पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८७

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सभी सामन्त अपनी-अपनी सेनायें लेकर आमेर की राजधानी में आ गये। राजा जगत सिंह ने राजधानी में एकत्रित सेनाओं का नेतृत्व दूनी के राव चाँदसिंह को सौंपा और राव चाँदसिंह उस विशाल सेना को लेकर आमेर से रवाना हुआ। उसने धोमगढ़ पहुँचकर वहाँ के दुर्ग को घेर लिया। इसके वाद ही एक दूसरी घटना घट गयी। जयपुर राज्य के पक्ष में जो सामन्तों की सेनाये आयी थीं, उनमें से एक दल ने टोंक के अन्तर्गत एक नगर पर आक्रमण किया और उसको लूट लिया। उस नगर में गोगावत वंशी एक आदमी मारा गया और आक्रमणकारी दल ने उसकी भी सम्पत्ति लूट ली। जो आदमी मारा गया था, उसका लड़का गोगावत वंश के प्रधान राव चाँदसिंह के पास गया और उसने सब कुछ बताकर उससे सहायता माँगी। चाँदसिंह ने उसकी सहायता में एक सेना भेजी। उसने अपनी सेना को आदेश दिया कि आक्रमणकारी दल ने जो लूट की है, उस पर अधिकार कर लिया जाये और आक्रमणकारी दल वहाँ से कुछ ले न जा सके। यह कह कर उसने अपनी सेना को आने वाले लड़के के साथ भेजा। राव चाँदसिंह की सेना को आक्रमणकारी दल लूटी हुई सम्पत्ति देने के लिये राजी नहीं हुआ। यह सुनकर राव चॉदसिंह को बहुत क्रोध मालूम हुआ और उसने आक्रमणकारी दल के साथ युद्ध करने के लिए एक बड़ी सेना तैयार की। इस प्रकार शेखावत और गोगावत लोगों में युद्ध की तैयारियां होने लगी। वे लोग अमीर खाँ को दमन करने की बात भूल गए और आपस में एक दूसरे का विनाश करने के लिए तैयार हो गये। शेखावत सामन्तों की सेनाएँ राव चाँदसिंह के साथ युद्ध करने के लिये रवाना हुई। चॉदसिंह स्वयं इसके लिये पहले से ही तैयार हो चुका था। परिणाम यह हुआ कि दोनों तरफ से युद्ध की आग भड़की। इस आपसी विद्रोह में केवल सीकर का सामन्त तटस्थ था। इस युद्ध के शुरू होने के पहले खंगारोत वंश के एक सरदार ने मध्यस्थ होकर इस बात की कोशिश की कि ऐसे मौके पर कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिये, जिससे दोनों पक्षों के सम्मान की रक्षा हो सके। खण्डेला राज्य की सेना ने गोगावत लोगों की सम्पत्ति लूटी है और उसे वे अपने राज्य में ले गये हैं। लेकिन यदि वे लोग उस सम्पत्ति और सामग्री को प्रधान सेनापति के पास भेज दें तो दोनों तरफ का सम्मान कायम रह सकता है। उसके इस निर्णय को शेखावत लोगों ने स्वीकार कर लिया और उस समय जो युद्ध होने जा रहा था,वह खत्म हो गया। परन्तु इससे राव चाँदसिंह को सन्तोप न मिला। आपसी विनाश से उन लोगो की रक्षा हुई। परन्तु उसका दुष्परिणाम यह निकला कि आपसी सहयोग की भावना छिन्न-भिन्न हो गयी और उन सब ने भीमगढ़ पर जो वेरा डाला था, उसे छोड़कर सभी सामन्त अपने-अपने नगरो को चले गये। ___ सीकर का सामन्त लक्ष्मण सिंह आपसी विद्रोह में किसी तरफ शामिल नहीं हुआ था। वह पहले से खण्डेला पर अधिकार करने की बात सोच रहा था। समय का उसने लाभ उठाने की कोशिश की। वह तेजी के साथ सीकर पहुँच गया और सीसोह नामक स्थान को उसने जाकर घेर लिया। किसी प्रकार वहाँ पर उसका अधिकार हो गया। पठान सेनापति के विरुद्ध युद्ध करने के लिये जयपुर की जो सेनाएँ गयीं थीं। उसमे एक सीकर का सामन्त भी था। इस समय आपसी विद्रोह का लाभ उठाकर वह किसी प्रकार खण्डेला का शासन प्राप्त करना 179