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इस घटना से प्रतापसिंह को बहुत क्रोध मालूम हुआ। इसके रहस्य का उसे कुछ पता न था। उसने नरसिंह के अधिकार को रोकने की कोशिश की। परन्तु उसे सफलता न मिली। नरसिंह के पक्ष में कई सेनायें खण्डेला में आ चुकी थीं। प्रतापसिंह उसको रोक न सका। इसलिये उसने विरोधी सैनिकों को पानी का कष्ट पहुँचाने की कोशिश की। उसने कुओं को बन्द करवाने का आदेश दिया। इसके फलस्वरूप दोनों ओर की सेनाओं में संघर्ष हो गया और दोनों तरफ के बहुत से आदमी घायल हुए। अन्त में नन्दराम हलदिया ने आमेर राज्य की पंचरंगी पताका फहराकर युद्ध को रोका और उसकी कोशिशों से दोनों पक्षों में संधि की बातचीत । आरम्भ हुई। प्रताप सिंह को रेवासो का अधिकार और नरसिंह को खण्डेला राज्य में पैतृक अधिकार दिलाकर संधि करायी गयी। इस संधि के बाद भी दोनों पक्षों में अधिक समय तक शान्ति कायम न रह सकी। साधारण विवाद को लेकर उनमें संघर्ष पैदा हो जाता था। गणगौर नामक पर्व के दिन दोनों पक्षों में भयानक झगड़ा हुआ। उस सिलसिले में और भी घटनायें पैदा हुई जिनके कारण समस्त शेखावत सामन्तों ने एकत्रित होकर निर्णय करने की चेष्टा की। आमेर के राजा को उसमें मध्यस्थ बनाया गया। उसके फलस्वरूप, उस समय के सभी उत्पात शान्त हो गये। __इस प्रकार की संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में आमेर के राजा का अधिकार शेखावाटी में धीरे-धीरे बढ़ता गया। नन्दराम हलदिया ने अपने पड़यंत्रों के द्वारा शेखावत सामन्तों को अनेक प्रकार की क्षति पहुँचायी, अपरिमित धन वसूल किया, सामन्तों को आपस में लड़ाया और कई एक जागीरें आमेर राज्य में मिलायी गयीं। जो लोग अधीनता में रहने के बाद भी जयपुर राज्य को नियमित रूप से किसी प्रकार का कर नहीं देते थे और किसी सामन्त के मरने पर अथवा उत्तराधिकारी के अभिषेक के समय आमेर के राजा को उपहार में कुछ रुपये न देते थे, उन पर नियमित रूप से नन्दराम के द्वारा कर का बोझ रखने की चेष्टायें हुई। इन दिनों में शेखावत सामन्तों की परिस्थितियां बड़ी भयानक हो उठी थीं। कब किसकी स्वाधीनता का अपहरण होगा, इसको कोई न जानता था- इसलिए सिद्धानी लोगों ने एकत्रित होकर वर्तमान परिस्थितियों पर कुछ निर्णय करने का विचार किया। इसके पहले नन्दराम के द्वारा कुछ और भी घटनायें हो चुकी थीं। उसने नवलगढ़ के सामन्तों के तुई नगर को घेर लिया और रानोली पर प्रताप सिंह को अधिकारी बनाने के लिए उसके सामन्त को कैद कर लिया गया। इस प्रकार की घटनाओं के फलस्वरूप सभी सिद्धानी सामन्त अत्यन्त असंतुष्ट हो चुके थे। उनके विरुद्ध इस प्रकार की घटनाओं के होने का कोई कारण न था। उस वंश के सभी सामन्त सभी प्रकार के झगड़ों से दूर रह कर अपनी-अपनी जागीरो में रहा करते थे। इस पर भी उनके विरुद्ध जो व्यवहार और आक्रमण किये गये, उनको देखकर उन लोगो ने निश्चय किया कि राजनीति में निष्पक्ष भाव से रह सकना असम्भव होता है। इसलिए सम्पूर्ण शेखावाटी के राजाओं और सामन्तों को एकत्रित करके उनके झगड़ों को दूर करने की चेष्टा की गई। उन लोगों ने समझ लिया कि हम लोगों की आपसी फूट के कारण नन्दराम को अनुचित रूप से लाभ उठाने का मौका मिलता है। इसलिए उसका सबसे अच्छा रास्ता यह है कि हम सब अपने झगड़ो को मिलकर ईमानदारी से दूर करने की कोशिश करे। उसी दशा मे हम लोग सुरक्षित रह सकते हैं और अपनी स्वाधीनता की रक्षा कर सकते हैं। 165