पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१९७

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राजपूतो की संख्या शेष सम्मिलित जातियो के मुकाबले में बहुत कम थी। लेकिन मीणा जाति के लोगो को छोड़कर राजपूत किसी भी जाति से अलग-अलग कम न थे। मीणा लोगों की संख्या निश्चित रूप से अधिक थी। बाकी जातियों में राजपूत अधिक थे। वहाँ पर जो जातियाँ रहती हैं, उनमे प्रमुख इस प्रकार हैं.-मीणा, राजपूत, ब्राह्मण, वैश्य, जाट, धाकर अथवा किरात और गूजर इस प्रकार वहाँ के रहने वालों मे ऊपर लिखी हुई सात जातियाँ प्रमुख मानी जाती हैं। मीणा-इस जाति के लोग जिन प्रमुख शाखाओं में विभाजित हैं, उनकी संख्या 3.1 से कम नहीं है। राजस्थान के प्रत्येक राज्य में मीणा लोगों की संख्या अधिक है। इसलिा उनका वर्णन हमने एक पृथक परिच्छेद में करना मुनासिब समझा है। आमेर राज्य में मीणा लोगों को सभी प्रकार के राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं। नरवर के निर्वासित राजा को मीणर लोगो के द्वारा ही आमेर का सिंहासन प्राप्त हुआ था। मीणा लोगों को सभी प्रकार के राज्याधिका प्राप्त होने का प्रमुख कारण यह था कि आरम्भ में कुशवाहा राजा ने उनको पराजित करके उन्न पर किसी प्रकार का आधिपत्य नहीं किया था बल्कि मीणा लोगों ने अपने आप पराजित होग पर उनकी अधीनता स्वीकार कर ली थी और इसके फलस्वरूप काली खोह के मीणा लोग जयपुर के राज्याभिषेक के अवसरों पर अपने रुधिर से तिलक करने लगे थे। अनेक उदाहरणंर से यह जाहिर होता है कि विश्वासी होने के कारण उनको जयपुर राज्य में उत्तरदायी पदों पा रखा जाता था। जयपुर के खजाने में और वहाँ के दरबारी कागजों की देखभाल रखने में मीण लोग ही काम करते थे। राजधानी के विश्वस्त कार्य, राजा के शरीर-रक्षक सैनिक होने का पर और इस प्रकार के दूसरे उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य उनको सौपे जाते थे। मीणा लोगों को पहले अपना झण्डा फहराने और नक्कारा वजाने का अधिकार था। लेकिन बाद में उन्हें इस अधिका: से वंचित कर दिया गया। जयपुर राज्य में खेती का काम अधिक संख्या में मीणा, जाट औ. किरात लोग करते हैं। जाट-जाटो की संख्या भी लगभग मीणा लोगों के बराबर समझी जाती है। इनके अधिकार के ग्रामों और नगरों की संख्या भी अधिक है। खेती के काम में ये लोग अधिक परिश्रमी होते हैं। ब्राह्मण-समाज में जो धार्मिक प्रथाये हैं, उन पर ब्राह्मणों ने अपना अधिकार कर रखा है। दूसरी जातियों के लोग धार्मिक कार्यों में ब्राह्मणो को ही अधिकारी समझते हैं। राजस्थान के अन्यान्य राज्यों की अपेक्षा जयपुर राज्य में ब्राह्मण अधिक पाये जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि इन ब्राह्मणों के राजा अपने पड़ोसी राजाओं से अधिक धार्मिक हैं बल्कि इसके विरुद्ध जयपुर के राजा अन्य राजाओं की अपेक्षा अधिक अधर्मी और अपराधी हैं। राजपूत-यह बात अब भी देखी जाती है कि अगर कुशवाहो के राज्य में युद्ध सम्बन्धी आवश्यकता पड़ती है और कुशवाहा लोग उत्तेजित किए जाते हैं तो अपने वंश के तीस हजार लोगों को लेकर वे युद्ध क्षेत्र में पहुंच जाते हैं। उनमें नरूका और शेखावत वंश भी शामिल हैं कुशवाहा राजाओं में पाजून, राजा मान और मिर्जा राजा आदि उतने हो शूरवीर और योग्य हुए हैं, जितने कि अन्य वंशों में। लेकिन राठौरों की तरह साहस और शौर्य में ये लोग ख्याति नही 189