पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८६

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कर में दिया करें और इस समय चालीस हजार रुपये भेंट में दें। सन्धि की इन शर्तों को सामन्तों ने स्वीकार कर लिया। इसलिये खण्डेला नगर और उसके अधिकार की दूसरी जागीरे उनके वारिसों को दी गयीं। इस तरह अभयसिंह और प्रतापसिंह को उनके पिता के अधिकार फिर से खण्डेला राज्य में मिल गये। इन सामन्तों के साथ जयपुर की जो सन्धि हुई थी, उसे स्वीकार करके चालीस हजार रुपये सामन्तों ने राजा को भेट में दे दिये और उसके बाद शासन की जो सनदें सामन्तों को दी गयीं, उन पर प्रधानमंत्री और राजा के हस्ताक्षर हो चुके थे। परन्तु राज्य की तरफ से नागा लोगों की जो सेना खण्डेला के दुर्ग की रक्षा में थी, वह अभयसिंह और प्रतापसिंह को खण्डेला के अधिकार देने के लिये तैयार न हुई। यह देखकर हनुमन्तसिंह को सन्देह हुआ और वह सोचने लगा कि खुशहाली राम बोहरा ने धोखा देकर हम लोगो से चालीस हजार रुपये ले लिये हैं। उसने गम्भीर होकर खण्डेला के अभयसिंह और प्रतापसिंह से पूछा "यदि मैं जयपुर के इन सैनिकों से लड़कर अधिकार लेने की कोशिश करूँ तो आप लोग कितने सैनिक देकर मेरी सहायता करेंगे?" अभय सिंह और प्रतापसिंह के अधिकार में इस समय पाँच सौ सैनिक थे। अभय सिंह और प्रतापसिंह की अनुमति लेकर हनुमन्त सिंह ने उनमें से तेजस्वी और शूरवीर राजपूतो को अपने साथ लिया और वह दुर्ग के द्वार पर पहुँच गया। उसने अपने आपको छिपाकर दुर्ग के भीतर जो नागा लोगों की सेना थी, उनके अधिकारी के पास सन्देश भेजा- "में हनुमन्त सिंह का दूत हूँ। आपके पास कुछ परामर्श करने के लिये मैं भेजा गया हूँ। इसलिये मुझे अपने साथियों को लेकर आपके पास आने की आज्ञा दी जाये।" दुर्ग के अधिकारी ने यह सन्देश पाकर उसे आने के लिये आदेश दे दिया। हनुमन्त सिंह ने अपने बीस सशस्त्र सैनिकों के साथ दुर्ग में प्रवेश किया। उनके पीछे उसके और भी बीस सैनिक वहाँ पर पहुँच गये। इनके भीतर पहुँच जाने के बाद अभय सिंह और प्रताप सिंह की सेना दुर्ग के फाटक पर आ गयी। हनुमन्त सिंह ने नागा सैनिको के सरदार को अपना सही परिचय देकर कहा:"जयपुर के राजा और वहाँ के राजमंत्री के हस्ताक्षरो के साथ यहाँ के शासन की सनद हमारे पास है। इसलिए यदि आप लोग तुरन्त इस दुर्ग को छोड़कर न चले जायेगे तो आप लोगो का एक भी सैनिक यहाँ पर जीवित न रहेगा।" हनुमन्त सिंह के इन शब्दों को सुनकर दुर्ग का अध्यक्ष भयभीत हो उठा और वह अपने सैनिको को लेकर दुर्ग से चला गया। उन सबके निकल जाने के बाद अभय सिंह और प्रताप सिह ने फिर से अपने पिता के राज्य पर अधिकार प्राप्त किया और उस समय से हनुमन्त सिंह के साथ उनका कोई बैर-विरोध बाकी न रहा। ___ इस घटना के कुछ ही दिनों के बाद जयपुर के राजा को समाचार मिला कि पठान सेनापति अमीर खॉ उसके राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है, यह सुनकर उसने अमीर खाँ का दमन करने का प्रयत्न किया। राजा जगत सिंह ने राज्य के सभी सामन्तो के पास सन्देश भेजे और उनको सेनाओ के साथ अपनी राजधानी बुलाया। मोहम्मदशाह खाँ अमीर खॉ का सेनापति था और वह धोमगढ में रहता था। राजा जगत सिंह के संदेश के अनुसार 178