पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१५६

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एक प्रसिद्ध मुसलमान के द्वारा बहादुर सिंह का अपमान हुआ। उससे अपने अपमान का बदला न पा सकने के कारण बहादुर सिंह दक्षिण से लौटकर चला आया। इसलिए मनसबदार सरदारों की सूची से उसका नाम काट दिया गया। शेखावटी के राजा बहादुर सिंह का जिस मुसलमान बहादुर खाँ ने अपमान किया था,वह मुगल बादशाह के यहाँ सेनापति था। बहादुर सिंह के साथ शत्रुता हो जाने के कारण बहादुर खाँ ने बादशाह से खण्डेला राज्य मे जजिया कर वसूल करने का आदेश माँगा और आज्ञा लेकर वह खण्डेला की तरफ रवाना हुआ। बहादुर सिंह को जब मालूम हुआ कि बहादुर खॉ अपनी सेना के साथ इस राज्य में आ रहा है तो वह अपनी राजधानी छोड़कर भाग गया। बादशाह की फौज लेकर बहादुर खाँ खण्डेला राजधानी के समीप पहुँच गया। वहाँ के समस्त शेखावत लोगों को मालूम हुआ कि बादशाह की फौज के आने का समाचार पाकर बहादुर सिंह खण्डेला से भाग गया है। बादशाह की फौज ने वहाँ पहुँचकर खण्डेला के मन्दिरों को विध्वंस करने का कार्य आरम्भ किया। रायसल का दूसरा लड़का भोजराज का वंशज सुजान सिंह छापोली का अधिकारी था। उसने जब सुना कि बादशाह की फौज ने खण्डेला में पहुँच कर मंदिरों को गिराने के साथ-साथ भयानक अत्याचार आरम्भ किया है तो उसने प्रतिज्ञा की कि मैं खण्डेला के मन्दिरो की रक्षा करूंगा और अपने इस कर्त्तव्य-पालन में मैं अपने प्राणों की बलि दूंगा।* -खण्डेला में बादशाह की सेना के प्रवेश करने के समय सुजानसिंह मारवाड़ में विवाह करने के लिए गया था। वहाँ से लौटकर सुजान सिंह ने अपनी माता और नवविवाहिता पत्नी से खण्डेला जाने के लिए विदा मांगी। इस समय उनके परिवार के दूसरे लोग भी वहाँ पहुँचकर सुजान सिह से कहने लगे-"खण्डेला में बादशाह की सेना के आक्रमण करने पर राजा बहादुर सिंह को वहाँ की रक्षा करनी चाहिए। आपको वहाँ पर हस्तक्षेप की क्या आवश्यकता है।" इस बात को सुनकर सुजान सिह ने कहा- "क्या मै रायसल का वंशज नहीं है? खण्डेला के मन्दिरो के तोड़े जाने पर क्या मेरा कर्त्तव्य नहीं है कि मै वहाँ जाकर उन मन्दिरों की रक्षा करूँ। इस प्रकार के अत्याचारो के समय कोई भी राजपूत चुप होकर नहीं बैठ सकता।" सुजान सिंह की इस बात को सुनकर किसी को कुछ कहने का साहस न हुआ। उसके वीरोचित वाक्यों को सुनकर उसके वंश के साठ शूरवीर उसकी सहायता के लिए साथ चले। अपने साथियो के साथ सुजान सिंह ने खण्डेला राजधानी में प्रवेश किया। सेनापति बहादुर खाँ ने सुजान सिंह के आने का समाचार सुना। उसने इस विपय में सुजान सिंह से बातचीत औरगजेब के आदेश से इस प्रकार के अत्याचारो के साथ अगणित देवालय और मन्दिर नष्ट किये गये थे, उसका प्रमाण मन्दिरो की टूटी-फूटी इमारतों और मूर्तियों के टुकडो से ही भली भाँति हो सकता है। लाहौर से लेकर कन्याकुमारी तक एक भी ऐसा मन्दिर नहीं है, जो औरगजेब के हुक्म से नष्ट न किया गया हो। नर्मदा के एक छोटे-से टापू पर ओंकार जी का एक प्रसिद्ध मदिर है। उस मदिर की मूर्ति के तोडे जाने के समय की घटना यहाँ पर देने के योग्य है। औरङ्गजेब ने उस मदिर की मूर्ति के सामने जाकर कहाः "यदि तुममें वास्तविक कोई शक्ति हो तो तुम उसे मेरे सामने प्रकट करो और मेरे आदेश को शक्तिहीन बना दो।" इस घटना का उल्लेख करने वाले ग्रन्थो मे लिखा है कि ओकार जी के मस्तक पर आघात होते ही उनकी नाक और मुख से तेजी के साथ खून गिरना आरम्भ हो गया। इस दशा मे दृसरा आघात करने का साहस नहीं हुआ। उस समय से ओंकार जी का महत्व लोगों में अधिक बढ़ गया। 148