पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१७२

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दिनों में वह अपने परिवार के साथ उस ग्राम में चला गया। वह जन्म से ही साहसी और वीर था। यदि वह चाहता तो आमेर के राजा के अन्यायपूर्ण आदेश के विरुद्ध युद्ध कर सकता था। परन्तु उसमें राजभक्ति की भावना थी। इसीलिये उसने ऐसा करना किसी प्रकार उचित न समझा। खण्डेला का राजा नरसिंह अपने व्यवहारों से आमेर के राजा का विरोधी बन चुका था। उसके फलस्वरूप सेनापति नन्दराम हलदिया ने प्रतापसिंह को सम्पूर्ण खण्डेला राज्य का अधिकारी बना दिया और इस अधिकार की सनद भी उसको दे दी गयी। इसके बाद प्रतापसिंह खण्डेला राज्य के उस भाग में पहुँचा,जिसमें अब तक नरसिंह का अधिकार रहा था। वहाँ पहुँचकर सबसे पहले प्रतापसिंह ने उस प्रधान द्वार को गिरवा कर धराशाही करा दिया, जिसे नरसिंह ने दुर्ग के रूप में बनवाया था और उसके ऊपर से उसने प्रतापसिंह के पिता के महलों पर गोले वरसाये थे। उसकी दीवार में लगी हुई गणेश की एक मूर्ति थी। नरसिंह उस मूर्ति की पूजा किया करता था। वह मूर्ति भी टूट कर गिर गयी।। प्रतापसिंह ने सम्पूर्ण खण्डेला के शासन का अधिकार अपने हाथों में लेकर रेवासो पर अधिकार करने की तैयारी की और सेना को लेकर उसने गोविन्दगढ़ दुर्ग को जाकर घेर लिया, जिसमें नरसिंह इन दिनों में रहता था। रानोली के सामन्त को यह देखकर अच्छा न मालूम हुआ। वह सदा से नरसिंह का समर्थक था। उसने अपने मंत्री को नन्दराम के पास भेजा और उसके द्वारा उसने हलदिया से प्रार्थना की कि आमेर के राजा को नरसिंह से जो मिलना चाहिए, हम वह सब देने के लिये तैयार हैं, यदि आप नरसिंह को पूर्ववत् अधिकारी बना रहने दें। साथ ही इसके बदले में हम आपको उपहार में अधिक धन देकर सन्तुष्ट करेंगे। धन की आशा में सेनापति नन्दराम ने उस सामन्त के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। धन की ही आशा में उसने अभी कुछ दिन पहले प्रतापसिंह को सम्पूर्ण खण्डेला राज्य का अधिकारी बनाया था और उसे राजा की तरफ से इसके लिये सनद भी दिलायी थी। अब उसने नरसिंह के सम्बन्ध में इस प्रकार का प्रस्ताव स्वीकार किया और अपनी सफलता के लिये उसने एक नये पड़यंत्र की रचना की। उसने नरसिंह के समर्थक सामन्त के पास गुप्त रूप से समाचार भेजा कि आपने नरसिंह के पक्ष में जो प्रस्ताव किया है, उसके लिये गोविन्दगढ़ से नरसिंह एक सेना को लेकर रात्रि के समय बाहर निकले और हमारी सेना पर आक्रमण करे। उस समय कुछ देर तक बनावटी युद्ध करके हम अपनी सेना के साथ परास्त होकर भाग जाएंगे। ऐसा करने से प्रतापसिंह को हम पर किसी प्रकार का सन्देह न होगा और नरसिंह को सफलता मिल जाएगी। नन्दराम का यह सन्देश गुप्त रूप से रानोली के सामन्त के पास पहुंच गया। उसने इस सन्देश के अनुसार तैयारी की। सूर्यमल्ल और बाघसिंह नामक उसके दो भाई थे। उन दोनों ने गोविन्दगढ़ के दुर्ग के भीतर तैयारी की और निश्चित दिन तथा समय पर रात मे डेढ सौ सैनिको को लेकर वे दोनों भाई दुर्ग से बाहर निकले और उन्होने नन्दराम की सेना पर इस प्रकार का आक्रमण किया, जिससे आमेर की सेना को किसी प्रकार की क्षति न पहुँचे। उस आक्रमण पर कुछ देर तक युद्ध करके नन्दराम अपनी सेना के साथ वहाँ से भाग गया और नरसिंह ने अपने भाइयों के साथ अवसर पाकर राज्य के अपने नगरों और ग्रामों पर अधिकार कर लिया। 164