पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१७५

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है, जो नन्दराम का भाई है। दौलतराम से नन्दराम को सहायता मिलती थी। इसलिए जयपुर के राजा ने दौलत राम की सम्पूर्ण सम्पत्ति जब्त कर ली। नवीन सेनापति रोडाराम दर्जी वंश में पैदा हुआ था। नन्दराम को कैद करने के लिए उसे आदेश मिला था और यह भी आज्ञा हुई थी कि उसके अधिकार में जितनी भी सम्पत्ति हो, उसे लेकर राज्य के अधिकार में दे दी जाए। सेनापति रोडाराम ने शेखावाटी पहुंचकर उसको कैद करने की चेष्टा की। लेकिन वह पहले से ही तिरोहित हो चुका था। नन्दराम ने राज्य का शत्रु बनकर भयानक अत्याचार आरम्भ किये। उसके अधिकार में अब भी आमेर की एक सेना थी। इसलिए उसने गाँवों और नगरों में लूटमार करके आग लगा देने का कार्य आरम्भ किया। ____ नन्दराम के इन भयानक अत्याचारों को देखकर नवीन सेनापति रोडाराम ने शेखावाटी के सामन्तों से सहायता की प्रार्थना की। परन्तु कोई भी शेखावत सामन्त उसकी सहायता के लिये तैयार न हुआ। क्योकि जयपुर राज्य के पूर्व सेनापति से उनको बहुत-कुछ शिक्षा मिल चुकी थी। शेखावाटी के सामन्तों के साथ इन बिगड़ी हुई परिस्थितियों में जयपुर के राजा की तरफ से संधि का प्रस्ताव हुआ, जिससे भविष्य में उनके राजनैतिक सम्बन्धों को निर्धारित किया जा सके। यह प्रस्ताव स्वीकृत हुआ और राजा जयपुर के साथ शेखावाटी के अधिकारियों और सामन्तों की उस समय जो सन्धि हुई, वह इस प्रकार है: 1. सेनापति नन्दराम हलदिया ने तुई और ग्वाला आदि जिन नगरों पर अधिकार कर लिया है, वे उनके पूर्व अधिकारियों को लोटा दिये जायें। 2. शेखावत सामन्त अव तक जो कर देते रहे हैं, उनके सिवा आमेर के राजा को किसी से कोई कर लेने का अधिकार न होगा। सामन्त अपना कर स्वयं आमेर की राजधानी में भेजते रहेंगे। __ 3 किसी भी अवस्था में आमेर की सेना को शेखावाटी में प्रवेश करने का अधिकार न होगा। इसलिये कि जयपुर की सेना के कारण खण्डेला राज्य में रक्तपात हुआ है। 4. आवश्यकता पड़ने पर आमेर के राजा की सहायता के लिये अपनी सेनायें सामन्त भेजेगे। परन्तु वे सेनायें जब तक जयपुर राज्य की सहायता में रहेंगी, उनका सम्पूर्ण खर्च जयपुर राज्य की तरफ से दिया जाएगा। ऊपर लिखी हुई सन्धि शेखावाटी के सामन्तों के साथ जयपुर राज्य के नवीन सेनापति रोडाराम ने की। यह सन्धि पत्र जयपुर के राजा के सामने रखा गया और उसने उसे स्वीकार किया। इस स्वीकृति के समय सभी शेखावत सामन्त आमेर की राजधानी में जाकर राजा से मिले और उन सामन्तो ने मिलकर दस हजार रुपये राजा को भेंट किये। इस सन्धि के अनुसार सामन्तों के साथ निर्धारित राजनीतिक सम्बन्धों पर राजा ने सन्तोप प्रकट किया और उसने सामन्तो से उनकी सहायता के लिये अनुरोध किया, जिससे नन्दराम पकड़ा जा सके। जिन नगरों और गॉवों पर नन्दराम ने अधिकार कर लिया था, वे उनके अधिकारियों को वापस दे दिये गये। सेनापति रोडाराम के साथ जहां कहीं नन्दराम ने युद्ध किया, वहाँ शेखावत सामन्तो की सहायता पाकर रोडाराम ने नन्दराम को पराजित किया और वह परास्त होकर युद्ध क्षेत्र से भागा। 167