पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८९

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नहीं किया और उसने अपने सैनिकों से कहा- "शत्रु की सेना ने जव खण्डेला नगर पर अधिकार कर लिया है तो वहाँ के दुर्ग में जाना किसी प्रकार वुद्धिमानी की वात नहीं हो सकती।" ___हनुमन्त सिंह की इस वात को सुनकर उसके साथ के सैनिक चुप हो गये। इसी समय हनुमन्त सिंह ने अपने सैनिकों से फिर कहाः "हम सव लोग मिलकर इस बात की प्रतिज्ञा करें कि शत्रुओं का संहार करते हुए हम लोग अपने प्राणों की वलि देंगे।" हनुमन्त सिंह के इन तेजस्वी वाक्यों को सुनकर उसके सैनिक प्रोत्साहित हो उठे। इसके वाद अपने समस्त सैनिकों को लेकर हनुमन्त सिंह आवेश में दुर्ग से वाहर निकला और उसने शत्रुओं पर भीपण रूप से आक्रमण किया। उसके इस आक्रमण से शत्रु की सेनायें परास्त, हो गयीं। इसी समय हनुमन्त सिंह ने बाहरी दुर्ग को अपने अधिकार में कर लिया, जो शत्रुओं के हाथों में चला गया था। शत्रु की भागी हुई सेना ने लौटकर फिर से युद्ध आरम्भ किया और प्रातःकाल से लेकर सायंकाल तक दोनों तरफ से भयानक युद्ध होता रहा। हनुमन्त सिंह ने अपने प्राणों का मोह छोड़कर एक वार फिर शत्रुओं का संहार किया। शत्रु सेना के पैर उखड़ गये। लक्ष्मण सिंह के साथ जो सेनायें आयी थीं, वे युद्ध छोड़कर भागी। हनुमन्त सिंह ने शत्र की सेनाओं का पीछा किया। उस समय एकाएक शत्रु की एक गोली इस प्रकार उसके लगी कि वह तुरन्त गिर गया और उसकी मृत्यु हो गयी। हनुमन्त सिंह के मारे जाने पर शत्रुओं की विजय हुई। दूसरे दिन प्रात:काल हनुमन्त सिंह का अन्तिम संस्कार करने और घायल सैनिकों को ले जाने के लिए लक्ष्मण सिंह से कुछ समय तक शांति रखने की प्रार्थना की गयी। लक्ष्मण सिंह ने उसे स्वीकार कर लिया और इसी मौके पर लक्ष्मण सिंह की तरफ से अभय सिंह और प्रतापसिंह के सामने संधि का प्रस्ताव उपस्थित किया गया। लेकिन अभयसिंह और प्रतापसिंह ने उसको स्वीकार नहीं किया। हनुमन्त सिंह के मारे जाने पर उसके बचे हुए सैनिक फिर से दुर्ग में चले गये थे। उनके खाने के लिए उदय सिंह के सामन्त ने अपने सैनिकों के द्वारा भोजन की सामग्री उस दुर्ग में भेजी। खेतड़ी का सामन्त इस मौके पर जयपुर में था। इसलिये वह हनुमन्तसिंह की कोई सहायता न कर सका। लेकिन उसने अपने लड़के को आदेश दिया था कि हमारी अनुपस्थिति में बिसाऊ के सामन्त की सलाह से काम करना, परन्तु विसाऊ के सामन्त ने लक्ष्मण सिंह से धन लेकर उसी का समर्थन किया था। हनुमन्त सिंह के बचे हुए सैनिक दुर्ग में पहुँच गये थे। वहाँ पर वे वाजरे की रोटियाँ खाकर पाँच सप्ताह तक दुर्ग की रक्षा करते रहे। इसके बाद उनके खाने-पीने का कोई प्रवन्ध , न हो सका, जिससे वे आत्म-समर्पण करने का विचार करने लगे। इसी मौके पर लक्ष्मण सिंह ने अभय सिंह और प्रतापसिंह को दस नगरों का अधिकार देने के लिये प्रस्ताव किया, लकिन अभय सिंह ने मन्जूर नहीं किया। प्रताप सिंह ने लक्ष्मण सिंह से पाँच नगर लेकर युद्ध समाप्त किया। हनुमन्त सिंह के जो सैनिक अभी तक दुर्ग में थे, उन्होंने आत्म समर्पण कर दिया। इस प्रकार युद्ध समाप्त हो गया। इसके कुछ दिनों वाद लक्ष्मण सिंह ने प्रताप सिंह को दिये हुए पाँचों नगरों पर अधिकार कर लिया। उसके बाद अभयसिंह और प्रताप सिंह झुंझुनूं नामक स्थान पर चले गये और बड़ी गरीवी के साथ अपने दिन व्यतीत करने लगे। उन दिनों में उनकी 181