पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१८२

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और उसने भविष्य में इस प्रकार का कोई अनिष्ट न करने का निश्चय किया। साथ ही उसने श्यामसिह के कहने पर जयपुर की राजधानी में आना और वहाँ के राजा के साथ भेंट करना भी स्वीकार कर लिया। इसके कई दिनों के बाद अपनी सेना लेकर संग्राम सिंह ने जयपुर नगर में प्रवेश किया। उसके वहाँ पहुँचने पर प्रकट रूप से किसी को कुछ कह सकने का साहस न हुआ, परन्तु प्रधानमंत्री मानजीदास के मनोभावों में संग्रामसिंह के विरुद्ध कुछ बातें पैदा होने लगीं। ___ जयपुर के राजा की तरफ से श्यामसिंह ने संग्रामसिंह के पास जाकर जो बातें की थीं, उनके फलस्वरूप संग्राम सिंह ने शत्रु की राजधानी में साहसपूर्वक प्रवेश किया था। ऐसे अवसर पर प्रधानमंत्री मानजीदास सोचने लगा कि इस अवसर का लाभ क्यों न उठाया जाये। यद्यपि वह जानता था कि यदि किसी प्रकार के पड़यंत्र के द्वारा संग्राम सिंह कैद किया गया तो राजा का यश कलंकित होगा, इसलिये ऐसा करना राजनीति के विरुद्ध है, फिर भी वह संग्राम सिंह को कैद करने के लिये किसी उपाय की खोज करने लगा। इसके कुछ घण्टों के बाद जयपुर के राजा को समाचार मिला कि संग्राम सिंह जयपुर को छोड़ कर तंवरावाटी चला गया है और तंवर तथा लाडखानी लोग भी उससे मिल गये हैं। उसने यह भी सुना कि संग्राम सिंह के अधिकार में इस समय एक हजार अश्वारोही राजपूत सैनिक है। जयपुर से निकल कर चले जाने के बाद संग्राम सिंह ने अपनी सेना के साथ उस राज्य के ग्रामो और नगरों को फिर से लूटना आरम्भ किया। उनसे कर वसूल करने के लिये उसने दूत भेजे। जिन लोगों ने कर देने से इनकार किया, उनके सरदारों को उसने कैद कर लिया और कर मिल जाने के बाद उसने उनको छोड़ दिया। जिनसे कर नहीं वसूल हुआ, उनके ग्रामों और नगरों को लूटकर उनकी सम्पत्ति और सामग्री ऊँटों पर लाद कर वह अपने साथ ले चला। इस प्रकार लूटमार करता हुआ संग्राम सिंह जयपुर की एक रानी के अधिकृत माधवपुर नगर में पहुँचा। वहाँ पर उसके मस्तक में एक गोली लगी, जिससे उसकी मृत्यु हो गयी। उसका शव रानोली मे लाकर जलाया गया। संग्राम सिंह के मारे जाने पर उसका लडका उसके स्थान पर अधिकारी हुआ। वह अपने पिता की तरह तेजस्वी और शक्तिशाली था। उसने पिता का अनुकरण किया और जयपुर राज्य के ग्रामों और स्थानो को वह लूटने लगा। इसके बाद जयपुर के राजा ने उसके साथ संधि की और उसके पिता का सूजावास नगर उसको दे दिया। इसके पश्चात् लूट-मार बन्द हो गयी। इन दिनो में राजा जगत सिंह आमेर के सिंहासन पर था और रामचन्द वहाँ का प्रधान मंत्री था। पोकरण के सामन्त सवाई सिंह ने बालक धौंकल सिंह के अधिकार को लेकर जो संघर्प पैदा किया था, वह चल रहा था। प्रधानमंत्री रामचन्द ने इस बात की पूरी कोशिश की थी कि जगतसिंह का विवाह कृष्णकुमारी के साथ हो जाये। इस समय उसने राजनीति से काम लिया। उसने शेखावाटी के असन्तुष्ट सामन्तों को मिलाकर अपने पक्ष में कर लेना बहुत जरूरी समझा। इसके लिये उसने सबसे पहले अपने भतीजे कृपाराम को शेखावाटी के सामन्तों के पास भेजा और कृपाराम ने अपनी सहायता के लिये शेखावाटी पहुंचकर वहाँ के एक 174