एक सौ वीस शूरवीरों ने देवराज के साथ परामर्श करने के लिए दुर्ग में प्रवेश किया। उनके भीतर पहुंचते ही एक साथ उन पर आक्रमण हुआ। वे सव के सब मार डाले गये। जो सेना दुर्ग के बाहर रह गयी थी वह सेनापति के अभाव में घबरा कर वहाँ से भाग गयी। जो लोग दुर्ग के भीतर मारे गये थे, उनकी लाशों को देवराज ने दुर्ग के वाहर फिंकवा दिया। जिन दिनों में देवराज वराहों के राज्य में छिप कर रहा था, उन्हीं दिनों में उसे एक योगी वहाँ पर मिला और उसने उसके प्राणों को बचाने में बड़ी सहायता की थी। इन दिनों में योगी वहाँ पर आकर देवराज से मिला और उसने देवराज को सिद्ध पुरुष की पदवी दी। वह योगी अपनी शक्ति से किसी भी धातु को स्वर्ण बना देता था। बराह राज में देवराज गुप्त रूप से जिस घर में रहता था, उसी घर में वह योगी भी रहा करता था। एक दिन वह योगी अपने रासायनिक घड़े को वहीं पर रखकर वाहर चला गया। उस बड़े में एक प्रकार का रासायनिक रस भरा हुआ था। उस रस की एक बूंद के स्पर्श से देवराज की सम्पूर्ण तलवार स्वर्ण की हो गई देवराज उसी अवसर पर उस घर से निकला और बराह राज्य से भाग कर अपने नाना के यहाँ पहुँचा और वहाँ से मरुभूमि में पहुँच कर एवं घड़े में भरे हुए रासायनिक तत्वों की सहायता से उसने अपरिमित सम्पत्ति अपने अधिकार मे कर ली, जिससे वह उस मरुभूमि में विशाल दुर्गो का निर्माण करा सका। देवराज के चले आने के बाद बहुत दिनों में उस योगी ने सुना कि देवराज आजकल एक राज्य का अधिकारी है तो उसने देवराज के पास आकर और उससे भेंट करके उसने कहा- "आपने मेरी जिस सम्पत्ति का अपहरण किया है,उसको मैं केवल इस शर्त पर कहीं प्रकट न करूंगा यदि आप मेरे चेले हो जाएँ और मेरी तरह योगी का वेश धारण करें।" देवराज ने उसी समय योगी की वात को स्वीकार कर लिया। उसने गेरुए वस्त्र पहने। कानों में कुण्डल पहने और हाथ में कमण्डल लेकर उसने अपने वंश वालों के दरवाजे पर जाकर भीख मांगना आरम्भ किया। उसका वह कमण्डल सोने की बहुमूल्य चीजों से भर जाता था। यदुवंशियों की उपाधि बहुत पहले से राय थी। लेकिन इस योगी से सम्पर्क के बाद यदुवंशियों की उपाधि रावल हो गयी। इस रावल की उपाधि को देकर योगी ने जिस विधान से देवराज का राजतिलक किया उस विधान को राजतिलक के समय मानने के लिए देवराज को विवश किया गया, जब तक यदु का वंश रहेगा। देवराज ने हर्प पूर्वक इसे स्वीकार किया। इसके बाद वह योगी अदृश्य हो गया। देवराज के जीवन की सभी परिस्थितियाँ वदल गयी थीं और उसने अपने आपको शक्तिशाली बना लिया था। इसलिए यदुवंशियों का विनाश करने वाली वराह जाति के लोगों से बदला लेने की उसने तैयारी की और आक्रमण करके उसने वराह लोगों को परास्त किया। इसके साथ-साथ उसने उनके राजमहलों में प्रवेश करके सभी प्रकार के अत्याचार किये और उन लोगों से बदला लेकर वह देवरावल लौट आया। इसके बाद उसने लंगा लोगों पर आक्रमण किया। लंगा का युवराज अपनी सेना के साथ विवाह के लिए अलीपुर जा रहा था। इसी अवसर पर देवराज अपनी सेना लेकर रवाना हुआ और उन लोगों पर आक्रमण करके उनके एक हजार आदमियों को मार डाला। परास्त होकर लंगा के युवराज ने देवराज की अधीनता स्वीकार कर ली। 15
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