पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२३१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

को स्वीकार किया। राणा ने इस विवाह के सम्बन्ध में नारायणदास से बातचीत की। विवाह में सीसोदिया वंश की लड़की का पाना हाड़ा राजपूतों के लिये बड़े सम्मान की बात थी। इसलिये राव नारायणदास ने राणा के उस प्रस्ताव को हर्षपूर्वक स्वीकार किया। इन्हीं दिनों में नारायणदास के साथ चित्तौड़ में बड़ी धूम-धाम से राणा की भतीजी का विवाह हुआ। नव विवाहिता पत्नी को लेकर नारायणदास वृंदी गया और दोनों दाम्पत्य जीवन का सुख भोग करने लगे। इन दिनों में नारायणदास का अफीम का सेवन पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ गया और एक दिन नशे के उन्माद में उसने रात के समय मेवाड़ की राजकुमारी के शरीर को आघात पहुँचाकर उसके अपूर्व सौन्दर्य को नष्ट कर दिया। सीसोदिया राजकुमारी ने उससे कुछ भी बुरा न माना। दूसरे दिन जव नारायणदास ने अपनी रानी की उस दशा को देखा तो वह बहुत लज्जित हुआ। जिस पात्र में वह अफीम रखता था, उसे अपनी रानी के हाथ में देकर उसने प्रतिज्ञा की कि आज से मैं इस प्रकार अधिक अफीम का सेवन कभी न करूँगा। राव नारायणदास ने बत्तीस वर्ष शासन करके बूंदी के राज्य का विस्तार किया। इन दिनों में बूंदी राज्य का गौरव राजस्थान में बहुत बढ़ा था। इसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी। नारायणदास के बाद उसका इकलौता लड़का सूर्यमल्ल सन् 1534 ईसवी में बूंदी के सिंहासन पर बैठा। वह अपने पिता की तरह वलिष्ठ, साहसी और पराक्रमी था। रामचन्द्र और पृथ्वीराज की तरह उसकी दोनों भुजायें रानों तक लम्बी थीं। बूंदी के राजसिंहासन पर सूर्यमल्ल के बैठने के बाद मेवाड़ का राणा वंश के साथ फिर एक वैवाहिक सम्बन्ध कायम हुआ। राव सूर्यमल्ल ने सूजाबाई नामक अपनी बहन का विवाह चित्तौड़ के राणा रत्नसिंह के साथ कर दिया और राणा रत्नसिंह ने भी अपनी बहन का विवाह राव सूर्यमल्ल के साथ किया। इन दोनों वैवाहिक सम्बन्धों के कारण दोनों राज्यों में आत्मीयता अधिक सुदृढ़ हो गयी। परन्तु वह अधिक दिनों तक चल न सकी और कुछ दिनों के बाद शत्रुता में परिणत हुई। सूर्यमल्ल भी अपने पिता नारायणदास की तरह अधिक अफीमची था। किसी अवसर पर राव सूर्यमल्ल चित्तौड़ गया था और एक दिन अधिक अफीम सेवन करके वह राज-दरवार में आँखें मूंदे बैठा हुआ था। इसी समय मेवाड़ का एक पुरबिया सामन्त वहाँ पर आया। उसने सूर्यमल्ल को आँखें बन्द किये हुए देखकर हँसी करने के अभिप्राय से एक सींक का टुकड़ा उसके कान में डाल दिया। सूर्यमल्ल ने अपने नेत्र खोल दिये और क्रोध में आकर अपनी तलवार लेकर उसने उस सामन्त के सिर को काटकर जमीन पर गिरा दिया। उस सामन्त का लड़का भी वहाँ पर उपस्थित था। अपने पिता का बदला लेने के लिये वह उत्तेजित हो उठा। परन्तु सूर्यमल्ल को पराक्रमी और भीमकाय देखकर एवम् राणा का निकटवर्ती आत्मीय समझकर उसने अपना क्रोध शान्त किया। सूजाबाई ने अपने पति और भ्राता को भोजन कराने के लिये अनेक प्रकार की सामग्री बनवाई और तैयार हो जाने पर दोनों को भोजन के लिये बुलाया। भोजन करने के लिये रत्नसिंह और सूर्यमल्ल-दोनों महल में गये। भोजन परोसकर आ जाने के बाद दोनों ने खाना 223