पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१६४

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अध्याय-59 आमेर राज्य में गृह-युद्ध तथा शेखावाटी में अव्यवस्था खुण्टला का गन्याधिकार वृन्दावन टाय में प्रान करने के दिनों में आमेर राज्य में गृह-युद्ध चल रहा था और माधव सिंह ने ईश्वरी सिंह के साथ मंचर्प पैटा करके वहाँ पर भयंकर पर्गिनि उत्पन्न कर दी थी। वृन्दावन दास ने माधव सिंह का पक्ष लेकर डम गृह-युद्ध में काम लिया था। उस गंवर्ष में माधव सिंह को सफलता मिली। टसंक सिंहासन पर बैठने के बाट वृन्दावन दास ने दम प्रार्थना की। माधव सिंह ने भी उसकी सहायता का पुरस्कार देना चाहा इसलिए उसने कहा कि खाडला गव्य के दो भागों में विभन्न होने के कारण यापम में मंत्रयं चल रहा है। इस आपसी झगड़े को दूर करने के लिए एक ही उपाय है कि खण्डला गय में एक की अधिकारी बना दिया जाये। फतेह सिंह के लड़के वीरसिंह का पुत्र इन्द्र सिंह इन दिनों में खण्डेला के दो भागों का अधिकारी था। इसलिए, आमेर के गन्ना माधव सिंह ने इन्द्र सिंह विन्द अपनी पात्र हन्दार मैनिकों की मंना वृंदावन दान के साथ भेजी। उसने गुण्डला पहुँच कर इन्द्रसिंह पर आक्रमण किया। इन्द्रसिंह कुछ दिनों तक अपने दुर्ग में रह कर आमेर की मंना का मुकाबला करता न्हा। लेकिन यन में निवल पड़ कर वह दुर्ग में निकन्द गया और पागमोली नामक स्थान पर चला गया। वृन्दावन दास ने वहाँ जाकर दम पर आक्रमण किया। इसलिए अन्न इन्द्र सिंह को यात्म-समर्पण करना पड़ा। लेकिन इसी बीच मएमएसी घटना हुई किजिनसे उसका पिता अपने पिता भगञ्य का अधिकार मिल गया। आमेर के गन्ना माधव मिंट ने पाँच हजार सैनिकों को मंना जो वृन्दावन दास की महायता में मंत्री थी, उसके वेतन देने का भार वृन्दावन दास के ही कपर था। लेकिन ठमक पास इतना धन न था कि यह उम मंना का वेतन अदा कर सकता। इस दगा में वृन्दावन दास नं दृग्गंग साधनों का आश्रय लिया। उसने मन्दिरों की मूर्तियों में लगे हुए चाँटी-मोन को अपने अधिकार में करने के माथ-साथ ग्रना से कर लंना आरम्भ किया। यह कर राज्य के ग्राह्मणों से भी वसूल होने लगा। इसलिए, वहाँ के ब्राह्मणों ने इसकी निन्दा की। परन्तु वृन्दावन टाम नं उनकी निन्दा की कुछ परवाह न की। यह देखकर ब्राह्मरणों ने वृन्दावन दाम का अपमान दनक विगंध किया। वृन्दावन दाम पर इसका कोई प्रभाव न पड़ा तो ब्राह्मण अपने आपको आघात पहुँचाकर वृन्दावन टाम को बह्म-हत्या का पापी बनाने लगे। ब्राह्मणों के दल के दल वृन्दावन टाम के मामंग पहुँचत और अपने शरीरों को आवान पहुँचा कर मं फांसतं। इस प्रकार की घटनाओं के कारण खण्डेला की प्रजा वृन्दावन दास की निन्दा करने लगी। 156