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अध्याय-61 जयपुर राज्य की सामान्य जानकारी कुशवाहा जाति के जन्म, उत्थान और विस्तार की तरह शेखावाटी और माचेडी के अधिकारियों के वंशजों का भी इतिहास है। सम्भव है कुछ लोगो को आठ सौ वर्षों में पन्द्रह हजार वर्गमील की भूमि पर फैले हुए इन लोगो के इतिहास मे कुछ दिलचस्पी न मालूम हो। लेकिन इस वंश के चालीस हजार मनुष्य अपने राजा और राज्य की रक्षा करने के लिए सदा अपने हाथों में तलवारें लिए हुए तैयार रहते हैं। अपने राज्य को ही वे अपना देश समझते हैं और देश का नाम राजपूतों में जादू का सा प्रभाव पैदा करता है। इन राज्यो के अगणित उदाहरणो के आधार पर हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि इस देश में देशभक्ति और कृतज्ञता का अभाव नहीं है। सीमा और विस्तार-आमेर और उसके अधिकृत राज्यो की सीमा का नक्शा देखने | से भली भॉति मालूम होता है कि उसकी सीमा का विस्तार कहाँ तक है। फिर भी जयपुर राज्य पश्चिम में मारवाड़ की सीमा के अन्त में सॉभर झील तक, पूर्व में जाटों की सीमा के पार स्त्रौथ नगर तक फैला हुआ है। अंग्रेजी पैमाने के हिसाब से जयपुर राज्य एक सौ बीस मील चौडा और उत्तर से दक्षिण में शेखावाटी को मिलाकर एक सौ अस्सी मील लम्बा है। इसकी जमीन एक सी नहीं है। खास जयपुर अथवा ढूंढार की जमीन नौ हजार पाँच सौ वर्ग मील है और शेखावाटी की पाँच हजार चार सौ वर्ग मील है। समस्त भूमि मिलाकर चौदह हजार नौ सौ वर्ग मील है। आबादी-जयपुर राज्य में रहने वाली सभी जातियो की सही संख्या लिख सकना सम्भव नहीं है। इसलिए प्राप्त सामग्री के आधार पर बहुत सही अनुमान लगाकर इतना ही कहा जा सकता है कि इस राज्य की एक वर्ग मील की भूमि मे एक सौ पचास और शेखावाटी में प्रति वर्ग मील अस्सी मनुष्य रहते हैं। जयपुर और शेखावाटी को मिला कर एक सौ चौबीस मनुष्यों के औसत से एक लाख पिच्यासी हजार छ: सौ सत्तर मनुष्यों की वहाँ आबादी है। लेकिन मकान से भरे हुए राज्य के बड़े-बड़े नगरों को देखकर जब हम समझने की कोशिश करते हैं तो मालूम होता है कि जो संख्या मनुष्यों की ऊपर दी गयी है वह किसी प्रकार अधिक नहीं हो सकती। सब मिला कर राज्य में छोटे-छोटे गाँव और पुरवा छोड़कर चार हजार ग्राम और नगर हैं। शेखावाटी के ग्रामों और नगरों की संख्या जयपुर से आधी है। जिसमें से सीकर और खण्डेला के लक्ष्मण सिंह और खेतड़ी के अभय सिंह में प्रत्येक लगभग सौ ग्रामों और नगरो का स्वामी था। रहने वालों का जातीय विभाजन-वहाँ पर रहने वाली विभिन्न जातियों की संख्या निश्चित रूप से नहीं लिखी जा सकती। परन्तु प्राप्त साधनों से यह स्वीकार करना पड़ता है कि 188