बात को सुनते ही राणा रत्नसिंह ने अपने घोड़े को मोड़ दिया और वह सूर्यमल्ल की तरफ रवाना हुआ। रास्ते में दोनों की भेंट हो गयी। सूर्यमल्ल को देखते ही राणा ने अपनी तलवार का वार करने की चेष्टा की। उसी समय सूर्यमल्ल ने राणा को पकड़कर घोड़े से नीचे गिरा दिया। बहुत समय तक दोनों में कुश्ती होती रही। उसके बाद राणा को गिराकर सूर्यमल्ल उसकी छाती पर चढ़कर बैठ गया और उसने एक हाथ से राणा का गला पकड़ा और दूसरे हाथ में अपनी तलवार लेकर उसने कहा- "देखो किस प्रकार बदला लिया।" इतना कहने के साथ ही सूर्यमल्ल ने राणा रत्नसिंह की छाती पर अपनी तलवार का गहरा आघात किया। राणा की उसी समय मृत्यु हो गयी। सूर्यमल्ल ने राणा को मारकर अपना बदला ले लिया। परन्तु उसी समय राणा के मृतक शरीर पर गिरकर उसने अपनी भी हत्या कर ली। इसके बाद यह समाचार बूंदी के राजमहल में पहुँचा। सूर्यमल्ल की माता ने उस समाचार को सुनकर उत्तेजित स्वर में कहाः "क्या मेरा पुत्र अकेला ही उस जंगल में मरा? क्या वह अपने साथ शत्रु को संसार से विदा करके नहीं ले गया?" सूर्यमल्ल की माता ने जिस समय वह बात अपने महल में कही, उसी समय वहाँ पहुँचकर एक आदमी ने कहा-"राव सूर्यमल्ल ने अपने शत्रु राणा रत्लसिंह को मारकर अपने प्राणों को उत्सर्ग किया है।" उस आदमी के मुख से इस बात को सुनकर वृद्धा रानी को सन्तोप मिला। ____ राव सूर्यमल्ल ने राणा रत्नसिंह की बहन के साथ विवाह किया था और राणा रत्नसिंह का विवाह सूर्यमल्ल की बहन के साथ हुआ था। राव और राणा के मृत शरीरों को लेकर दोनों रानियाँ प्रज्वलित चिता पर बैठी और सबके देखते-देखते ही सती हो गयीं। राव और राणादोनों जिस स्थान पर मारे गये थे, वहाँ पर दोनों के समाधि मन्दिर बनवाये गये। सूजाबाई का समाधि मन्दिर शिखर के ऊपर बना। इन समाधि मन्दिरों को देखकर उस समय की अवांछनीय घटना का स्मरण होता है। सूर्यमल्ल के पश्चात उसका लड़का सुरतान सन् 1535 ईसवी में बूंदी के सिंहासन पर बैठा। मेवाड़ के शक्तावत वंश के आदि पुरुप शक्तिसिंह की लड़की के साथ सुरतान का विवाह हुआ था। इन दिनों में तान्त्रिक शैवियों का बूंदी राज्य में प्रभाव बढ़ रहा था। अत्यधिक 225