पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८४

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जिनको लेकर वह अकेला रहा करता था, राजा वृन्दावन दास भी अपनी वृद्धावस्था में युद्ध करने के लिये इस सेना में आकर मिल गया था। राजा जगत सिंह की सहायता में इस समय एक विशाल सेना इस स्थान पर एकत्रित हो चुकी थी। रायसलोत, सिद्धानी, भोजानी और लाडखानी सेनाओ के साथ शेखावत सामन्तो की सेनायें भी मारवाड़ पर आक्रमण करने के लिये जगत सिंह के अधिकार में आ गयी थी। कृष्णकुमारी के विवाह का प्रश्न लेकर मारवाड़ के राजा मानसिंह के साथ जगतसिंह का जो युद्ध हुआ था, उसका वर्णन मारवाड़ के इतिहास में लिखा जा चुका है। इसलिये यहाँ पर फिर से उसका उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं है। इस युद्ध में शेखावत सामन्तो ने अपनी जिस वीरता का प्रदर्शन किया था, जगतसिंह के युद्ध से भाग जाने के कारण वह सब बेकार हो गया। इस युद्ध में खण्डेला का राजा नरसिंह और वृद्ध वृन्दावनदास-दोनों ही मारे गये। नरसिंह के बाद उसका लड़का अभय सिंह अपने पिता के स्थान पर अधिकारी हुआ। राजा जगत सिंह ने अभय सिंह के साथ आँखें बदलीं। उसने अभय सिंह को उसके पिता के राज्य का अधिकार देने से इनकार कर दिया। इस दशा में अभय सिंह माचेड़ी के राजा वखतावर सिंह के पास चला गया। उसने भी अभय सिंह के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया। इसलिये अपना-अपना अनुभव करके अभयसिंह एक सप्ताह में माचेडी से चला गया। इन दिनो में मराठा सेनापति बापू सिंधिया दौसा नामक स्थान पर रहता था। खण्डेला का प्रतापसिंह अपने पुत्र के साथ सिधिया के पास पहुंचा। इन्हीं दिनों मे हनुमन्त सिंह ने गोविन्दगढ़ पर अधिकार करने के लिये फिर से चेष्टा की। उसने अपने साठ शूरवीर सैनिकों को सायंकाल एक नदी के किनारे छिपा कर रखा और आधी रात के समय पहाड़ी रास्ते से उसने एक-एक को दुर्ग की तरफ रवाना किया। उन सैनिकों ने दुर्ग की दीवारों पर चढ़ कर वहाँ की रक्षक सेना का संहार करना आरम्भ किया। दुर्ग के सैनिक सजग और सावधान होकर युद्ध करने लगे। उस युद्ध में हनुमन्तसिंह की विजय हुई। दुर्ग के बचे हुए सैनिक भाग गये। उनके चले जाने पर हनुमन्तसिंह ने दुर्ग पर अधिकार कर लिया। हनुमन्तसिंह ने कई सप्ताह तक दुर्ग में रहकर दो हजार सैनिकों का संगठन किया और इसके बाद उसने जयपुर के राजा के साथ युद्ध करने का इरादा किया। इस बीच में उसने खण्डेला के आसपास के अनेक स्थानो पर अधिकार कर लिया। वहाँ पर जयपुर की तरफ से जो सेना रहती थी, वह भाग गयी। उन स्थानों की रक्षा के लिये खुशियाली राम नामक एक अधिकारी दरोगा जयपुर की तरफ से नियुक्त था। खण्डेला में इस समय उसी का शासन था। वह भाग गया और जयपुर के राजा के पास पहुँचकर उसने सव समाचार सुनाया। वह दरोगा बड़ा पड़यंत्रकारी था। खण्डेला के दुर्ग में एक सौ सैनिक रखने का जयपुर की तरफ से आदेश था। खुशहाली राम उतने सैनिको के स्थान पर केवल तीस सैनिक रखता था और बाकी सैनिकों के वेतन को लेकर वह स्वय अधिकारी बन जाता था। उसकी इस चालाकी का लाभ हनुमन्तसिह ने उठाया और उसके तीस सेनिको को परास्त करके उसने उस दुर्ग पर आसानी के साथ अधिकार कर लिया। दारोगा खुशहाली राम के द्वारा खण्डेला के दुर्ग का समाचार सुनकर जयपुर का राजा अत्यन्त क्रोधित हुआ। उसने वहाँ पर फिर से अधिकार करने के लिये रतन चन्द नामक 176