की वेष-भूपा में तुर्क सेनापति के सामने लाये गये और उसने राजकुमारों को किसान बालक मान कर वहाँ के भूमिधरों की लडकियों के साथ उनके विवाह करवा दिये। इस तरीके से शालिवाहन के वंश में उत्पन्न होने वाले राजकुमार केलर के पुत्र कलोरिया जाट भुर्द राज और शिवराजत नाम से प्रसिद्ध हुए। राजकुमार फूल और केवल का परिचय नाई और कुम्हार बालक के रूप में दिया गया था। इसलिए उन दोनों के वंशज नाई और कुम्हार वंश में माने गये। भट्टी वंश के इतिहास में लिखा है: "मंगलराव जिस गाडा नदी के समीपवर्ती जंगल में चला गया था, उसने उस जंगल को छोड़कर एक नवीन स्थान पर जाकर अपना राज्य स्थापित किया। इस समय उस नदी के किनारे बराहा जाति के लोग रहते थे।* उनके पहले वहाँ पर बूता वंश के राजपूतों का राज्य था। पूंगल के प्रमारों के अतिरिक्त वहाँ पर सोटा और लुद्ररा वंश के राजपूत भी रहा करते थे। मंगलराव ने वहाँ पहुँच कर और वहाँ के राजाओ से मिल कर वहीं पर रहना आरम्भ किया। मंगलराव की मृत्यु हो जाने पर उसका लडका मंडमराव अपने पिता के स्थान पर अधिकारी हुआ।" यह पहले लिखा जा चुका है कि मंगलराव अपने बड़े पुत्र मण्डमराव को अपने साथ लेकर शालिवाहनपुर से भागा था। यहाँ पहुँच कर धोरे के राजपूतों ने उसको अपना राजा बनाया और अभिषेक के समय उन लोगों ने उसे मूल्यवान सामग्री और सम्पत्ति भेंट में दी। अमरकोट के सोढावंशी राजा ने मन्डमराव के साथ अपनी लड़की के विवाह का इरादा किया। मण्डमराव द्वारा स्वीकृति देने पर अमरकोट की राजधानी में बड़ी धूमधाम के साथ विवाह सम्पन्न हुआ। मंडमराव के तीन लड़के पैदा हुये-1. केहर 2 मूलराज और 3. गोगली। केहर नामक बालक आरम्भ से ही तेजस्वी और साहसी था। किसी समय पॉच सौ घोड़े व्यावसायिक चीजों से लदे हुए आरोर से मुलतान जा रहे थे। केहर ने अपने कुछ वीरों को उनके पीछे रवाना किया। ये लोग व्यवसायी बन कर और ऊँटों पर बैठकर उनके पीछे चले। पंचनद के किनारे पहुँच कर इन लोगों ने उन व्यवसायियों पर आक्रमण किया और उन घोड़ों की समस्त सामग्री लूट ली। इसके बाद वे लोग लौटकर चले आये। इन्हीं दिनों में वहाँ पर केहर का नाम प्रसिद्ध हुआ। कुछ दिनों के बाद जालौर के आलनसिंह देवरा ने मंडमराव के वयस्क पुत्रों के विवाह का संदेश भेजा। मंडमराव ने उसे स्वीकार कर लिया और विवाह का कार्य बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। इसके बाद केहर ने दुर्ग बनवाने का कार्य आरम्भ किया और उसका नाम उसने अपनी कुल देवी के नाम के आधार पर रखने का विचार किया। दुर्ग तैयार होने के पहले ही मंडमराव की मृत्यु हो गयी। केहर अपने पिता के स्थान पर अधिकारी हुआ। उसके बनवाये हुए दुर्ग का नाम तन्नो देवी के नाम पर तनोट का दुर्ग रखा गया। इन्हीं दिनों में बराहा वंश के यशोरथ राजा ने अपनी सेना लेकर तनोट के दुर्ग पर आक्रमण किया और कहा कि यह दुर्ग हमारे राज्य की सीमा के भीतर बनाया गया है। मूलराज ने बड़ी बहादुरी के साथ तनोट दुर्ग की रक्षा की और यशोरथ की सेना पराजित होकर भाग गयी इसके बाद केहर और यशोरथ में सन्धि हो गयी और उस सन्धि के फलस्वरूप मूल राज की लड़की के साथ यशोरथ का विवाह हो गया। बराहा राजपूतों की एक शाखा है। इस वश के लोगो ने भी इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया था। इसीलिये वे मुसलमान कहे जाते थे। 10
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