अध्याय-49 भट्टी वंशों का वास्तविक इतिहास पिछले परिच्छेद में वर्णन की गयी घटनाओं के जो समय लिखे गये हैं, वे सही नहीं मालूम होते। इसलिए इस परिच्छेद में भट्टी जाति के इतिहास का वर्णन यथासंभव प्रामाणिक लिखने की हम चेष्टा करेंगे। गजनी के यदुवंशी राजा ने युधिष्ठिर के सम्वत् 3000 में रोम और खुरासान* के बादशाहों को पराजित किया था। इसके समय पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता और विक्रम सम्वत् 72 में शालिवाहन ने अपने परिवार के लोगों के साथ जबूलिस्तान से भाग कर पंजाब में आश्रय लिया था, यह समय भी संदेहपूर्ण है। जिन ऐतिहासिक ग्रंथों मे लिखा गया है कि यदु भट्टी लोगो ने मरुभूमि मे जाकर अपना उपनिवेश कायम किया और सम्वत् 787 सन् 731 ईसवी में तनोट का दुर्ग बनाया, इस समय मे किसी प्रकार का सन्देह मालूम नहीं होता। भाटी जाति के इतिहास मे जो केहर नाम आया है और जिसके साहस तथा शौर्य की प्रशंसा की गयी है वह खलीफा बलीद का समकालीन था। उसी ने सबसे पहले भारतवर्ष मे अपना राज्य कायम किया और उत्तरी सिन्ध के आरोर नामक नगर मे अपनी राजधानी बनायी। केहर के पाँच लड़के पैदा हुए-तनू, उतेराव, वहा, खाफरिया और आथहीन। इन लड़कों के जो पुत्र पैदा हुए उन्होने अपने पिता की उपाधि लेकर अलग-अलग शाखायें चलायीं। उतेराव के पाँच लड़के पैदा हुए- सुरना,सेहसी, जीवा, चाको और अजो। इसके वंशधर उतेराव के नाम से प्रसिद्ध हुए। केहर से उत्पन्न होने वाले पाँचों लड़के साहसी और शूरवीर थे। उन्होने राजपूतों के बहुत से नगरो को जीत कर अपने अधिकार मे कर लिया। राजपूतों का चन्न वंश अब नष्ट हो गया है। उन लोगो ने केहर पर आक्रमण किया था और उसे जान से मार डाला। केहर की मृत्यु के पश्चात् तनू राज्य का अधिकारी हुआ। उसने सिंहासन पर बैठने के बाद वराहा और मुलतान के लंगा लोगो के राज्यों पर आक्रमण किया और भयानक रूप से उनका विध्वंस किया। लेकिन लोहे के बख्तर पहनकर हुसैनशाह ने लंगा लोगों के साथ दूदी, खीची, खोकर, मुगल, जोहिया, जूद और सैद जाति के दस हजार अश्वारोही सैनिक लेकर यादवो से युद्ध करने की तैयारी की। उसकी सेना ने वराहा राज्य पहुँच कर मुकाम किया। तनू ने जब यह सुना तो वह अपनी सेना लेकर युद्ध करने के लिये रवाना हुआ। दोनों तरफ से चार दिन तक बराबर युद्ध होता रहा और पॉचवे दिन उसने अपने दुर्ग के द्वार खोल देने का आदेश वादशाह बाबर ने लिखा है कि भारतवर्ष के लोग सिधु नदी को पश्चिमी सीमा के आगे के राज्य को खुरासान कहते थे। 12
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