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अपने छोटे भाई लक्ष्मण सिंह को वहाँ पर अधिकारी बना कर रखा और स्वयं अपनी सेना के साथ जयपुर के सेनापति के पास जाकर उससे मिल गया। कैदी प्रताप सिंह का लड़का हनुमन्त सिंह खण्डेला में था। उसने जब सुना कि बाघसिंह जयपुर की सेना के साथ मिल गया है तो उसने इस अवसर का लाभ उठा कर खण्डेला के दुर्ग पर अधिकार करने का निश्चय किया। उसने अपने राजपूत सैनिकों के साथ रात में चल कर खण्डेला के दुर्ग को घेर लिया और फिर मौका पाकर सुनसान रात में दुर्ग की दीवारों पर चढ़कर अपने सैनिकों के साथ उसने बड़ी सावधानी के साथ दुर्ग में प्रवेश किया। वहाँ पर लक्ष्मणसिंह के साथ-साथ उसके सैनिकों को मार डाला गया और हनुमन्त सिंह ने उस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया। लक्ष्मण सिंह के मारे जाने का समाचार वाघसिंह को मिला। वह अपने साथ सेना लेकर खण्डेला की तरफ रवाना हुआ। हनुमन्त सिंह अपने सैनिकों के साथ वहाँ के दुर्ग के भीतर मौजूद था। बाघसिंह ने वहाँ पहुँचकर दुर्ग पर गोलों की वर्षा आरम्भ की। हनुमन्त सिंह ने युवक लक्ष्मण सिंह की हत्या की थी। इसलिए खण्डेला के निवासी उससे वहुत अप्रसन्न हो गये थे। उन सबने बाघसिंह की सहायता की। खण्डेला की स्त्रियाँ भी इस अवसर पर बाघसिंह के पक्ष में अपने घरों से निकली। हनुमन्त सिंह और उसके सैनिकों ने बहुत समय तक दुर्ग के भीतर अपनी रक्षा की। लेकिन अन्त में संधि के लिए श्वेत झण्डा दिखाकर उन लोगों ने दुर्ग का फाटक खोल दिया। बाघसिंह ने अपने सैनिकों के साथ उसमें प्रवेश किया। उसने हनुमन्त सिंह पर आक्रमण करके अपने भाई का बदला लेने का निश्चय किया। लेकिन हनुमन्त सिंह दुर्ग के भीतर से पहले ही निकल गया था, इसलिए वह निराश हो गया। इन्हीं दिनों में दीनाराम को जयपुर राज्य के मंत्री पद से उतार कर मानजीदास को उसके स्थान पर नियुक्त किया गया। रोडाराम अभी तक शेखावाटी में कर वसूल करने का काम कर रहा था। उसकी तरफ से एक ब्राह्मण इसके लिए नियुक्त किया गया। वह ब्राह्मण इस कार्य में बड़ा चतुर साबित हुआ और पहले वर्ष में ही उसने कर वसूल करने का इतना अधिक काम किया कि रोडाराम ने उसे अगले दो वर्षों का अधिकार भी दे दिया। रोडाराम की तरफ से शेखावाटी में जो ब्राह्मण कर वसूल कर रहा था, उसके अधिकार में जयपुर की सेना थी। उस ब्राह्मण ने शेखावाटी के उन सामन्तों से भी बलपूर्वक कर वसूल किया, जो अभी तक स्वतंत्रतापूर्वक अपनी जागीरो में रहते थे। जिन लोगों ने कर नहीं दिया, उनके नगरों और दुर्गो पर आक्रमण करके उसने अधिकार कर लिया। जयपुर के राजा ने नरसिंह और प्रताप सिंह को अपने राज्य मे कैद करके रखा था और खण्डेला राज्य पर अधिकार कर लिया था। परन्तु उनकी अधीनता में जो सामन्त थे, उनके ऊपर जयपुर के राजा ने किसी प्रकार का आधिपत्य नहीं किया और उनसे वह नियमित रूप से कर लेता रहा। इस बाह्मण ने उन सामन्तों पर भी आक्रमण किया और उनकी जागीरों में उसने भयानक अत्याचार किये। उस ब्राह्मण के इन अत्याचारों को देखकर खण्डेला के सभी रायसलोत सामन्त क्रोधित हो उठे और उन सब ने मिलकर उस ब्राह्मण पर आक्रमण करने की तैयारी की। इन्हीं दिनो मे जयपुर की कारागार से छिपे तौर पर नरसिह और प्रतापसिंह ने समाचार भेजा कि अब 172