पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२२७

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हाड़ा वंश के लोग इतने शूरवीर और साहसी हैं कि वे युद्ध होने पर अपने प्राणों को बलिदान करेंगे। इसलिये उनके साथ युद्ध न करना ही अच्छा है। इस दशा में हाड़ा राजा हामा जी ने अधीनता के नाम पर जितना स्वीकार कर लिया था, राणा ने उसी पर सन्तोप कर लिया। बूंदी के सिंहासन पर सोलह वर्ष तक बैठकर हामा जी ने स्वर्ग की यात्रा की। उसके दो लड़के थे, वीरसिंह और लाला। लाला को खुटन्ड नाम का राज्य मिला। नव वर्मा और जैसा नाम के उसके दो लड़के थे। उन दोनों के वंशधर नववर्मा पोता और जैतावत के नाम से प्रसिद्ध हुए। हामा के बड़े लड़के वीरसिंह ने दूंदी के सिंहासन पर बैठकर पन्द्रह वर्ष तक राज्य किया। उसके तीन लड़के पैदा हुये। पहले का नाम था वीरू, दूसरे का जबदू और तीसरे लड़के का नाम था नीमा। जवदू से तीन शाखाओं की उत्पत्ति हुई और नीमा के वंशज नीमावत नाम से प्रसिद्ध हुए। पचास वर्ष तक शासन करने के बाद सन् 1470 में वीरू की मृत्यु हुई। उसके सात लड़के थे- (1) रावभाँडा (2) राव साँडा (3) अखैराज (4) राव ऊधव (5) रावचूड़ा (6) समर सिंह और (7) अमरसिंह । आरम्भ में पाँच लड़कों से पाँच वंशों की उत्पत्ति हुई। समरसिंह और अमरसिंह ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। उपकार, शौर्य और चातुर्य के लिये राजस्थान में राव भाँडा का नाम अब तक प्रसिद्ध है। लोगों का कहना है कि उसमें परोपकार की भावना इतनी अधिक थी, जितनी दूसरों में वहुत कम देखने को मिलेगी। सन् 1486 ईसवी में एक भयानक दुर्भिक्ष राजस्थान में पड़ा था। राव भाँडा ने अकाल के उन दिनों में अन्न और धन से लोगों की सहायता करके अक्षय कीर्ति पायी थी। वहाँ के एक ग्रन्थ में पढ़ने को मिलता है कि सन् 1486 के एक वर्ष पहले दूंदी के राजा राव भाँडा ने एक स्वप्न देखा था। उसमें उसने देखा कि एक भयानक अकाल पड़ा हुआ है और एक काले भैंसे पर बैठा हुआ अकाल उसके सामने आकर उपस्थित हुआ। राव भाँडा ने उसे देखकर अपनी ढाल और तलवार उठायी और उस अकाल पर आक्रमण किया। यह देख कर अकाल ने कहा-"मैं दुर्भिक्ष हूँ, मेरे ऊपर तुम्हारी तलवार का कोई प्रभाव न पड़ेगा। तुमको छोड़कर और किसी ने आज तक मुझ पर कभी आक्रमण नहीं किया। इसलिये मैं तुमसे जो कुछ कहना चाहता हूँ उसे ध्यानपूर्वक सुनो-मैं आगामी वर्ष सन 1486 में आऊँगा। उस वर्ष सम्पूर्ण भारत में अकाल पड़ेगा। तुम अभी से धन और अनाज एकत्रित करने की कोशिश करना और दुर्भिक्ष पड़ने पर तुम सबकी सहायता करना।" यह कहकर अकाल अन्तर्ध्यान हो गया। उसके बाद राव भाँडा का स्वप्न भंग हुआ। वह बड़ी देर तक अपने स्वप्न पर विचार करता रहा। अकाल के उपदेश के अनुसार उसने अन्न और धन एकत्रित करने का कार्य आरम्भ किया और उस वर्ष के अन्त तक वह वरावर अनाज संग्रह करता रहा। दूसरे वर्ष में वरसात नहीं हुई। उसके कारण सम्पूर्ण देश में अकाल पड़ गया। राव भाँडा ने पहले से ही सभी प्रकार का अनाज एकत्रित किया था। उसने अकाल के दिनों में अनाज देकर लोगों की सहायता की। दुर्भिक्ष से पीडित दूसरे राज्यों के नरेशो ने उससे अनाज की सहायता माँगी। राव भाँडा ने उनको भी अनाज की सहायता की। उस दुर्भिक्ष 219